

पहाड़ का सच

भारत में इंजीनियर्स डे (15 सितंबर) को हर साल मनाया तो जाता है लेकिन जिस तरह नीति निर्धारण से लेकर शीर्ष प्रबंधन तक आई ए एस काबिज हो गए हैं और अभियंताओं को हाशिए पर धकेल दिया गया है उससे अब यह महज औपचारिकता तक सीमित रह गया है।
इंजीनियरों की समाज और राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद उनकी स्थिति और सम्मान को लेकर कई चुनौतियाँ हैं। नीति निर्धारण और शीर्ष प्रबंधन में इंजीनियरों को हाशिए पर रखा जाना एक गंभीर समस्या है जिसके कई कारण और समाधान हो सकते हैं।
आइए इस पर गहराई से विचार करें:
समस्या के प्रमुख कारण
प्रशासनिक प्रभुत्वः
भारत में नीति निर्धारण और शीर्ष प्रबंधन में आई ए एस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) अधिकारियों का वर्चस्व है। इंजीनियरिंग विभागों में भी गैर-तकनीकी लोग अक्सर नेतृत्वकारी भूमिकाओं में होते हैं। जिससे तकनीकी विशेषज्ञता की अनदेखी होती है।
इंजीनियरों को अवसर “कार्यकारी” के रूप में देखा जाता है न कि नीति निर्माता के रूप में। इससे उनकी रणनीतिक और नेतृत्वकारी भूमिका सीमित हो जाती है।
.सामाजिक धारणाः
भारत में आई ए एस या प्रशासनिक सेवाओं को सामाजिक रूप से अधिक प्रतिष्ठित माना जाता है जिसके कारण इंजीनियरिंग पेशे को कमतर आँका जाता है।
विकसित देशों में इंजीनियरों को नीति निर्माण और नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका दी जाती है। जैसे जर्मनी, जापान और अमेरिका, जहाँ इंजीनियरिंग नवाचार और तकनीकी नेतृत्व को बढ़ावा दिया जाता है।
भारत में राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के चलते यह दृष्टिकोण अभी पूरी तरह विकसित नहीं हो पाया है। .इंजीनियरों को सम्मान दिलाने के लिए संभावित समाधान नीति निर्माण में इंजीनियरों की भागीदारी बढ़ानाः .इंजीनियरिंग विभागों में सचिवालय के शीर्ष पदों के लिए तकनीकी विशेषज्ञता को अनिवार्य करना चाहिए। उदाहरण के लिए तकनीकी मंत्रालयों और विभागों में इंजीनियरों को सचिव प्रमुख सचिव और अपर मुख्य सचिव स्तर की भूमिकाएँ दी जानी चाहिए ।
इंजीनियरों के लिए विशेष प्रशासनिक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जाएँ। जो उन्हें नीति निर्माण और नेतृत्व के लिए तैयार करें।
. इंजीनियरिंग शिक्षा में सुधारः
इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में प्रबंधन, नीति निर्माण और नेतृत्व कौशल को शामिल करना चाहिए। उदाहरण के लिए आई आई टी और एन आई टी जैसे संस्थानों में नीति विश्लेषण और सार्वजनिक प्रशासन पर वैकल्पिक पाठ्यक्रम शुरू किए जा
सकते हैं। इंटर्नशिप और प्रोजेक्ट्स के माध्यम से इंजीनियरों को वास्तविक नीति निर्माण प्रक्रियाओं से जोड़ा जाए।
.सामाजिक जागरूकता और प्रचारः
इंजीनियर्स डे को केवल औपचारिकता तक सीमित न रखकर इंजीनियरों की उपलब्धियों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करना चाहिए। मीडिया, सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर इंजीनियरों के योगदान को उजागर करना होगा। स्कूल और कॉलेज स्तर पर इंजीनियरिंग के महत्व को बढ़ावा देने के लिए अभियान चलाए जाएँ। ताकि समाज में इस पेशे के प्रति सम्मान बढ़े।
.विकसित देशों से प्रेरणाः
जर्मनी और जापान जैसे देशों में इंजीनियरों को तकनीकी और नीतिगत दोनों स्तरों पर महत्व दिया जाता है। भारत में भी इंजीनियरों को स्टार्टअप , नवाचार और नीति निर्माण में प्रोत्साहित करने के लिए विशेष योजनाएँ बनाई जा सकती हैं। उदाहरण के लिए इंजीनियरों के लिए “टेक्नोक्रेट फेलोशिप’ जैसी पहल शुरू की जा सकती है। जिसमें उन्हें सरकार के साथ नीति निर्माण में काम करने का अवसर मिले।
. प्रोत्साहन और पुरस्कारः
इंजीनियरों के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर पुरस्कार और सम्मान स्थापित किए जाएँ। जो उनकी तकनीकी और सामाजिक योगदान को मान्यता दें। उदाहरण के लिए सर एम. विश्वेश्वरैया जैसे दिग्गज इंजीनियरों के नाम पर पुरस्कार और फेलोशिप शुरू की जा सकती है।
.संस्थागत सुधारः
इंजीनियरिंग संगठनों जैसे इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) को नीति निर्माण में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए सशक्त करना चाहिए। सरकार और निजी क्षेत्र में इंजीनियरों के लिए विशेष कैडर बनाए जाएँ। जो उन्हें प्रशासनिक और तकनीकी दोनों भूमिकाओं में अवसर दे।
निष्कर्ष :
भारत में इंजीनियरों को सम्मान दिलाने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें शिक्षा, नीति और सामाजिक धारणा में बदलाव शामिल हो। सबसे महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक दल आई ए एस के प्रभा मंडल से बाहर आए और राष्ट्र निर्माण में इंजीनियरों की भूमिका को समुचित महत्व दें। इंजीनियरिंग विभागों के सचिव प्रमुख सचिव और अपर मुख्य सचिव पदों पर विशेषज्ञ इंजीनियरों की ही तैनाती की जाय।
इंजीनियर्स डे को केवल एक औपचारिक आयोजन के बजाय इंजीनियरों के योगदान को उजागर करने और उन्हें सशक्त बनाने का अवसर बनाया जा सकता है। यदि सरकार, उद्योग और समाज मिलकर काम करें तो इंजीनियरों को वह स्थान मिल सकता है। जिसके वे वास्तव में हकदार हैं।
शैलेन्द्र दुबे मुख्य अभियन्ता (सेवा निवृत), वर्तमान में आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन