– साहसिक पर्यटन के लिए जार्ज एवरेस्ट की जमीन चहेती कम्पनी को देने पर कांग्रेस ने बोला हमला
– कांग्रेस पूर्व विधायक मनोज रावत ने टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी का लगाया आरोप
– तीन कम्पनियों के बुक्स आफ एकाउंट्स का पता एक ही है पतंजलि योगपीठ
पहाड़ का सच देहरादून। मसूरी में जॉर्ज एवरेस्ट की अरबों की जमीन को नियम विरुद्ध किराए पर दिए जाने पर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं। केदारनाथ से कांग्रेस के पूर्व विधायक मनोज रावत ने भू कानून के मुद्दे पर आंकड़े पेश कर सरकार की घेराबंदी की। उन्होंने मसूरी के पर्यटक स्थल जार्ज एवरेस्ट की जमीन एक कम्पनी को नियम विरुद्ध कम किराए दर पर देने पर भी सवाल उठाए। टेंडर प्रक्रिया की कमियों और सरकार के राजस्व हानि पर भी पर्यटन विभाग के अधिकारियों की मंशा पर सवाल किए।
हैरत की बात यह है कि टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने वाली तीनों कम्पनियों के बुक्स आफ एकाउंट्स का पता एक ही है-पतंजलि योगपीठ। दो कंपनियों का तो साहसिक पर्यटन से कोई लेना देना ही नहीं। पहली कम्पनी का नाम है-प्रकृति ऑर्गेनिक्स प्राइवेट लिमिटेड, दूसरी कम्पनी-भरुआ एग्री साइंस प्राइवेट लिमिटेड और टेंडर झटकने वाली तीसरी कम्पनी का नाम है राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवेंचर प्राइवेट लिमिटेड’’ । जबकि शुरुआती दो कम्पनियों का पंजीकृत पता स्वामी रामदेव से जुड़े संस्थान व उपक्रम के दिये हुए हैं।
शनिवार को दून में आहूत प्रेस वार्ता में पूर्व विधायक मनोज रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य बनते समय ‘‘ पार्क ईस्टेट ’’ की हाथी पांव इलाके में 422 एकड़ भूमि थी।इसमें से 172 एकड़ जमीन उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग ने स्वर्गीय एमसीशाह परिवार , स्वर्गीय सीपीशर्मा जो यमकेश्वर के मराल गांव के मूल निवासी थे , अभिनेत्री अर्चना पूरण सिंह के पिता स्वर्गीय पूरण सिंह आदि से पर्यटन विकास के लिए 1990 से लेकर 1992 तक अधिग्रहीत की थी।
उन्होंने कहा कि दिल्ली से सबसे नजदीक हिल स्टेशन मसूरी की यह सरकारी जमीन उत्तराखण्ड की सबसे बेशकीमती जमीन में एक है । इसलिए देश- विदेश के सारे बड़े उद्योगपतियों और करोबारियों की नजर इस जमीन पर थी। उत्तर प्रदेश के जमाने में समाजवादी पार्टी की सरकार में इस जमीन को एस्सल वर्ड को देने की बात चली थी लेकिन भारी जनविरोध के कारण तब की सरकार ने यह फैसला नहीं लिया।पूर्व विधायक ने कहा कि जो काम उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार नही कर पायी उसे 19 जुलाई 2023 को उत्तराखण्ड के पर्यटन सचिव / उत्तराखण्ड पर्यटन विकास परिषद के वरिष्ठ अधिकारी के एक हस्ताक्षर से हो गया।
उत्तराखण्ड पर्यटन विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने 172 एकड़ में से 142 एकड़ भूमि ( 762 बीघा या 2862 नाली या 5744566 वर्ग मीटर ) ‘‘ राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवेंचर प्राइवेट लिमिटेड’’ को केवल 1 करोड़ रुपए सालाना किराए पर इस जमीन पर साहसिक पर्यटन से संबधित गतिविधियों के ऑपरेशंस , मैंनेजमैंट और डेवलपमेंट के नाम पर 15 साल के लिए दे दिया।इस 762 बीघा भूमि यानी 5744566 वर्ग मीटर भूमि का सरकारी रेटों से मूल्य आज के समय 2757,91,71,840 रुपया ( 2757 करोड़ के लगभग है। जमीन का यह रेट सरकारी सर्किल रेट के अनुसार है।
