ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल
*🌞~ वैदिक पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक – 16 सितम्बर 2024*
*⛅दिन – सोमवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2081*
*⛅अयन – दक्षिणायन*
*⛅ऋतु – शरद*
*🌥️ अमांत – 1गते आश्विन मास*
*🌥️ राष्ट्रीय तिथि – 26 भाद्रपद मास*
*⛅मास – भाद्रपद*
*⛅पक्ष – शुक्ल*
*⛅तिथि – त्रयोदशी दोपहर 03:10 तक तत्पश्चात चतुर्दशी*
*⛅नक्षत्र – धनिष्ठा शाम 04:33 तक तत्पश्चात शतभिषा*
*⛅योग – सुकर्मा प्रातः 11:42 तक तत्पश्चात धृति*
*⛅राहु काल – प्रातः 07:37 से प्रातः 09:09 तक*
*⛅सूर्योदय – 06:02*
*⛅सूर्यास्त – 06:22*
*⛅दिशा शूल – पूर्व दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:53 से 05:40 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:10 से दोपहर 12:59 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:11 सितम्बर 17 से रात्रि 12:58 सितम्बर 17 तक*
*व्रत पर्व विवरण – षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल दोपहर 12:21 से सूर्यास्त तक), कन्या संक्रांति, विश्वकर्मा पूजा*
*⛅विशेष – त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है एवं संक्रांति के दिन स्त्री-सहवास और तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹षडशीति-मीन संक्रांति – 16 सितम्बर*
*🔸संक्रान्ति का अर्थ है, ‘सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण (जाना)’।*
*🔸षडशीति संक्रांति में किये गए जप-ध्यान व पुण्यकर्म का फल 86000 हजार गुना होता है । -पद्म पुराण*
*🔹गिलोय के उपयोग :🔹*
*🔸गिलोय के रस पीने से मलेरिया तथा पुराना बुखार दूर होता है ।*
*🔸चुटकी भर दालचीनी व लौंग के साथ लेने से मुद्दती बुखार दूर होता है ।*
*🔸बुखार के बाद रहने रहनेवाली कमजोरी में गिलोय का रस पौष्टिक एवं शक्तिप्रदायक है ।*
*🔸2 से 3 ग्राम अधकुटी सोंठ व 25 से 30 ग्राम कूटी हुई ताजी गिलोय का काढ़ा बनाकर पीने से संधिवात तथा आमवात दूर हता है ।*
*🔸गिलोय के रस में मिश्री मिलाकर पिने से पीलिया में लाभ होता है ।*
*🔸गिलोय का रस दीर्घकाल तक लेते रहने से कायमी कब्जी के रोगी को लाभ होता है ।*
*🔸गिलोय के चूर्ण अथवा रस का नियमित उपयोग डायबिटीजवालों के लिए लाभदायी है । हररोज इंजेक्शन तथा टिकियों कि आवश्यकता नहीं पड़ेगी । उनके कुप्रभावों से रोगी बच जायेगा ।*
*🔸माता को गिलोय का चूर्ण अथवा रस देने से दूध बढ़ता है व दूध के दोष दूर होते है । माता के दूषित दूध के कारण होनेवाले रोगों से बालक कि रक्षा होती है ।*
*🔸गिलोय उत्कृष्ट मेध्य अर्थात बुद्धिवर्धक रसायन है । इसके नियमित सेवन से दीर्घायुष्य, चिरयौवन व कुशाग्र बुद्धि कि प्राप्ति होती है ।*
*🔸 चूर्ण की मात्रा : 2 से 3 ग्राम । रस की मात्रा : 20 से 30 मि.लि. ।*
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