
ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल

*🌞~ वैदिक पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक – 09 नवम्बर 2025*
*⛅दिन – रविवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2082*
*⛅अयन – दक्षिणायण*
*⛅ऋतु – हेमंत*
*⛅ अमांत – 24 गते कार्तिक मास प्रविष्टि*
*⛅ राष्ट्रीय तिथि – 18 कार्तिक मास*
*⛅मास – मार्गशीर्ष*
*⛅पक्ष – कृष्ण*
*⛅तिथि – पञ्चमी रात्रि 01:54 नवम्बर 10 तक तत्पश्चात् षष्ठी*
*⛅नक्षत्र – आर्द्रा रात्रि 08:04 तक तत्पश्चात् पुनर्वसु*
*⛅योग – सिद्ध दोपहर 03:02 तक तत्पश्चात् साध्य*
*⛅राहुकाल – शाम 04:00 से शाम 05:20 तक (हरिद्वार मानक समयानुसार)*
*⛅सूर्योदय – 06:35*
*⛅सूर्यास्त – 05:26 (सूर्योदय एवं सूर्यास्त हरिद्वार मानक समयानुसार)*
*⛅दिशा शूल – पश्चिम दिशा में*
*⛅ब्रह्ममुहूर्त – प्रातः 04:54 से प्रातः 05:45 तक (उज्जैन मानक समयानुसार)*
*⛅अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11:48 से दोपहर 12:33 तक (उज्जैन मानक समयानुसार)*
*⛅निशिता मुहूर्त – रात्रि 11:45 से रात्रि 12:37 नवम्बर 10 तक (उज्जैन मानक समयानुसार)*
*🌥️विशेष – पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🔹बुद्धि का विकास और नाश कैसे होता है ?*🔹
*बुद्धि का नाश कैसे होता है और विकास कैसे होता है ? विद्यार्थियों को तो ख़ास समझना चाहिए न ! बुद्धि नष्ट कैसे होती है ? बुद्धि: शोकेन नश्यति । भूतकाल कि बातें याद करके ‘ऐसा नहीं हुआ, वैसा नही हुआ…’ ऐसा करके जो चिंता करते हैं न , उनकी बुद्धि का नाश होता है । और ‘मैं ऐसा करके ऐसा बनूंगा, ऐसा बनूंगा…’ यह चिंतन बुद्धि-नाश तो नहीं करता लेकिन बुद्धि को भ्रमित कर देता है । और ‘मैं कौन हूँ ? सुख-दुःख को देखनेवाला कौन ? बचपन बीत गया फिर भी जो नहीं बीता वह कौन ? जवानी बदल रही है, सुख-दुःख बदल रहा है , सब बदल रहा है, इसको जाननेवाला मैं कौन हूँ ? प्रभु ! मुझे बताओ …’ इस प्रकार का चिंतन, थोड़ा अपने को खोजना, भगवान के नाम का जप और शास्त्र का पठन करना- इससे बुद्धि ऐसी बढ़ेगी, ऐसी बढ़ेगी कि दुनिया का प्रसिद्द बुद्धिमान भी उसके चरणों में सिर झुकायेगा ।*
*🔹बुद्धि बढ़ाने के ४ तरीके🔹*
*१] शास्त्र का पठन*
*२] भगवन्नाम-जप, भगवद-ध्यान*
*३] आश्रम आदि पवित्र स्थानों में जाना*
*४] ब्रह्मवेत्ता महापुरुष का सत्संग-सान्निध्य*
*🔹जप करने से, ध्यान करने से बुद्धि का विकास होता है । जरा – जरा बात में दु:खी काहे को होना ? जरा – जरा बात में प्रभावित काहे को होना ? ‘यह मिल गया, वह मिल गया…’ मिल गया तो क्या है !*
*🔹ज्यादा सुखी – दु:खी होना यह कम बुद्धिवाले का काम है । जैसे बच्चे की कम बुद्धि होती है तो जरा- से चॉकलेट में, जरा-सी चीज में खुश हो जाता है, और जरा-सी चीज हटी तो दु:खी हो जाता है । वही जब बड़ा होता है तो चार आने का चॉकलेट आया तो क्या, गया तो क्या ! ऐसे ही संसार की जरा-जरा सुविधा में जो अपने को भाग्यशाली मानता है उसकी बुद्धि का विकास नहीं होता और जो जरा-से नुकसान में आपने को अभागा मानता है उसकी बुद्धि मारी जाती है । अरे ! यह सब सपना है, आता-जाता है । जो रहता है, उस नित्य तत्त्व में जो टिके उसकी बुद्धि तो गजब की विकसित होती है ! सुख-दुःख में, लाभ-हानि में, मान-अपमान में सम रहना तो बुद्धि परमात्मा में स्थित रहेगी और स्थित बुद्धि ही महान हो जायेगी ।*
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