हरीश जोशी, पहाड़ का सच
एकरूपता और सामूहिकता के इस पर्व की सबसे बड़ी खूबी है कि यह ऊंच-नीच, छोटे-बड़े, जात पात की दीवारों को तोड़कर हमारी बहुल होने की सांस्कृतिक विविधता का प्रतिनिधित्व करता है। इतना ही नहीं खुले मन से दुश्मनों को भी गले लगाने का आह्वान करता है।
कोरोना महामारी के बाद यह पहली बार है, जब रंगों के उत्सव होली के मौके पर न सिर्फ देश भर में आवाजाही निर्बाध रूप से जारी है, बल्कि बाजार भी पूरी तरह खुले हुए हैं, ऐसे में आपसी प्रेम और सामाजिक सद्भाव के इस त्योहार पर लोगों में उत्साह सहज और स्वाभाविक है। बेशक महंगाई ने लोगों की खुशियों का रंग थोड़ा फीका कर दिया है, लेकिन यह त्योहार ऐसे समय आता , जब नई फसलें कटकर घर आती है और किसानों का मन खिला- खा रहता है। वसंत पूर्णिमा के इस मौके पर प्रकृति भी विभिन्न रंगों , फूलों के परिधान में निखरी निखरी नजर आती है और पतझड़ के पेड़-पौधों में नई कोंपलें खिलती हैं। फागुन की मदमाती हवा बुर्जुगों में भी नवजीवन के प्राण भरती है। इस तरह से यह संदेश देता है कि हमें पुराने गम, पुरानी रंजिशें और पुराने भेदभाव भुलाकर नई राह पर आगे बढ़ना है। सामूहिकता के इस त्योहार की सबसे बड़ी खूबी है कि यह ऊंच-नीच, छोटे-बड़े, जात पात की दीवारों को तोड़कर हमारी बहुलतावादी सांस्कृतिक विविधता का प्रतिनिधित्व करता है और खुले मन से दुश्मनों को भी गले लगाने का आह्वान करता है। जीवंतता का यह उत्सव जड़ता को तोड़कर नवता का संदेश देते हुए संक्रांति को भी संस्कृति में बदल देता है। इस पर्व की गरिमा इसी में है कि हम इसकी मर्यादा बनाए रखें और दूसरों को परेशान करने, अपमानित करने की उदंडता से परहेज करें। इस पर्व के साथ नशाखोरी की बुराई भी जुड़ी है, लेकिन उससे दूर रहकर ही उत्सव का मौलिक आनंद लिया जा सकता है।