– पाखरो टाइगर सफ़ारी में अगर एक टहनी भी कटवाई हो तो हर सजा भुगतने को तैयार: हरक सिंह
– 6 हजार पेड़ कटान की गलत रिपोर्ट देने वाली एजेंसियों की जांच की मांग
पहाड़ का सच,देहरादून।
पूर्व वन मंत्री डॉक्टर हरक सिंह रावत ने पाखरो टाइगर सफ़ारी में 6 हज़ार पेड़ कटने पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से की गई टिप्पणी पर मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख निष्पक्ष जांच की मांग की है। पूर्व मंत्री ने पत्र में अपने राजनीतिक व सामाजिक जीवन की भावुक पक्ष को उजागर करने की कोशिश की है। .हरक सिंह ने पत्र में लिखा है कि आज मैं दुखी मन से आप से आग्रह कर रहा हूँ कि पाखरो टाइगर सफ़ारी में 6 हज़ार पेड़ तो क्या अगर एक टहनी भी कोई साबित कर दे कि मैंने कटवाई है, तो मैं हर सज़ा भुगतने को तैयार हूँ।
उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा टिप्पणी ऐसे समय पर की गई है जब लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया गतिमान है जिस से मेरी छवि प्रदेश और देश में ख़राब हुई है, और इसकी भरपाई शायद ईडी, सीबीआई तथा सर्वोच्च न्यायालय भी नहीं कर सकता।
मैं चाहता हूँ की इस पूरे प्रकरण की शीघ्र निष्पक्ष जाँच करके दूध का दूध और पानी का पानी किया जाए तथा जिन एजेन्सियों से ग़लत रिपोर्ट उच्चन्यायालय, नैनीताल और सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत की है। उनको भी इस जाँच के दायरे में लाया जाए।
पूर्व वन मंत्री हरक सिंह का पत्र
मा० मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली।
विषय : माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा नेशनल कॉर्बेट पार्क, के अन्तर्गत पाखरौ टाईगर सफारी के निर्माण में पेड़ कटान तथा निर्माण को लेकर की गई टिप्पणी के सम्बन्ध में।
मा० महोदय,
मेरा जन्म उत्तराखण्ड के पौड़ी ज़िले के अत्यन्त दुर्गम ग्राम गहड़ में हुआ जहां बिजली, पानी, सड़क का भी अभाव था। जहां मैंने बेहद कठिन परिस्थितियों में जीवनयापन करके कक्षा 8 तक घनघोर जंगल से स्कूल जाकर अपनी शिक्षा ग्रहण की है।
स्नातक में गढ़वाल विश्वविद्यालय और पी जी में रुहेलखंड विश्विद्यालय गोल्डमेडल प्राप्त किया तथा 1985 में उच्चशिक्षा आयोग के द्वारा मेरी नियुक्ति सहायक प्रोफेसर के रूप में ए०के० कॉलेज शिकोहाबाद, आगरा विश्वविद्यालय में हुई।
एक वर्ष बाद पुनः गढ़वाल विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर में तैनाती हुई। छात्र जीवन से ही बलि प्रथा, पर्यावरण, जीव जन्तुओं के संरक्षण के लिये सामाजिक/राजनैतिक मंचों पर संघर्ष किया, गढ़वाल विश्वविद्यालय के छात्र के रूप में पर्यावरण व ग्रामीण जीवन पर कविताएँ लिखी एवं गढ़वाल विश्वविद्यालय की ओर से अंतर विश्वविद्यालयीय वाद विवाद प्रतियोगिता/कविता प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व किया तथा पुरस्कार प्राप्त किया।
