
– विकसित भारत के लिए उच्च शिक्षा की नई कल्पना

– एनईपी 2020, इंडस्ट्री सहयोग, शोध और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन पर ध्यान, उत्तराखंड को ज्ञान केंद्र बनाने की पहल
देहरादून। यूपीईएस ने उत्तराखंड सरकार के साथ मिलकर ‘शिक्षा संवाद’ का सफल आयोजन किया। यह दो दिवसीय उच्च शिक्षा सम्मेलन 8–9 अक्टूबर 2025 को होटल हयात सेंट्रिक, देहरादून में हुआ। इसका विषय था ‘विकसित भारत और समृद्ध उत्तराखंड के लिए उच्च शिक्षा की नई कल्पना’। इस कार्यक्रम में सरकारी नेताओं, शिक्षाविदों, उद्योग प्रतिनिधियों, अंतरराष्ट्रीय दूतों, गैर-सरकारी संगठनों और शिक्षा विशेषज्ञों ने भाग लिया और उच्च शिक्षा के भविष्य पर चर्चा की।
सम्मेलन का उद्घाटन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत, उच्च शिक्षा सचिव डॉ. रंजीत सिन्हा तथा शिक्षा मंत्रालय (भारत सरकार), विदेशी मिशनों और उद्योग जगत के वरिष्ठ प्रतिनिधियों की उपस्थिति में हुआ।
दो दिनों तक प्रतिभागियों ने शासन सुधार, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन, रोजगार क्षमता, इंडस्ट्री रेडीनेस, नवाचार और शोध जैसे विषयों पर चर्चा की। सत्रों में बुनियादी ढांचे की कमी, भौगोलिक चुनौतियां, फैकल्टी विकास और अंतःविषय सहयोग की ज़रूरत पर विचार किया गया। साथ ही डिजिटल क्षमता को मजबूत करने, अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने और भारतीय पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक पाठ्यक्रम में शामिल करने के अवसरों की पहचान की गई। तकनीकी प्रदर्शनी, कुलपतियों की गोलमेज बैठकें और एआईसीटीई, यूजीसी, सीबीएसई, एससीईआरटी, नवाचार परिषदों तथा ब्रिटिश काउंसिल, यूनिसेफ और यूएस-इंडिया एजुकेशनल फाउंडेशन जैसी संस्थाओं के नेताओं के पैनल ने चर्चाओं को और समृद्ध बनाया।
इस अवसर पर यूपीईएस के कुलपति डॉ. राम शर्मा ने कहा:”हमें उद्योग के साथ गहरे जुड़ाव की ज़रूरत है—वास्तविक समस्याओं को परिभाषित करने, संयुक्त शोध करने, प्रयोगशालाएं स्थापित करने और छात्रों को मार्गदर्शन देने के लिए। विश्वविद्यालयों को ऐसे स्नातक तैयार करने चाहिए जो आज इंडस्ट्री के लिए तैयार हों और भविष्य के बदलावों के अनुसार खुद को ढाल सकें।
यूपीईएस में हमारा लक्ष्य केवल रोजगार योग्य स्नातक बनाना नहीं, बल्कि जीवनभर समस्याओं का समाधान करने वाले युवाओं को तैयार करना है। जैसे-जैसे उद्योग बदलता रहेगा, हम आलोचनात्मक सोच, अनुकूलन क्षमता और समस्या-समाधान कौशल देकर अपने छात्रों को उनके पूरे करियर में प्रासंगिक बनाए रख सकते हैं।”
सम्मेलन के वक्ताओं ने बताया कि शोध में भारत का निवेश वैश्विक नेताओं की तुलना में कम है और उद्योग की भागीदारी भी सीमित है। उन्होंने निजी क्षेत्र से अधिक योगदान की अपील की—जैसे शोध सहयोग, पाठ्यक्रम निर्माण में भागीदारी और प्रमाणपत्र कार्यक्रमों से आगे बढ़कर समस्या बैंक, संयुक्त पीएचडी, अनुदान और नवाचार केंद्रों जैसी गहरी साझेदारियाँ।
‘शिक्षा संवाद’ ने सहयोगी शासन, अकादमिक-इंडस्ट्री एकीकरण और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन पर ध्यान केंद्रित करते हुए उत्तराखंड की यह प्रतिबद्धता मजबूत की कि वह भारत का ज्ञान केंद्र बनेगा। कार्यक्रम का समापन एक ऐसे रोडमैप के साथ हुआ जिसमें नवाचार, रोजगार क्षमता और स्थिरता को भविष्य के लिए तैयार उच्च शिक्षा प्रणाली की नींव बताया गया।
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