– जिम कॉर्बेट के पाखरों रेंज घोटाले में आईएफएस अफसर राहुल हैं आरोपी, चल रही है जांच
– बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी, कहा,सीएम हैं राजा नहीं
पहाड़ का सच /एजेंसी।
नई दिल्ली। चर्चित जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के पाखरो रेंज में अवैध निर्माण की जांच में फंसे आईएफएस अधिकारी राहुल को राजा जी नेशनल पार्क के निदेशक पद से हटाने के बाद हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका रद्द कर दी है लेकिन सरकार के लिए तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि जिन्होंने नियुक्ति की है वे सीएम हैं कोई राजा नहीं जो मनमर्जी के फैसले करें।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी राहुल को राजाजी टाइगर रिजर्व का निदेशक नियुक्त करने के फैसले के खिलाफ कुछ सख्त टिप्पणियां कीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, “हम सामंती युग में नहीं हैं, राजा जो बोले वैसे चले”। कोर्ट ने आगे कहा, “सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत नाम की कोई चीज होती है… सिर्फ इसलिए कि वह मुख्यमंत्री हैं, क्या वह कुछ कर सकते हैं? बता दें कि, आईएफएस अधिकारी राहुल के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित है।
न्यायमूर्ति बी आर गवई की अगुवाई वाली और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति वीके विश्वनाथन की तीन न्यायाधीशों की बेंच ने कहा कि, “मुख्यमंत्री सभी की सलाह के खिलाफ गए हैं… वह इन सभी आपत्तियों पर विचार नहीं करते हैं. उन्हें (मुख्यमंत्री को) कारण बताना होगा कि (राहुल को क्यों नियुक्त किया गया)?… वह (मुख्यमंत्री) सब कुछ अनदेखा कर रहे हैं। उन्हें कारण बताना होगा कि वह नौकरशाह और वन मंत्री से असहमत क्यों हैं?”।
सुप्रीम कोर्ट जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई के मामले की सुनवाई कर रहा था। बेंच को बताया गया कि आईएफएस अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही लंबित होने के दौरान उन्हें राजाजी नेशनल पार्क में निदेशक के पद पर नियुक्त किया गया। पीठ ने पूछा, क्या यह सच है कि वन मंत्री और मुख्य सचिव ने उनकी नियुक्ति का विरोध किया था? उत्तराखंड सरकार के वकील ने कहा, “सिविल सेवा बोर्ड ने कभी भी राजाजी टाइगर रिजर्व के लिए किसी की सिफारिश नहीं की। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “उप सचिव से लेकर उनके (राहुल) खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू की गई है और सीबीआई जांच चल रही है। इसलिए, उन्हें टाइगर रिजर्व में कहीं भी तैनात नहीं किया जाना चाहिए। इसका उप सचिव, प्रमुख सचिव और वन मंत्री ने समर्थन किया है, और इसको मुख्यमंत्री ने नजरअंदाज कर दिया है। आप उन्हें एक अच्छे अधिकारी का प्रमाणपत्र नहीं दे सकते”।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एएनएस नादकर्णी ने मुख्यमंत्री के फैसले का बचाव करते हुए तर्क दिया कि “सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने कभी उन्हें (राहुल) दोषी नहीं ठहराया, राज्य पुलिस ने कभी उन्हें दोषी नहीं ठहराया, ईडी ने कभी उन्हें दोषी नहीं ठहराया और सीबीआई ने भी उन्हें दोषी नहीं ठहराया। कभी भी उन्हें दोषी नहीं ठहराया। उनके खिलाफ सिर्फ अनुशासनात्मक कार्यवाही है।”जस्टिस गवई ने कहा, जब तक उन्हें विभागीय कार्यवाही में दोषमुक्त नहीं किया जाता, आप उन्हें एक अच्छे अधिकारी का प्रमाणपत्र नहीं दे सकते या उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही वापस नहीं ले सकते।
उन्होंने कहा कि, मुख्यमंत्री इस तरह के फ़ैसले नहीं ले सकते कि हम सामंती युग में नहीं हैं, राजा बोले वैसे चले। जब मंत्री सहित सभी अधीनस्थ अधिकारी कारणों के आधार पर सीएम को बताते हैं कि उन्हें राजाजी में तैनात नहीं किया जाना चाहिए, तो वह (सीएम) बस अनदेखा कर देते हैं।
पब्लिक ट्रस्ट सिद्धांत नाम की कोई चीज होती है
जस्टिस गवई ने नाडकर्णी से कहा, “पब्लिक ट्रस्ट सिद्धांत नाम की कोई चीज होती है… सिर्फ इसलिए कि वह मुख्यमंत्री हैं, क्या वह कुछ भी कर सकते हैं?” हालांकि, पीठ ने मुख्यमंत्री के संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया। राज्य सरकार के वकील ने कहा कि, कोई ऐसे अच्छे अधिकारी की बलि नहीं चढ़ा सकता जिसके खिलाफ कुछ भी नहीं है। पीठ ने पूछा, अगर कुछ नहीं है, तो आप उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही क्यों कर रहे हैं?” उन्होंने कहा कि जब तक प्रथम दृष्टया साक्ष्य नहीं मिलते, विभागीय कार्यवाही शुरू नहीं की जाती।
सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि सिविल सेवा बोर्ड ने 12 सिफारिशें की थीं और साकेत बडोला को राजाजी राष्ट्रीय उद्यान से जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में तैनात किया गया था। फिर राजाजी खाली हो गया। इस मामले में न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता के परमेश्वर ने कहा कि सिफारिश के बिना भी यह निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा कि, यह एक राजनीतिक निर्णय था। सिविल सेवा बोर्ड की सिफारिश के बिना ही आदेश पारित कर दिया गया। राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के नए निदेशक के नियुक्ति पर हुए विवाद पर परमेश्वर ने कहा कि राहुल पहले से ही पीसीएस कार्यालय में आईटी और आधुनिकीकरण के प्रभारी थे और बोर्ड ने राजाजी टाइगर रिजर्व के लिए किसी की सिफारिश नहीं की थी। इससे पहले, उत्तराखंड में आईएफएस अधिकारी राहुल को राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का नया निदेशक नियुक्त करने को लेकर विवाद खड़ा हो गया था, जबकि अधिकारी जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के पाखरो वन क्षेत्र में अवैध वृक्षों की कटाई और निर्माण में कथित संलिप्तता के लिए सीबीआई द्वारा जांच का सामना कर रहे हैं।
राजाजी नेशनल पार्क के निदेशक पद पर तैनात साकेत बडोला के तबादले के बाद राहुल को टाइगर रिजर्व में नियुक्त करने का फैसला किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया कि उत्तराखंड सरकार ने 3 सितंबर को राजाजी नेशनल पार्क के निदेशक के तौर पर आईएफएस अधिकारी की पिछली तैनाती वापस ले ली थी।