पहाड़ का सच, उत्तरकाशी।
जनपद में धूमधाम से मनाई गई मंगसीर बग्वाल, मंगसीर बग्वाल, उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में मनाया जाने वाला एक त्योहार है। यह त्योहार दिवाली के एक महीने बाद मनाया जाता है। इस त्योहार को मनाने के पीछे एक लोक कथा है। इस कथा के मुताबिक, दीपावली के बाद ग्रामीण खेती-बाड़ी का काम खत्म हो जाता है। इसके बाद अनाज को भंडारण कर सर्दियों के इंतज़ार में मंगसीर बग्वाल मनाया जाता है। इस दौरान ब्याही हुई बेटियां भी मायके आती हैं।
मंगसीर बग्वाल के अंतिम दिन दिन वीर भड़ नरू-बिजू और माधो सिंह भंडारी के नाम रही। रामलीला मैदान में आयोजित वीर भड़ों के नाट्य मंचन में खाती गुसैं जाति के नरू-बिजू और उनके पंडित के संवादों ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। उसके बाद भड़ों की अनुमति के बाद अग्नि पूजन के बाद भेलो घूमाया गया और स्थानीय महिलाओं ने रासो तांदी नृत्य का आयोजन किया। तीन दिवसीय मंगसीर बग्वाल का रंगारंग कार्यक्रमों के साथ समापन हुआ। तीसरे दिन की मुख्य बग्वाल का शुभारंभ मांगल गीतों के साथ हुआ और उसके बाद पुरुष और महिलाओं की रस्साकशी आयोजन किया गया।
कंडार देवता मंदिर से वीर भड़ नरू-बिजू और माधो सिंह भंडारी के साथ स्थानीय लोगों ने झांकी निकाली। इस दौरान विभिन्न क्षेत्रों और गांवों से आए लोगों और महिलाओं ने पूरे नगर क्षेत्र में ढोल दमांऊ और रणसींगे के साथ तुम त होला द्वी भाई नरो बिजोला पर रासो तांदी नृत्य किया। मोरी के सूदूरवर्ती केदारकांठा क्षेत्र से आए लोगों ने रवांई की संस्कृति को पेश किया।
रामलीला मैदान में झांकी पहुंचने के बाद नरू-बिजू और पंडित और माधों सिंह भंडारी की नृत्य नाटिका दर्शकों ने जमकर लुत्फ उठाया। देर रात्री में लोग हिमांचली गायक एसी भारद्वाज और लोकगायक संजय और प्रियांशु के गीतों पर झूमे।