पहाड़ का सच/एजेंसी
नई दिल्ली। दिल्ली सरकार के मंत्री राजकुमार आनंद ने पार्टी में दलितों को प्रतिनिधित्व नहीं दिए जाने का आरोप लगाते हुए बुधवार को कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया और आम आदमी पार्टी भी छोड़ दी। दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान समाज कल्याण सहित विभिन्न विभागों का प्रभार संभाल रहे आनंद ने आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी (आप) के शीर्ष नेताओं में कोई दलित नहीं है।
राजकुमार आनंद ने कहा कि यह पार्टी दलित विधायकों, पार्षदों और मंत्रियों का सम्मान नहीं करती है। ऐसे में सभी दलित ठगा हुआ महसूस करते हैं। हम एक समावेशी समाज में रहते हैं, लेकिन अनुपात के बारे में बात करना गलत नहीं है । मेरे लिए पार्टी में बने रहना मुश्किल है। इन सभी चीजों के साथ, इसलिए मैं पद से इस्तीफा दे रहा हूं।
उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भी कटाक्ष किया, जो दिल्ली शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में न्यायिक हिरासत में भेजे जाने के बाद तिहाड़ जेल में हैं और दिल्ली हाईकोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिली है। पटेल नगर निर्वाचन क्षेत्र से विधायक आनंद ने कहा कि जंतर मंतर से अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि राजनीति बदलते ही देश बदल जाएगा। राजनीति नहीं तो नहीं बदली है, लेकिन राजनेता जरूर बदल गए हैं।
अपने इस्तीफे के समय के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में आनंद ने कहा कि यह समय के बारे में नहीं है। कल तक हम यही समझ रहे थे कि हमें फंसाया जा रहा है, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले के बाद ऐसा लगता है कि हमारी ओर से कुछ गड़बड़ है। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को केजरीवाल की गिरफ्तारी और उसके बाद रिमांड को बरकरार रखा और कहा कि बार-बार समन जारी करने और जांच में शामिल होने से इनकार करने के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के पास ‘थोड़ा विकल्प’ बचा था।
राजकुमार आनंद ने कहा कि मैं दिल्ली सरकार में मंत्री हूं, मेरे पास सात विभाग हैं। आज मैं बहुत व्यथित हूं, इसलिए दुख साझा करने आया हूं। मैं राजनीति में तब आया था जब अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि राजनीति बदलेगी तो देश बदलेगा, लेकिन आज अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि राजनीति तो नहीं बदली, लेकिन राजनेता बदल गए। आम आदमी पार्टी का जन्म भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से हुआ था, लेकिन आज यह पार्टी ख़ुद भ्रष्टाचार के दलदल में फंस चुकी है। मेरे लिए मंत्री पद पर रह कर इस सरकार में काम करना असहज हो गया है ।
इस पार्टी में दलित विधायक और मंत्री का कोई सम्मान नहीं है। सरकार या संगठन में इनके अग्रिम नेताओं में कोई भी दलित नहीं है किसी राज्य का प्रभारी दलित नहीं है। ऐसे हालात में सभी अपने आप को दलित ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। रिज़र्वेशन तो संवैधानिक मजबूरी है, लेकिन जब बात रिप्रेजेंटेशन की आती है। जब दलित समाज अपने लोगों को भेजने की बात करता है। यहां 13 राज्यसभा सांसद हैं आम आदमी पार्टी के, लेकिन उनमें से एक भी दलित या पिछड़ा या महिला नहीं है। पिछले साल विधानसभा में कई रिसर्च फेलो की भर्ती हुई, लेकिन उनमें एक भी दलित को नहीं लिया गया। मेरे होते यह काम न हों यो फिर यहां क्या करूंगा. प्रतिनिधित्व और प्रोपोर्सन की बात करना गलत नहीं है. यह समय की बात नहीं है, आदमी घुट रहा होता है और फिर अचानक फ़ैसला करता है. कल जो हाईकोर्ट ने बोला उसके बाद लगाकि अब सब कुछ स्पष्ट है. रखने को दलित मंत्री रख लिए जाए और फिर कॉर्नर मीटिंग चालू हो जाती है.