पहाड़ का सच, चार धाम यात्रा पर विशेष।
चार धाम यात्रा को हिंदू धर्म में विशेष महत्व दिया गया है। जब भी भक्त के मन में धार्मिक यात्रा का विचार आता है, जो मस्तिष्क में ‘चार धाम यात्रा की छवि उभर जाती है। कदम स्वयं ही इन धामों की ओर चल पड़ते हैं। आस्था की इस यात्रा का शुभारंभ हो चुका है। देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोग देवताओं के दर्शन के लिए यहां आ रहे हैं। हिंदू धर्म में केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को चार धाम के रूप में मान्यता मिली है।
सिखों के तीर्थस्थल हेमकुंट को पांचवां धाम कहा जाता है। इसकी यात्रा की शुरुआत फूलों की घाटी से होती है। यहां की नैसर्गिक छटा मन मोह लेती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार केदारनाथ को भगवान शिव और बदरीनाथ को भगवान विष्णु का निवास स्थान माना जाता है।
यमुनोत्री और गंगोत्री को धरती पर ईश्वरीय साक्ष्य के रूप में माना जाता है। चारों धाम की यात्रा को यात्रा से बढ़कर जीवन दर्शन कहना तर्कसंगत होगा। यही कारण है कि यात्रा के पहले दिन से अंत तक श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी रहता है। हमेशा से प्रकृति और ईश्वर को एक दूसरे से जोड़कर देखा जाता रहा है। कुछ तो ऐसे कारण रहे होंगे, जो ईश्वर ने इन स्थानों को अपने निवास के लिए चुना होगा।इस ऐतिहासिक यात्रा के दौरान भक्तों को धार्मिक यात्रा के साथ-साथ नई रीति रिवाजों और संस्कृतियों के साथ प्रकृति को समझने का भी मौका मिलता है।
इन चारों धामों की स्थापना और इनके महत्व को लेकर कई तरह की मान्यताएं और कहानियां हैं। कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। भविष्य में आने वाली परेशानियां अपना मार्ग बदल देती हैं। इसी विश्वास के साथ भक्त आस्था की महायात्रा करते हैं। यात्रा के दौरान भक्त यहां अपनी धार्मिक इच्छाओं को पूरा करते हैं और प्रकृति के सौंदर्य के भी साक्षी बनते हैं।
बात चाहे तप्तकुंड से निकलने वाले गर्म जल की हो या फिर गंगा के भीतर उभरती शिवलिंग आकृति की हो, ऐसा लगता है कि भगवान अदृश्य शक्ति के रूप में यहां मौजूद हैं। इन्हीं वजहों से मानव प्रकृति और ईश्वर की मान्यताओं को स्वीकार करता है और उसकी आस्था और प्रबल होती रही है।
हरीश जोशी, ए के डंडरियाल
(पहाड़ का सच संपादकीय टीम)