ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌤️ *दिनांक – 30 सितम्बर 2023*
🌤️ *दिन – शनिवार*
🌤️ *विक्रम संवत – 2080 (गुजरात – 2079)*
🌤️ *शक संवत -1945*
🌤️ *अयन – दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु – शरद ॠतु*
🌤️ *अमांत – 14 गते आश्विन मास प्रविष्टि*
🌤️ *राष्ट्रीय तिथि – 8 भाद्र पद मास*
🌤️ *मास – आश्विन (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार भाद्रपद)*
🌤️ *पक्ष – कृष्ण*
🌤️ *तिथि – प्रतिपदा दोपहर 12:21 तक तत्पश्चात द्वितीया*
🌤️ *नक्षत्र – रेवती रात्रि 09:08 तक तत्पश्चात अश्विनी*
🌤️ *योग – ध्रुव शाम 04:27 तक तत्पश्चात व्याघात*
🌤️ *राहुकाल – सुबह 09:10 से सुबह 10:38 तक*
🌞 *सूर्योदय-06:10*
🌤️ *सूर्यास्त- 18:06*
👉 *दिशाशूल- पूर्व दिशा में*
🚩 *व्रत पर्व विवरण – द्वितीया का श्राद्ध*
💥 *विशेष – द्वितीया को बृहती (छोटा बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
🌞~*वैदिक पंचांग* 🌞
🌷 *श्राद्ध के दिन* 🌷
🙏🏻 *जिस दिन आप के घर में श्राद्ध हो उस दिन गीता का सातवें अध्याय का पाठ करें । पाठ करते समय जल भर के रखें । पाठ पूरा हो तो जल सूर्य भगवन को अर्घ्य दें और कहें की हमारे पितृ के लिए हम अर्पण करते हें। जिनका श्राद्ध है , उनके लिए आज का गीता पाठ अर्पण।*
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌷 *श्राद्ध कर्म* 🌷
🌞 *अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें :*
🌞 *”हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दे) को आप संतुष्ट/सुखी रखें । इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगायें ।*
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌷 *तुलसी* 🌷
🌿 *श्राद्ध और यज्ञ आदि कार्यों में तुलसी का एक पत्ता भी महान पुण्य देनेवाला है | पद्मपुराण*
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌷 *श्राद्ध के लिए विशेष मंत्र* 🌷
🙏 *” ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा । “*
🌞 *इस मंत्र का जप करके हाथ उठाकर सूर्य नारायण को पितृ की तृप्ति एवं सदगति के लिए प्रार्थना करें । स्वधा ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं । इस मंत्र के जप से पितृ की तृप्ति अवश्य होती है और श्राद्ध में जो त्रुटी रह गई हो वे भी पूर्ण हो जाती है।*
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌷 *श्राद्ध में करने योग्य* 🌷
🙏 *श्राद्ध पक्ष में १ माला रोज द्वादश मंत्र ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” की करनी चाहिए और उस माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए।*