पहाड़ का सच
रंगों का त्यौहार होली इस साल 8 मार्च को देशभर में मनाया जाएगा. होली की तैयारियों को देखते हुए अभी से ही बाजारों में तरह तरह के रंग और गुलाल नजर आने लगे हैं. हालांकि इनमें कई ऐसे रंग भी हैं जो हमारी सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं. मसलन, इनके इस्तेमाल से हमारी आंखें खराब हो सकती हैं, कान में दर्द हो सकता है, अस्थमा, ओपीडी जैसे श्वास संबंधी समस्याएं बढ़ सकती हैं.
प्राकृतिक रंगों से खेलें होली
एचटी में छपी एक खबर में फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के ईएनटी प्रधान निदेशक डॉ. अतुल कुमार मित्तल का कहना है कि इन दिनों जिन सिंथेटिक रंगों का लोग होली में इस्तेमाल कर रहे हैं वे इंसानों के लिए काफी खतरनाक हैं. इनमें कई जहरीले धातु, अभ्रक, कांच जैसे पदार्थ मिलाए जाते हैं जो कान, नाक और गले ही नहीं, स्किन और अस्थमा जैसी बीमारियों की वजह तक बन सकता है. डॉ. मित्तल का कहना है कि पहले के जमाने में लोग फूलों, मसालों और पेड़ों आदि से निकाले गए प्राकृतिक रंगों से होली खेलते थे, जिनमें औषधीय गुण होते थे. औषधीय गुणों वाले ये रंग त्वचा के लिए फायदेमंद होते थे. पहले रंगों को बनाने के लिए हल्दी, नील, मेंहदी आदि का इस्तेमाल किया जाता था, जो विषैले नहीं होते थे और वे ईको फ्रेंडली भी होते थे. अगर आप हर्बल रंगों का इस्तेमाल करें तो ये कई बीमारियों से हमें बचा सकता है.
केमिकल रंगो से रहे सावधान
-ये कण हमारे नाक में प्रवेश कर राइनाइटि स या एलर्जी को ट्रिगर कर सकते हैं और अतिसंवेदनशीलता को बढ़ा सकते हैं.
-जिन लोगों की इम्यूनिटी कमजोर होती है अथवा अस्थमा से ग्रस्त हैं तो उन्हें होली खेलने से बचना चाहिए.
-होली के रंगों में विषाक्त पदार्थ होते हैं जो ईएनटी (कान, नाक, गले) की समस्याओं की वजह बन सकता है.
-होली में पानी के गुब्बारों का प्रयोग भी हमारे कानों और आंखों के लिए नुकसानदायक हो सकता है और दुर्घटना हो सकती है.
-वॉटर-गन या पानी भरे गुब्बारों से गीली होली खेलने पर कान को नुकसान हो सकता है. पानी कान में प्रवेश कर सकता है और अंदर खुजली, दर्द या ब्लॉकेज की समस्या हो सकती है.
-कान में अगर पानी चला जाए तो टिम्पेनिक झिल्ली फट सकती है और कान में तेज दर्द हो सकता है. इसके अलावा, कान में दर्द, कान से खून आना, बहरापन, कानों का बजना आदि लक्षण हो सकते हैं. इसके लिए सर्जरी तक करानी पड़ सकती है.
-केमिकल वाले रंगों से सांस की बीमारी हो सकती है. हवा में फेंके जाने पर सूखे गुलाल में 10μm (माइक्रोन) कणों वाले भारी धातु होते हैं जो फेफड़ों में प्रवेश कर स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकते हैं.
-ये ड्राई केमिकल वाले गुलाल हमारे मुंह और स्वांस के साथ श्वसन नलिका में प्रवेश कर समस्या बढ़ा सकते हैं और अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी स्थितियों को बढ़ा सकते हैं.