
पहाड़ का सच,देहरादून
दादु म्यरि उल्यरि जिकुड़ी.
दादु मि परबतू को वासी..
दादु म्यरु सौंजड्या च कप्फू।
दादु म्यरि गैल्या चा हिलांसी.. झम ।।
2 जून 2025 को देहरादून के प्रेस क्लब में “डंडरियाल विकास एवं सामाजिक कल्याण समिति” द्वारा प्रथम गढ़वली कवि स्व. कन्हैया लाल डंडरियाल की 21वीं पुण्य तिथि पर एक काव्य पाठ का आयोजन किया जा रहा है। जिसमे मुख्य अतिथि माननीय डा.रमेश पोखरियाल “निशंक” एवं विशेष अतिथि डा.विनोद बछेती को आमंत्रित किया गया है।
वहीं काव्य पाठ हेतु श्रीमती वीना बेंजवाल, श्रीमती वीना कंडारी, मदन मोहन डुकलान, आशीष सुन्द्रियाल, गिरीश सुन्द्रियाल, रामकृष्ण पोखरियाल, जगमोहन सिंह रावत, एवं श्रीमती शांति अमोली बिंजोला जी को आमंत्रित किया गया है।
बताते चलें कि प्रथम गढ़वाली कवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी का जन्म पौड़ी जनपद के मवालस्यूं पट्टी के नैली गांव में 11 नवंबर, 1933 में हुआ था। वे बीस वर्ष की अवस्था में रोजगार की तलाश में दिल्ली आ गये थे। उन्होंने 16 वर्ष की अवस्था से ही चूते-चप्पल पहनना छोड़ दिया था। दिल्ली आकर वे बिड़ला मिल में नौकरी करने लगे। बाद में मिल बंद होने से बेरोजगार हो गये। उन्होंने अपने परिवार के भरण-पोषण के लिये चाय बेचने का काम किया। वो कंधें में चाय की पैकेटों का थैला लटकाये घर-घर नंगे पैर जाते थे। गर्मी, बरसात या सर्दी हर मौसम में वे अपने काम को बड़ी शिद्दत के साथ करते मिलते।
उनके अंदर समाज को जानने-समझने और गहरी संवेदनाओं के साथ आमजन की पीड़ा को रखने की चेतना भी शायद इन्हीं संघर्षो से आई। गढ़वाली भाषा और साहित्य को एक उच्च मुकाम तक पहुंचाने में स्व.कन्हैयालाल डंडरियाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गढ़वाल के प्रति उनकी अगाथ श्रद्धा और प्रतिबद्धता को उनके पूरे साहित्य में देखा जा सकता है। यह समर्पण उनके लिखने में ही नहीं, बल्कि व्यवहार में भी था। उन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ, राग-द्वेष और बिना किसी पूर्वाग्रह के जीवन मूल्यों, जीवन दृष्टि, व्यथा-वेदना, जनसरोकार, हर्ष, पीड़ा, संघर्षों को केन्द्र में रखकर उत्कृष्ट, उदात्त और जीवंत साहित्य की रचना की। कई बार वह व्यंग के रूप में भी उभरकर सामने आती है। उनके लेखन में सामयिक चेतना साफ दिखाई देती है। दूरदृष्टि भी. उनके लेखन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह पाठकों को बहुत गहरे तक प्रभावित करता है।
