

ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल

*🌞~ वैदिक पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक – 25 अगस्त 2025*
*⛅दिन – सोमवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2082*
*⛅अयन – दक्षिणायण*
*⛅ऋतु – शरद*
*⛈️ अमांत – 9 गते भाद्रपद मास प्रविष्टि*
*⛈️ राष्ट्रीय तिथि – 3 भाद्रपद मास*
*⛅मास – भाद्रपद*
*⛅पक्ष – शुक्ल*
*⛅तिथि – द्वितीया दोपहर 12:34 तक तत्पश्चात् तृतीया*
*⛅नक्षत्र – उत्तराफाल्गुनी रात्रि 03:50 अगस्त 26 तक तत्पश्चात् हस्त*
*⛅योग – सिद्ध दोपहर 12:06 तक तत्पश्चात् साध्य*
*⛅राहुकाल – सुबह 07:30 से सुबह 09:06 तक*
*⛅सूर्योदय – 05:49*
*⛅सूर्यास्त – 06:49*
*⛅दिशा शूल – पूर्व दिशा में*
*⛅ब्रह्ममुहूर्त – प्रातः 04:50 से प्रातः 05:35 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:16 से दोपहर 01:07*
*⛅निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:19 अगस्त 26 से रात्रि 01:04 अगस्त 26 तक*
*⛅️व्रत पर्व विवरण – वराह जयंती*
*⛅️विशेष – द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है व तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🔹अपनी प्रकृति अनुसार करें आहार सेवन🔹*
*🔸मानवीय प्रकृति में जिस दोष की प्रधानता होती है उसके प्रकोपजन्य व्याधियाँ होने की सम्भावना अधिक होती है । इनसे रक्षा के लिए आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक कहते हैं :*
*विपरीत गुणस्तेषां स्वस्थवृत्तेर्विधिर्हितः ।*
*🔸प्रकृति के विरुद्ध गुण का सेवन ही स्वास्थ्यवर्धक होता है । (च. सं., सूत्रस्थान ७.४१) इसलिए अपनी प्रकृति का निश्चय कर उसके अनुसार आहार-विहार का सेवन करना चाहिए ।*
*🔸सभी आहार द्रव्यों का लाभ प्राप्त करने हेतु पदार्थ जिस दोष को बढ़ाता है उसके शमनकारी पदार्थों का युक्तिपूर्वक संयोग कर सेवन करना हितकर है । जैसे- पालक वायुवर्धक है तो उसके साथ में वायुशामक सोआ डाला जाता है, अदरक, लहसुन, काली मिर्च, हींग आदि द्रव्यों के उपयोग से दालों व सब्जियों के तथा तेल, घी, नमक के द्वारा जौ, मकई आदि अनाजों के वायुवर्धक गुण का शमन किया जाता है ।*
*🔹आहार द्वारा वायु को संतुलित कैसे रखें ?🔹*
*🔸प्रकुपित वायु बल, वर्ण और आयु का नाश कर देती है । मन में अस्थिरता, दीनता, भय, शोक उत्पन्न करती है।*
*🔸 अकेले वात के प्रकोप से ८० प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं । प्रकुपित वायु का पित्त व कफ के साथ संयोग होने से उत्पन्न होनेवाले रोग असंख्य हैं । वायु अतिशय बलवान व आशुकारी (शीघ्र काम करनेवाली) होने से उससे उत्पन्न होनेवाले रोग भी बलवान व शीघ्र घात करनेवाले होते हैं । अतः वायु को नियंत्रण में रखने के लिए आहार में वायुवर्धक व वायुशामक पदार्थों का युक्तियुक्त उपयोग करना चाहिए ।*
*🔹वायुशामक पदार्थ🔹*
*अनाजों में : साठी के चावल, गेहूँ, बाजरा, तिल*
*दालों में : कुलथी, उड़द*
*सब्जियों में : बथुआ, पुनर्नवा (साटोडी), परवल, कोमल मूली, कोमल (बिना बीज के) बैंगन, पका पेठा, सहजन की फली, भिंडी, सूरन, गाजर, शलगम, पुदीना, हरा धनिया, प्याज, लहसुन, अदरक*
*फलों में : सूखे मेवे, अनार, आँवला, बेल, आम, नारंगी, बेर, अमरूद, केला, अंगूर, मोसम्बी, नारियल, सीताफल, पपीता, शहतूत, लीची, कटहल (पका), फालसा, खरबूजा, तरबूज*
*मसालों में : सोंठ, अजवायन, सौंफ, हींग, काली मिर्च, पीपरामूल, जीरा, मेथीदाना, दालचीनी, जायफल, लौंग, छोटी इलायची ।*
*🔹अन्य वायुशामक पदार्थ🔹*
*🔸केसर, सेंधा नमक, काला नमक, देशी गाय का दूध एवं घी, सभी प्रकार के तेल [बरें (कुसुम्भ, कुसुम) का तेल छोड़कर ]*
*🔹वायुवर्धक पदार्थ🔹*
*अनाजों में : जौ, ज्वार, मकई*
*दालों में : सेम, मटर, राजमा, चना, तुअर, मूँग (अल्प वायुकारक), मोठ, मसूर ।*
*सब्जियों में : अरवी, ग्वारफली, सरसों, चौलाई, पालक, पकी मूली, पत्तागोभी, लौकी, ककड़ी, टिंडा*
*फलों में : नाशपाती, जामुन, सिंघाड़ा, कच्चा आम, मूँगफली ।*
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