ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल
*🌞~ वैदिक पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक – 6 सितम्बर 2024*
*⛅दिन – शुक्रवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2081*
*⛅अयन – दक्षिणायन*
*⛅ऋतु – शरद*
*🌦️ अमांत – 22 गते भाद्रपद मास प्रविष्टि*
*🌦️ राष्ट्रीय तिथि – 15 श्रावण मास*
*⛅मास – भाद्रपद*
*⛅पक्ष – शुक्ल*
*⛅तिथि – तृतीया दोपहर 03:01 तक तत्पश्चात चतुर्थी*
*⛅नक्षत्र – हस्त प्रातः 09:25 तक तत्पश्चात चित्रा*
*⛅योग – शुक्ल रात्रि 10:15 तक तत्पश्चात ब्रह्म*
*⛅राहु काल – प्रातः 10:41 से दोपहर 12:18 तक*
*⛅सूर्योदय – 05:56*
*⛅सूर्यास्त – 06:33*
*⛅दिशा शूल – पश्चिम दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:51 से 05:37 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:13 से दोपहर 01:03 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:15 सितम्बर 07 से रात्रि 01:01 सितम्बर 07 तक*
*⛅ व्रत पर्व विवरण – श्री वराह जयंती, हरितालिका तृतीया, स्वर्ण गौरी व्रत, चतुर्थी (चंद्र दर्शन निषिद्ध, चन्द्रास्त – रात्रि 08:56 तक),रूद्र सावर्णि मन्वादि*
*⛅विशेष – तृतीया को परवल खाना शत्रु वृद्धि करता है व चतुर्थी को मूली खाने से धन-नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹प्रायश्चित जप🔹*
*🔸पूर्वजन्म या इस जन्म का जो भी कुछ पाप-ताप है, उसे निवृत्त करने के लिए अथवा संचित नित्य दोष के प्रभाव को दूर करने के लिए प्रायश्चितरूप जो जप किया जाता है उसे प्रायश्चित जप कहते हैं ।*
*🔸कोई पाप हो गया, कुछ गल्तियाँ हो गयीं, इससे कुल-खानदान में कुछ समस्याएँ हैं अथवा अपने से गल्ती हो गयी और आत्म-अशांति है अथवा भविष्य में उस पाप का दंड न मिले इसलिए प्रायश्चित – संबंधी जप किया जाता है ।*
*🔸ॐ ऋतं च सत्यं चाभिद्धात्तपसोऽध्यजायत ।*
*ततो रात्र्यजायत तत: समुद्रो अर्णव: ।।*
*समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत ।*
*अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी ।।*
*सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् ।*
*दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्व: ।। (ऋग्वेद :मंडल १०, सूक्त १९०, मंत्र १ – ३ )*
*🔸इन वेदमंत्रों को पढ़कर त्रिकाल संध्या करें तो किया हुआ पाप माफ हो जाता है, उसके बदले में दूसरी नीच योनियाँ नहीं मिलतीं । इस प्रकार की विधि है ।*
*🔹लक्ष्मी कहाँ विराजती हैं ?🔹*
*🔸जहाँ भगवान व उनके भक्तों का यश गाया जाता है वहीँ भगवान की प्राणप्रिया भगवती लक्ष्मी सदा विराजती है । (श्रीमद् देवी भागवत )*
*🔹घृतकुमारी (ग्वारपाठा) रस 🔹*
*🔸घृतकुमारी शरीर गत दोषों व मल के उत्सर्जन के द्वारा शरीर को शुद्ध व सप्तधातुओं को पुष्ट कर रसायन का कार्य करती है I*
*🔸विविध त्वचा विकार, पीलिया, रक्ताल्पता, कफजन्य ज्वर, हड्डियों का बुखार, नेत्ररोग, स्त्रीरोग, जलोदर, घुटनों व अन्य जोड़ों का दर्द, जलन, बालों का झड़ना, आदि में उपयोगी है I*
*🔸पेट के पुराने रोग, चर्मरोग, गठियाव व मधुमेह (डायाबिटीज) में यह विशेष लाभप्रद है I*
*🔸रस की मात्रा : बच्चों के लिए ५ से १५ मी.ली. तथा बड़ों के लिए १५ से २५ मी.ली. रस सुबह खाली पेट लें I*
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