– कोश्यारी के लंबे राजनीतिक अनुभव का फायदा मिलेगा उत्तराखंड की भाजपा को
– ब्योवृद्ध नेता की मौजूदगी से सरकार और संगठन के ऊपर मनोवैज्ञानिक दबाव तो रहेगा ही
हरीश जोशी, पहाड़ का सच देहरादून।
महाराष्ट्र के राजयपाल भगत सिंह कोश्यारी का इस्तीफा मंजूर होने के बाद उत्तराखंड में भाजपा की राजनीति में हलचल जरूर है, लेकिन कोश्यारी का घर लौटना सत्ता प्रतिष्ठान के लिए मुफीद भी माना जा रहा है। सरकार व संगठन का लम्बा अनुभव होने के कारण उनकी घर वापसी से सरकार और संगठन के मुखिया पर मनोवैज्ञानिक दबाव तो रहेगा।
सितम्बर 2019 में महाराष्ट्र के राज्यपाल बने उत्तराखण्ड के पूर्व सीएम कोश्यारी के इस्तीफे को लेकर आज तस्वीर साफ हो गई है। तीन साल पहले शुरू हुई उनकी संवैधानिक पारी पर आज विराम लग गया है। महाराष्ट्र के राज्यपाल रहते अपने बयानों में सुर्खियों में आए और विपक्ष के निशाने पर आए कोश्यारी के पद त्यागने की इच्छा भाजपा हाईकमान की योजना का हिस्सा माना जा रहा है। उन्होंने जो बयान दिए ,संभवत उनके हिसाब से सही रहे हों, किंतु महाराष्ट्र की जमीन के लोगों ने उनके बयानों को स्वीकार नहीं किया। महाराष्ट्र में भाजपा का सरकार में शामिल होने के बाद भी वहां के राजनीतिक समीकरण भी तेजी से बदले हैं।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कोश्यारी के पद छोड़ने के पीछे कुछ कारण ऐसे भी जुड़े, जिससे संवैधानिक पद पर रहते उनकी तरफ अंगुली उठने लगी। इन कारणों में जो साफ तौर पर विवाद के कारण बने, उनमें फड़नवीस को सुबह सुबह सीएम पद की शपथ दिलाने के अलावा छत्रपति शिवाजी,नितिन गडकरी समेत अन्य विभूतियों पर की गई टिप्पणी के बाद से ही महाराष्ट्र के राजनीतिक व सामाजिक गलियारे में तूफान मच गया था। विपक्षी दलों के प्रहार से नागपुर व दिल्ली में भी विशेष हलचल देखी गयी थी। कोश्यारी के बयानों से होने वाले राजनीतिक नुकसान को देखते हुए भाजपा हाईकमान ने भी जरूरी हस्तक्षेप किया और उनकी विदाई का मन बना लिया था।
इसके बाद ही कोश्यारी ने पीएम मोदी को कह दिया था कि उन्हें राज्यपाल के कार्यभार से मुक्त कर दिया जाय। अब वो बाकी समय उत्तराखण्ड में अध्ययन-मनन करके बिताना चाहते हैं। इस बाबत उन्होंने 23 जनवरी को भी ट्वीट किया था।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रहे भगत सिंह कोश्यारी के अपने मूल राज्य में शेष वर्ष बिताने की इच्छा मात्र से राजनीति का पारा एकदम से चढ़ गया था। कोश्यारी 80 साल के हो गए हैं। ऐसे में उन्हें कोई बड़ी राजनीतिक जिम्मेदारी दी जाय, फिलहाल मुमकिन नहीं लगता। लगता है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उम्र के लिहाज से कोश्यारी को राज्यपाल बनाकर एक मौका दे दिया था, आगे की संभावनाएं कम दिखती हैं।
सामाजिक, राजनीतिक सक्रियता और कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद बनाये रखना कोश्यारी को पार्टी के अन्य नेताओं सेअलग करता है। यही कारण है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल रहते हुए भी कोश्यारी के उत्तराखण्ड में दौरे लगते रहे और हर दौरे में वे कुछ न कुछ ‘सन्देश’ देकर गए। शुरुआती दौर में जब सीएम पुष्कर सिंह धामी का दिल्ली दौरा होता था तो भगत दा भी ठीक उन्हीं दिनों दिल्ली में होते थे। चूंकि,राज्य गठन के समय कोश्यारी ऊर्जा मंत्री बनाये गए थे तो युवा पुष्कर सिंह धामी उनके काफी निकट के ओएसडी होते थे।
लिहाजा, राज्यपाल कोश्यारी के बारे में ये माना गया कि वे अपने निकटस्थ पुष्कर सिंह धामी की मदद के लिए ही मुंबई से दिल्ली आए हैं। प्रदेश की नौकरशाही के एक बड़े हिस्से को भी भगत दा इस तरह का विशेष संदेश देने में सफल रहे। धामी के पहले कार्यकाल में राज्यपाल कोश्यारी का अक्सर दिल्ली प्रवास भी राज्य में खूब चर्चा का विषय बना।
हालांकि, पुष्कर सिंह धामी के मार्च 2022 के बाद के मौजूदा कार्यकाल में राज्यपाल कोश्यारी का दिल्ली दौरा पहले की तरह तो नहीं हुआ। अलबत्ता, उत्तराखण्ड में उनके दौरे जारी रहे। इस बीच, सीएम पुष्कर सिंह धामी भी लम्बी लकीर खींचने की कोशिश में जुटे हुए हैं। कोश्यारी की घर वापसी से भाजपा के अंदर विभिन्न गुटों में हलचल है।
साल 2000 में राज्य बनने के बाद डॉक्टर नित्यानंद स्वामी, फिर कोश्यारी, 2007 में बीसी खंडूड़ी, फिर निशंक, फिर खंडूड़ी, 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत व 2022 में पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने के पीछे अपरोक्ष रूप से भगत सिंह कोश्यारी का हाथ रहा है। उन्हें उठापटक की राजनीति का माहिर भी माना जाता है। वाबजूद इसके बदले हुए राजनीतिक परिवेश में कोश्यारी की घर वापसी ऐसे समय में हो रही है जब धामी सरकार के सामने सरकारी भर्तियों के अलावा कई चुनौतियों हर दिन नया रूप अख्तियार कर रही हैं। विपक्ष लगातार हमला कर रहा है।
कोश्यारी के बारे में कहा जाता है कि उनकी भाजपा के अलावा विरोधी दलों व अधिकारियों में अच्छी पकड़ है। कार्यकर्ताओं से निरंतर संवाद के कारण संगठन में भी गहरी पकड़ है। इसके कारण सरकार व संगठन के ऊपर कोश्यारी की मौजूदगी का मनोवैज्ञानिक दवाब तो रहेगा ही,साथ ही सत्ता प्रतिष्ठान को मुद्दों को हल करने में उनका मिलेगा।
चंपावत उपचुनाव जीतने के बाद पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड की कई चुनौतियों से जूझ रहे है। बेरोजगार युवाओं का आन्दोलन, जोशीमठ आपदा, भर्ती घोटाले व अंकिता भंडारी हत्याकांड जैसे ज्वलन्त मुद्दों की उठ रही लपटों के बीच मुंबई छोड़ उत्तराखण्ड आ रहे बुजुर्ग भगत सिंह कोश्यारी का ‘स्टडी प्लान’ युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी का कितना मार्गदर्शन कर पायेगा, देखने वाली बात अब यही ही है