ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल
*🌞~ वैदिक पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक – 19 अगस्त 2024*
*⛅दिन – सोमवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2081*
*⛅अयन – दक्षिणायन*
*⛅ऋतु – वर्षा*
*🌦️ अमांत – 4 गते भाद्रपद मास प्रविष्टि*
*🌦️ राष्ट्रीय तिथि – 29 श्रावण मास*
*⛅मास – श्रावण*
*⛅पक्ष – शुक्ल*
*⛅तिथि – पूर्णिमा रात्रि 11:55 अगस्त 19 तक तत्पश्चात प्रतिपदा*
*⛅नक्षत्र – श्रवण प्रातः 08:10 तक, तत्पश्चात धनिष्ठा प्रातः 05:45 अगस्त 20 तक, तत्पश्चात शतभिषा*
*⛅योग – शोभन रात्रि 12:47 अगस्त 20 तक तत्पश्चात अतिगण्ड*
*⛅राहु काल – प्रातः 07:28 से प्रातः 09:05 तक*
*⛅सूर्योदय – 05:47*
*⛅सूर्यास्त – 06:54*
*⛅दिशा शूल – पूर्व दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:48 से 05:33 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:17 से दोपहर 01:09 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:21 अगस्त 20 से रात्रि 01:06 अगस्त 20 तक*
*⛅ व्रत पर्व विवरण – श्रावणी पूर्णिमा, रक्षाबंधन, हयग्रीव जयंती, गायत्री जयंती, संस्कृत दिवस, श्रावण सोमवार व्रत, ऋग्वेद उपाकर्म, यजुर्वेद उपाकर्म, सर्वार्थ सिद्धि योग (प्रातः 06:18 से प्रातः 08:10 तक)*
*⛅विशेष – भद्रा काल में राखी बांधना निषिद्ध है। भद्रा का समय (प्रातः 06:18 से दोपहर 01:32 तक)। पूर्णिमा के दिन स्त्री-सहवास और तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🌹रक्षाबन्धन : 19 अगस्त 2024🌹*
*🔹सर्व मंगलकारी वैदिक रक्षासूत्र🔹*
*🌹 भारतीय संस्कृति में ‘रक्षाबन्धन पर्व’ की बड़ी भारी महिमा है । इतिहास साक्षी है कि इसके द्वारा अनगिनत पुण्यात्मा लाभान्वित हुए हैं फिर चाहे वह वीर योद्धा अभिमन्यु हो या स्वयं देवराज इन्द्र हो । इस पर्व ने अपना एक क्रांतिकारी इतिहास रचा है ।*
*🔹वैदिक रक्षासूत्र🔹*
*🌹 रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है । यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम व भगवद् भाव सहित शुभ संकल्प करके बाँधा जाता है तो इसका सामर्थ्य असीम हो जाता है ।*
*🔸कैसे बनायें वैदिक राखी ?🔸*
*🌹 वैदिक राखी बनाने के लिए एक छोटा सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें । उसमें दूर्वा, अक्षत (साबुत चावल) केसर या हल्दी, शुद्ध चन्दन, सरसों के साबुत दाने-इन पाँच चीजों को मिलाकर कपड़े में बाँधकर सिलाई कर दें । फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें । सामर्थ्य हो तो उपरोक्त पाँच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी डाल सकते हैं ।*
*🔸वैदिक राखी का महत्त्व🔸*
*🌹 वैदिक राखी में डाली जाने वाली वस्तुएँ हमारे जीवन को उन्नति की ओर ले जाने वाले संकल्पों को पोषित करती हैं’ ।*
*🌹दूर्वा : जैसे दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाती है, वैसे ही ‘हमारे भाई या हितैषी के जीवन में भी सदगुण फैलते जायें, बढ़ते जायें…..’ इस भावना का द्योतक है दूर्वा । दूर्वा गणेश जी की प्रिय है अर्थात् हम जिनको राखी बाँध रहे हैं उनके जीवन में आने वाले विघ्नों का नाश हो जाय ।*
*🌹 अक्षत (साबुत चावल) : हमारी भक्ति और श्रद्धा भगवान के, गुरु के चरणों में अक्षत हो, अखण्ड और अटूटट हो, कभी क्षत-विक्षत न हों – यह अक्षत का संकेत है । अक्षत पूर्णता की भावना के प्रतीक हैं। जो कुछ अर्पित किया जाय, पूरी भावना के साथ किया जाय ।*
*🌹 केसर या हल्दी : केसर की प्रकृति तेज होती है अर्थात् हम जिनको यह रक्षासूत्र बाँध रहे हैं उनका जीवन तेजस्वी हो । उनका आध्यात्मिक तेज, भक्ति और ज्ञान का तेज बढ़ता जाय । केसर की जगह पर पिसी हल्दी का भी प्रयोग कर सकते हैं। हल्दी पवित्रता व शुभ का प्रतीक है। यह नजरदोष न नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है तथा उत्तम स्वास्थ्य व सम्पन्नता लाती है ।*
*🌹चंदन : चन्दन दूसरों को शीतलता और सुगंध देता है । यह इस भावना का द्योतक है कि जिनको हम राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में सदैव शीतलता बनी रहे, कभी तनाव न हो । उनके द्वारा दूसरों को पवित्रता, सज्जनता व संयम आदि की सुगंध मिलती रहे । उनकी सेवा-सुवास दूर तक फैले ।*
*🌹 सरसों : सरसों तीक्ष्ण होती है । इसी प्रकार हम अपने दुर्गुणों का विनाश करने में, समाज द्रोहियों को सबक सिखाने में तीक्ष्ण बनें ।*
*🌹अतः यह वैदिक रक्षासूत्र वैदिक संकल्पों से परिपूर्ण होकर सर्व मंगलकारी है । यह रक्षासूत्र बाँधते समय यह श्लोक बोला जाता हैः*
*येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।*
*तेन त्वां अभिबध्नामि। रक्षे मा चल मा चल।।*
*🌹 इस मंत्रोच्चारण व शुभ संकल्प सहित वैदिक राखी बहन अपने भाई को, माँ अपने बेटे को, दादी अपने पोते को बाँध सकती है । यही नहीं, शिष्य भी यदि इस वैदिक राखी को अपने सदगुरु को प्रेमसहित अर्पण करता है तो उसकी सब अमंगलों से रक्षा होती है तथा गुरुभक्ति बढ़ती है ।*
*🌹 शिष्य गुरु को रक्षासूत्र बाँधते समय ‘अभिबध्नामि’ के स्थान पर ‘रक्षबध्नामि’ कहे ।*