मुझे गढ़वाल विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ के महामंत्री के रूप में भी काम करने का मौका मिला, मुझे उत्तराखण्ड की जनता ने 28 वर्ष की उम्र में उत्तर प्रदेश की विधानसभा सदस्य के रूप में व पर्यटन राज्य मंत्री के रूप में जनता कि सेवा करने का मौक़ा मिला, यही नहीं 6 बार मुझे उत्तर प्रदेश/ उत्तराखण्ड की विधानसभा सदस्य के रूप में काम करने का मौक़ा मिला और विपक्ष के नेता तथा उत्तर प्रदेश खाद्य ग्राम उद्योग बोर्ड के उपाध्यक्ष तथा 7 बार मंत्री के रूप में शपथ लेने के साथ साथ विभिन्न विभागों में काम करने का मौक़ा मिला।
मा० महोदय,
पिछले 43 वर्ष के सामाजिक / राजनैतिक जीवन में उत्तर प्रदेश/ उत्तराखण्ड के जीव जंतुओं का संरक्षण व पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए लगातार काम करता रहा, जहाँ छोटी सी नौकरी या व्यवसाय करने वाला व्यक्ति अपने गाँव को छोड़ देता है ऐसे में मैंने विश्वविद्यालय की उच्चसेवा तथा मंत्री व विधायक होने के बाद भी अपने गाँव को नहीं छोड़ा है। अपने गाँव के खेत खलियान में आंवला, आम, बांस, तमाम फल की प्रजाति के वृक्ष सिर्फ़ खानापूर्ति के लिये नहीं लगाये, इन्हें कोई मेरे गाँव में जाकर देख सकता है। मैंने केवल भाषणों में पर्यावरण की बात नहीं की है।
मा० महोदय,
जब इंसान का प्रदेश और राष्ट्र की व्यवस्था पर भरोसा उठ जाता है तो उसका भरोसा देश के सर्वोच्च न्यायालय जिसे देश के लोग न्याय के मंदिर के रूप में पूजते हैं।
पाखरौ टाईगर सफारी की स्थापना के दौरान पेड़ कटान तथा निर्माण को लेकर मा० सर्वोच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने मुझ को लेकर जो टिप्पणी की है उससे मैं बहुत आहत हुआ हूँ क्योंकि बिना मेरा पक्ष जाने जब देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस प्रकार की टिप्पणी की जाती है तो इस देश के संविधान व न्यायव्यवस्था पर भरोसा कठिन हो जाता है।
मा० महोदय,
आज में दुखी मन से आप से आग्रह कर रहा हूँ कि पाखरो टाईगर सफ़ारी में 6 हज़ार पेड़ तो क्या अगर एक टहनी भी कोई साबित कर दे कि मैंने कटवाई है, तो मैं हर सज़ा भुगतने को तैयार हूँ। सर्वोच्चन्यायालय द्वारा टिप्पणी ऐसे समय पर की गई है जब लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया गतिमान है जिस से मेरी छवि प्रदेश और देश में ख़राब हुई है, और इसकी भरपाई शायद ई०डी० सी०बी०आई० तथा सर्वोच्च न्यायालय भी नहीं कर सकता।
मैं चाहता हूँ की इस पूरे प्रकरण की शीघ्र निष्पक्ष जाँच करके दूध का दूध और पानी का पानी किया जाए तथा जिन एजेन्सियों से ग़लत रिपोर्ट उच्चन्यायालय, नैनीताल और सर्वोच्चन्यायालय में प्रस्तुत की है। उनको भी इस जाँच के दायरे में लाया जाए कि किन परिस्थितियों में और किस लाभ के लिए एक सामाजिक / राजनैतिक कार्यकर्ता का चरित्रहरण और मानसिक उत्पीड़न किया है।
विभिन्न मीडिया प्रिंट/डिजिटल द्वारा बिना तथ्यों की वास्तविकता को जाने लेख व समाचार प्रसारित किए गए जो सामान्य जनता के समक्ष मुझे दोषी सिद्ध करने का प्रयास कर रहें है। इस सब में मुझे कमज़ोर करने के लिए मेरे परिवार पर भी आरोप / जाँच की जा रही है।
मैं न्याय की अंतिम किरण के रूप में आपसे उम्मीद करता हूँ आप मेरा भी पक्ष रखने का पूर्ण अवसर देंगे, मैं सदा आपका आभारी रहूँगा।