जमीन का वास्तविक बाजार मूल्य आम तौर पर इसके चार गुना और व्यवसायिक या पर्यटक स्थलों पर 10 गुना तक होता है। उत्तराखण्ड सरकार के पर्यटन विभाग के अधिकारियों ने खरबों रुपए की यह भूमि 15 साल के लिए साहसिक पर्यटन से संबधित किसी भी व्यवसायिक गतिविधि को चलाने के लिए दे दी थी। पर्यटन गतिविधियों में वहां से हेलीकॉप्टर संचालन भी था। पूर्व विधायक ने कहा कि केदारनाथ में 10 नाली जमीन से हेली संचालन करने वाली कंपनियां साल का ही 1 करोड़ किराया आदि में देती हैं। इस कंपनी की मांग पर पर्यटन विभाग ने समझौता हस्ताक्षरित करते समय शर्तों में एक बिंदु और जोड़ दिया जिसके अनुसार 15 साल काम करने के बाद भी यदि पर्यटन विभाग इस भूमि को फिर से इन गतिविधियों के लिए किसी कंपनी को देना चाहता हो तो उस समय भी उसे सबसे पहले इसी कंपनी को देना ही होगा।
कांग्रेस नेता ने कहा कि इस तरह उत्तराखण्ड की कीमती भूमि को उत्तराखण्ड सरकार के काबिल अधिकारियों ने हमेशा के लिए इस कंपनी को देने का पूरा कानूनी इंतजाम कर दिया। यह काम देने का रास्ता राज्य की कैबिनेट के एक निर्णय के बाद हुआ । मतलब साफ है कि इस जमीन के सौदे में पूरी सरकार सम्मलित थी।
जिस भूमि को 15 साल के लिए 1 करोड़ सालाना किराए में दिया गया उस भूमि का देने के लिए हुए टेंडर के वित्तीय वर्ष में ही पर्यटन विभाग ने उस भूमि पर एशियाई विकास बैंक से 23 करोड़ रुपए कर्ज लेकर उसे विकसित किया था। उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग के काबिल अधिकारी ही बता सकते हैं कि, कर्जे के 23 करोड़ खर्च कर जमीन को सजा-धजा कर उसकी सारी कमियां दूर कर 15 साल के लिए राज्य की अरबों की जमीन देकर किराए के रुप में 15 करोड़ कमाने का ये कौन सा विकास का माडल है।
सूचना अधिकार में मिली जानकारी से पता चला है कि, कर्जे के 23 करोड़ रुपए के काम में से भी 5 करोड़ रुपए के काम तो जमीन पर कहीं हुए ही नहीं , जो काम हुए हैं वे भी बेहद घटिया किस्म के हैं। ये काम भी उत्तराखण्ड में काम कर रही एक बड़ी दागी कम्पनी ने किया था। यह कम्पनी कई विभागों में अरबों के काम कर रही है।
‘‘राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवेंचर प्राइवेट लिमिटेड’’ को जिस टेंडर के माध्यम से यह काम दिया गया उस टेंडर की सारी प्रक्रिया ही इस कम्पनी को लाभ पंहुचाने के लिए किया गया।
तीनों कम्पनियों के ‘‘बुक आफ एकांउटस ’’ के एक ही कार्यालय एक ही स्थान- द्वितीय फलोर दिशा भवन पतंजलि योग पीठ- 1 महर्षि दयानंद ग्राम , निकट बहादराबाद हरिद्वार में हैं। इन तीनों कम्पनियों के कार्यालय, डाइरेक्टर या उनके पते किसी न किसी रुप में एक दूसरे से बहुत नजदीक से जुड़े हैं।
‘‘राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवेंचर प्राइवेट लिमिटेड’’ का पता ग्राम – भौन , नीलकंठ पट्टी उदयपुर तल्ला- 2 , यमकेश्वर पौड़ी गढ़वाल का है।
पूर्व विधायक ने सवाल किया कि इस गांव में कितनी पर्यटन गतिविधियां हो रही हैं और उससे कितने उत्तराखण्डियों को रोजगार मिला है। इस टेंडर को प्रकाशित करते समय पर्यटन विभाग ने टेंडर में भाग लेने के लिए कड़ी शर्तें रखी थी लेकिन ठीक टेंडर के दिन अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी , यूटीडीबी कर्नल अश्विनी पुंडीर के एक साधारण आदेश द्वारा एमएसएमई कम्पनियों को भी इस टेंडर में भाग लेने की अनुमति दे दी। अब कोई भी बता सकता है कि बिना अनुभव के स्टार्ट अप कंपनियां कैसे इस उत्तराखण्ड में पर्यटन विकास कर सकती हैं ?
