ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल
*🌞~ वैदिक पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक – 09 जुलाई 2024*
*⛅दिन – मंगलवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2081*
*⛅अयन – दक्षिणायण*
*⛅ऋतु – ग्रीष्म*
*🌤️अमांत – 25 गते आषाढ़ मास प्रविष्टि*
*🌤️राष्ट्रीय तिथि – 19 आषाढ़ मास*
*⛅मास – आषाढ़*
*⛅पक्ष – शुक्ल*
*⛅तिथि – तृतीया प्रातः 06:08 तक तत्पश्चात चतुर्थी*
*⛅नक्षत्र – अश्लेषा प्रातः 07:52 तक तत्पश्चात मघा*
*⛅योग – सिद्धि रात्रि 02:27 जुलाई 10 तक तत्पश्चात व्यतीपात*
*⛅राहु काल – शाम 03:39 से शाम 05:33 तक*
*⛅सूर्योदय – 05:24*
*⛅सूर्यास्त – 07:22*
*⛅दिशा शूल – उत्तर दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:37 से 05:19 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:18 से दोपहर 01:12 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:24 जुलाई 10 से रात्रि 01:06 जुलाई 10 तक*
*⛅ व्रत पर्व विवरण – विनायक चतुर्थी, मंगलवारी चतुर्थी प्रातः 06:08 से 10 जुलाई सूर्योदय तक*
*⛅विशेष – चतुर्थी को मूली खाने से धन-नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹आरती क्यों करते है ?*🔹
*🔸हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों में संध्योपासना तथा किसी भी मांगलिक पूजन में आरती का एक विशेष स्थान है । शास्त्रों में आरती को ‘आरात्रिक’ अथवा ‘नीराजन’ भी कहा गया है ।*
*🔸वर्षों से न केवल आरती की महिमा, विधि, उसके वैज्ञानिक महत्त्व आदि के बारे में बताते रहे हैं बल्कि अपने सत्संग – समारोहों में सामूहिक आरती द्वारा उसके लाभों का प्रत्यक्ष अनुभव भी करवाते रहे हैं ।*
*🔸“आरती एक प्रकार से वातावरण में शुद्धिकरण करने तथा अपने और दूसरे के आभामंडलों में सामंजस्य लाने की एक व्यवस्था है । हम आरती करते हैं तो उससे आभा, ऊर्जा मिलती है । हिन्दू धर्म के ऋषियों ने शुभ प्रसंगों पर एवं भगवान की, संतो की आरती करने की जो खोज की है वह हानिकारक जीवाणुओं को दूर रखती है, एक-दूसरे जे मनोभावों का समन्वय करती है और आध्यात्मिक उन्नति में बड़ा योगदान देती है ।*
*🔸शुभ कर्म करने के पहले आरती होती है तो शुभ कर्म शीघ्रता से फल देता है । शुभ कर्म करने के बाद अगर आरती करते हैं तो शुभ कर्म में कोई कमी रह गयी हो तो वह पूर्ण हो जाती है । स्कन्द पुराण में आरती की महिमा का वर्णन है । भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं :*
*🔸मंत्रहीनं क्रियाहीनं यत्कृतं पूजनं मम |*
*सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने सुत ||*
*‘जो मन्त्रहीन एवं क्रियाहीन (आवश्यक विधि-विधानरहित) मेरा पूजन किया गया है, वह मेरी आरती कर देने पर सर्वथा परिपूर्ण हो जाता है |’ (स्कन्द पुराण, वैष्णव खंड, मार्गशीर्ष माहात्म्य : ९:३७)*