ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌤️ *दिनांक – 16 फरवरी 2024*
🌤️ *दिन – शुक्रवार*
🌤️ *विक्रम संवत – 2080*
🌤️ *शक संवत -1945*
🌤️ *अयन – उत्तरायण*
🌤️ *ऋतु – शिशिर ॠतु*
🌤️ *अमांत – 4 गते फागुन मास प्रविष्टि*
🌤️ *राष्ट्रीय तिथि – 27 पौष मास*
🌤️ *मास -माघ*
🌤️ *पक्ष – शुक्ल*
🌤️ *तिथि – सप्तमी सुबह 08:54 तक तत्पश्चात अष्टमी*
🌤️ *नक्षत्र – भरणी सुबह 08:47 तक तत्पश्चात कृत्तिका*
🌤️ *योग – ब्रह्म शाम 03:18 तक तत्पश्चात इन्द्र*
🌤️ *राहुकाल – सुबह 11:08 से दोपहर 12:31 तक*
🌞 *सूर्योदय -06:57*
🌤️ *सूर्यास्त- 18:06*
👉 *दिशाशूल – पश्चिम दिशा में*
🚩 *व्रत पर्व – रथ-आरोग्य-विधान-चन्दभागा सप्तमी,भीष्माष्टमी(भीष्म पितामह श्राद्ध दिवस)*
💥 *विशेष – सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है तथा शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌷 *अभीष्ट सिद्धि हेतु* 🌷
🙏🏻 *भीष्माष्टमी (16 फरवरी) के दिन निम्न मंत्र से भीष्मजी को तिल, गंध, पुष्प, गंगाजल व कुश मिश्रित अर्घ्य देने से अभीष्ट सिद्ध होता है :*
🌷 *वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च |*
*अर्घ्यं ददामि भीष्माय आबालब्रह्मचारिणे ||*
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌷 *भीष्म अष्टमी* 🌷
🙏🏻 *माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी कहते हैं। इस तिथि पर व्रत करने का विशेष महत्व है। इस बार यह व्रत 16 फ वरी शुक्रवार को है। धर्म शास्त्रों के अनुसार,इस दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने प्राण त्यागे थे।*
🙏🏻 *उनकी स्मृति में यह व्रत किया जाता है। इस दिन प्रत्येक हिंदू को भीष्म पितामह के निमित्त कुश,तिल व जल लेकर तर्पण करना चाहिए,चाहे उसके माता-पिता जीवित ही क्यों न हों। इस व्रत के करने से मनुष्य सुंदर और गुणवान संतान प्राप्त करता है-*
🌷 *माघे मासि सिताष्टम्यां सतिलं भीष्मतर्पणम्।*
*श्राद्धच ये नरा:कुर्युस्ते स्यु:सन्ततिभागिन:।।*
*(हेमाद्रि)*
🙏🏻 *महाभारत के अनुसार जो मनुष्य माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्म के निमित्त तर्पण,जलदान आदि करता है,उसके वर्षभर के पाप नष्ट हो जाते हैं-*
🌷 *शुक्लाष्टम्यां तु माघस्य दद्याद् भीष्माय यो जलम्।*
*संवत्सरकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।।*
🌷 *ऐसे करें भीष्म अष्टमी व्रत* 🌷
🙏🏻 *भीष्म अष्टमी की सुबह स्नान आदि करने के बाद यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर स्नान करना चाहिए। यदि नदी या सरोवर पर न जा पाएं तो घर पर ही विधिपूर्वक स्नानकर भीष्म पितामह के निमित्त हाथ में तिल, जल आदि लेकर अपसव्य (जनेऊ को दाएं कंधे पर लेकर) तथा दक्षिणाभिमुख होकर निम्नलिखित मंत्रों से तर्पण करना चाहिए-*