इस तरह खरबों की इस भूमि को 15 साल के लिए देने के लिए किए गए टेंडर में भाग ले रही तीनों पारिवारिक कपंनियों में से एक ‘‘ राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवेंचर प्राइवेट लिमिटेड’’ ही सभी शर्तों को पूरा करती थी। उसके समर्थन में उतरी दो नई कम्पनियां कोई शर्तें पूरा नहीं करती थी। ये दोनों कम्पनियां किसी न किसी रुप में राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवेंचर प्राइवेट लिमिटेड से जुड़ी थी।
टेंडर की प्रक्रिया के सामान्य जानकार भी जानते हैं कि, यदि टेंडर में तीन से कम कंपनियां भाग ले रही हैं तो उसे निरस्त किया जाना चाहिए। टेंडर के दिन शर्तों में परिवर्तन इसी लिए किया गया था कि , राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवेंचर प्राइवेट लिमिटेड को टेंडर देने के लिए उसके समर्थन में दो कम्पनियों को खड़ा कर उसे अरबों की जमीन दी जा सके। टेंडर के दिन टेंडर की शर्तों में परिवर्तन कर दो अयोग्य कम्पनियों को टेंडर में भाग लेने की अनुमति देना उत्तराखण्ड सरकार के वित्त अनुभाग- 7 के 14 जुलाई 2017 की उत्तराखण्ड अधिप्राप्ति (प्रक्योरमैंट) नियमावली 2017 का उल्लंघन था। इस कम्पनी को जमीन देने की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी उस पटकथा में भी बहुत ही बड़ा घोटला और नियम विरुद्ध कार्य पर्यटन विभाग ने कर दिए थे ।
इस तरह उत्तराखण्ड की मसूरी जैसे हिल स्टेशन में खरबों की जमीन एक बेनामी सी कम्पनी जिसका संबध उत्तराखण्ड में जमीनों के सबसे बड़े सौदागरों में से एक ग्रुप से है,को उत्तराखण्ड सरकार के काबिल अधिकारियों ने पर्यटन विकास के नाम पर दे दी।2018 में उत्तराखण्ड जमीदारी विनाश अधिनियम में जो दो परिवर्तन किए गए उसका सबसे बड़ा फायदा उठाने वाला भी यही समूह है।
इस जमीन को कब्जे में लेने के बाद इस कम्पनी ने सबसे पहलें इस जमीन साथ लगी जमीनों और मकानों तक जाने वाले 200 साल से भी पुराने रास्ते को बंद कर दिया। जिसे खुलवाने के लिए स्थानीय निवासी आज भी संघर्ष कर रहे हैं। कंम्पनी तीन घंटे की पार्किग के लिए ही 400 रुपए वसूलती है और इस सड़क पर चलने के लिए 200 रुपए प्रति व्यक्ति लेती है।
कंपनी ने इस जमीन से जो कि ‘ विनोग हिल वल्र्ड सैंचुरी में पड़ती है से बिना अनुमति के व्यवसायिक हेलीकॉप्टर संचालन किया । आज भी इस भूमि से हेलीकॉप्टर संचालन हो रहा है। इस भूमि पर जार्ज एवरेस्ट हाउस जैसी बेशकीमती हेरिटेज प्रापर्टी भी है।
पूर्व विधायक ने आरोप लगाया कि सरकार ने पिछले साल केदारनाथ के लिए भी ‘‘ राजस एरो स्पोर्टस एण्ड एडवेंचर प्राइवेट लिमिटेड’’ को अकेले हेलीकॉप्टर उड़ाने की अनुमति देने की कोशिश की थी लेकिन विरोध के बाद इस विचार को बदल दिया।
उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार की नजर मसूरी के बाद रुद्रप्रयाग जिले के स्विटजरलैंड के नाम से जाने जाने वाले चोपता की जमीन पर है इसीलिए वहां स्थानीय बेरोजगार युवकों को उजाड़ने का काम किया जा रहा है।