ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल

? *~ वैदिक पंचांग ~* ?
?️ *दिनांक – 18 फरवरी 2024*
?️ *दिन – रविवार*
?️ *विक्रम संवत – 2080*
?️ *शक संवत -1945*
?️ *अयन – उत्तरायण*
?️ *ऋतु – शिशिर ॠतु*
?️ *अमांत – 6 गते फागुन मास प्रविष्टि*
?️ *राष्ट्रीय तिथि – 28 पौष मास*
?️ *मास -माघ*
?️ *पक्ष – शुक्ल*
?️ *तिथि – नवमी सुबह 08:15 तक तत्पश्चात दशमी*
?️ *नक्षत्र – रोहिणी सुबह 09:23 तक तत्पश्चात मृगशिरा*
?️ *योग – वैधृति दोपहर 12:39 तक तत्पश्चात विष्कंभ*
?️ *राहुकाल – शाम 04:40 से शाम 06:03 तक*
? *सूर्योदय-06:55*
?️ *सूर्यास्त- 18:08*
? *दिशाशूल – पश्चिम दिशा में*
? *व्रत पर्व विवरण –
? *विशेष – नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*? रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
? *रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)*
? *रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)*
? *स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।*
? *~ वैदिक पंचांग ~* ?
? *वसंत ऋतु का संदेश* ?
? *खान-पान का ध्यान विशेष-वसंत ऋतु का है संदेश*
➡ *19 फरवरी 2024 सोमवार से वसंत ऋतु प्रारंभ ।*
? *ऋतुराज वसंत शीत व उष्णता का संधिकाल है | इसमें शीत ऋतु का संचित कफ सूर्य की संतप्त किरणों से पिघलने लगता है, जिससे जठराग्नि मंद हो जाती है और सर्दी-खाँसी, उल्टी-दस्त आदि अनेक रोग उत्पन्न होने लगते हैं | अतः इस समय आहार-विहार की विशेष सावधानी रखनी चाहिए |*
? *आहार : इस ऋतु में देर से पचनेवाले, शीतल पदार्थ, दिन में सोना, स्निग्ध अर्थात घी-तेल में बने तथा अम्ल व रसप्रधान पदार्थो का सेवन न करें क्योंकि ये सभी कफ वर्धक हैं | (अष्टांगहृदय ३.२६)*
? *वसंत में मिठाई, सूखा मेवा, खट्टे-मीठे फल, दही, आईसक्रीम तथा गरिष्ठ भोजन का सेवन वर्जित है | इन दिनों में शीघ्र पचनेवाले, अल्प तेल व घी में बने, तीखे, कड़वे, कसैले, उष्ण पदार्थों जैसे- लाई, मुरमुरे, जौ, भुने हुए चने, पुराना गेहूँ, चना, मूँग , अदरक, सौंठ, अजवायन, हल्दी, पीपरामूल, काली मिर्च, हींग, सूरन, सहजन की फली, करेला, मेथी, ताजी मूली, तिल का तेल, शहद, गौमूत्र आदि कफनाशकपदार्थों का सेवन करें | भरपेट भोजन ना करें | नमक का कम उपयोग तथा १५ दिनों में एक कड़क उपवास स्वास्थ्य के लिए हितकारी है | उपवास के नाम पर पेट में फलाहार ठूँसना बुद्धिमानी नही है |*
➡ *विहार : ऋतु-परिवर्तन से शरीर में उत्पन्न भारीपन तथा आलस्य को दूर करने के लिए सूर्योदय से पूर्व उठना, व्यायाम, दौड़, तेज चलना, आसन तथा प्राणायाम (विशेषकर सूर्यभेदी) लाभदायी है | तिल के तेल से मालिश कर सप्तधान उबटन से स्नान करना स्वास्थ्य की कुंजी है |*
? *वसंत ऋतु के विशेष प्रयोग* ?
? *१५ से २० नीम के पत्ते तथा २-३ काली मिर्च १५-२० दिन चबाकर खाने से वर्षभर चर्मरोग, ज्वर, रक्तविकार आदि रोगों से रक्षा होती है |*
? *अदरक के छोटे-छोटे टुकड़े कर उसमें नींबू का रस और थोडा नमक मिला के सेवन करने से मंदाग्नि दूर होती है |*
? *५ ग्राम रात को भिगोयी हुई मेथी सुबह चबाकर पानी पीने से पेट की गैस दूर होती है |*
? *रीठे का छिलका पानी में पीसकर २-२ बूँद नाक में टपकाने से आधासीसी (सिर) का दर्द दूर होता है |*
? *१० ग्राम घी में १५ ग्राम गुड़ मिलाकर लेने से सूखी खाँसी में राहत मिलती है |*
? *१० ग्राम शहद, २ ग्राम सोंठ व १ ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम चाटने से बलगमी खाँसी दूर होती है |*
? *सावधानी : मुँह में कफ आने पर उसे तुरंत बाहर निकाल दें | कफ की तकलीफ में अंग्रेजी दवाइयाँ लेने से कफ सूख जाता है, जो भविष्य में टी.बी., दमा, कैंसर जैसे गम्भीर रोग उत्पन्न कर सकता है | अतः कफ बढ़ने पर ? जकरणी जलनेति का प्रयोग करें
