पहाड़ का सच
काफल हिमालयी क्षेत्र में पाया जाने वाला खास फल है. रसभरी जैसा स्वाद वाला काफल बेहद ही स्थानीय फल है. यह नाजुक सा फल बहुत ज्यादा दिन नहीं टिकता है. यह देवदार व बांज के पेड़ों के बीच में उगता है. स्थानीय लोग इसे इस खट्टे-मीठे फल को नमक या सेंधा नमक और मिर्च पाउडर के साथ खाना पसंद करते हैं. शुरू में इसका रंग हरा होता है और अप्रैल माह के आखिर में यह फल पककर तैयार हो जाता है, तब इसका रंग सुर्ख लाल हो जाता है. चूंकि पहाड़ी क्षेत्र में यह यह कम और सीमित अवधि में उगता है, इसलिए स्थानीय बाजार में ही बिक जाता है.
फूड हिस्टोरियन काफल की उत्पत्ति हिमालय क्षेत्र में मानते हैं. उनका कहना है कि यह एक तरह का जंगली फल है और हिमालय के इलाकों में यह हजारों साल से अपने जलवे बिखेर रहा है. यह उत्तराखंड के अलावा जहां-जहां हिमालय श्रृंखला है, वहां यह उगता है इनमें असम की पर्वत श्रृंखलाओं के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, असम, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम आदि इलाके शामिल हैं. अलग-अलग इलाकों में इसके अलग नाम हैं और स्वाद व गुणों में भी कुछ न कुछ फर्क भी है.
ऐसा भी कहा जाता है कि काफल की अन्य प्रजातियां भारत के अलावा नेपाल, चीन, वियतनाम, श्रीलंका, सिलहट , पाकिस्तान और जापान में भी पाई जाती है. यानी यह कन्फर्म है कि काफल एशियाई फल है. आपको यह भी बताते चलें कि इस फल से जुड़ी कुछ अन्य प्रजातियां कुछ पश्चिमी देशों में भी मिलती है. कापल का उपयोग सीधे खाने के अलावा सिरप, जैम, अचार और ताजा कोल्ड ड्रिंक्स बनाने के लिए भी किया जाता है.
एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर काफल
गुणों के मामले में काफल बेहद शानदार है. कहा जाता है कि पहाड़ी लोगों को स्वस्थ रखने में इस फल की विशेष भूमिका है. उसका कारण यह है कि काफल एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है, इसलिए यह शरीर का कई रोगों से बचाव करता है. यह पेट से जुड़े सभी रोगों में कारगर है. भारतीय जड़ी-बूटियों. फलों व सब्जियों पर व्यापक रिसर्च करने वाले जाने-माने आयुर्वेद विशेषज्ञ आचार्य बालकिशन के अनुसार आयुर्वेद में सदियों से काफल का प्रयोग औषधि के रुप में इस्तेमाल किया जाता रहा है. काफल प्रकृति से तीखा, गर्म और लघु होता है. यह कफ और वात को कम करने वाला है. इसे दर्द निवारक भी माना जाता है. तथा रुचिकारक होता है. इसके साथ ही यह शुक्राणु के लिए फायदेमंद और दर्दनिवारक भी होता है.
पहाड़ी लोगों का यह इसलिए प्रिय फल है, क्योंकि काफल सांस संबंधी समस्या, पेट रोग, डायबिटीज, पाइल्स, अपच, ज्वर, एनीमिया, सूजन और जलन में फायदेमंद होता है. परंपरागत रूप से इसकी छाल, जड़ और पत्तियों का उपयोग विभिन्न बीमारियों और विकारों के इलाज के लिए भी किया जाता है. इसकी छाल का उपयोग कागज और रस्सी बनाने के लिए भी किया जाता है.
यह पेट के कई तरह के विकार को रोकता है, जिनमें अतिसार, अल्सर, गैस, कब्ज, एसिडीटी वगैरह शामिल है. इसकी विशेषता यह भी है कि काफल एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है जो शरीर को खांसी, पुरानी ब्रोंकाइटिस, अल्सर, एनीमिया, बुखार, दस्त के अलावा कान, नाक और गले के विकारों से बचाता है. इसके पेड़ की छाल में एक विशेष प्रकार की खुशबू होती है, जिसका पाउडर जुकाम, आंख की बीमारी व सिरदर्द में सूंघने पर आराम देती है. यह विभिन्न प्रकार की एलर्जी में भी लाभकारी है. सामान्य मात्रा में काफल को खाने से कोई साइड इफेक्ट नहीं है, लेकिन अधिक मात्रा में खाने पर यह पेट में दर्द पैदा कर सकता है. बहुत अधिक खा लिया तो उलटी और लूजमोशन भी हो सकते हैं.