
सुरक्षा के लिए चार धाम परियोजना पर पुनर्विचार की अपील

अपीलकर्ताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डॉ. करण सिंह, पर्यावरणविद शेखर पाठक, इतिहासकार रामचंद्र गुहा और सामाजिक कार्यकर्ता केएन गोविंदाचार्य समेत 57 प्रमुख लोग शामिल
नई दिल्ली/देहरादून। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ व भूस्खलन से हुई तबाही के बाद हिमालय की संवेदनशील पारिस्थितिकी पर एक बार फिर बड़े सवाल पैदा हो गए हैं। इससे उत्तराखंड में चार धाम प्रोजेक्ट पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
हिमालय की सुरक्षा को लेकर देश के कई वरिष्ठ राजनेता, पर्यावरणविद और वैज्ञानिकों ने चार धाम परियोजना पर पुनर्विचार की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अपीलकर्ताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डॉ. करण सिंह, पर्यावरणविद शेखर पाठक, इतिहासकार रामचंद्र गुहा और सामाजिक कार्यकर्ता केएन गोविंदाचार्य समेत 57 प्रमुख लोग शामिल हैं।
14 दिसंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम निर्णय में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के 15 दिसंबर 2020 के परिपत्र को वैध ठहराया था। इस परिपत्र ने सीमा से लगे पहाड़ी क्षेत्रों में फीडर हाईवे की चौड़ाई 10 मीटर (डीएल-पीएस मानक) अनिवार्य कर दी थी। सरकार और सेना की दलील थी कि चौड़ी सड़कें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी हैं, ताकि सीमा तक सैन्य सामग्री और बड़े वाहनों की आवाजाही हो सके। अदालत ने उस समय राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए परियोजना को हरी झंडी दी थी, लेकिन पर्यावरणीय सावधानियों की शर्तें भी जोड़ी थीं।
मौजूदा अपील में कहा गया है कि पिछले तीन वर्षों की आपदाओं ने साबित कर दिया है कि चौड़ी सड़कें हिमालय की भौगोलिक नाजुकता के लिए बेहद खतरनाक हैं। जून 2025 की स्टडी में परियोजना क्षेत्र में 811 भूस्खलन जोन दर्ज हुए।
ऋषिकेश-बदरीनाथ मार्ग पर हर पांच किलोमीटर में औसतन चार भूस्खलन हो रहे हैं।
भागीरथी ईको-सेंसिटिव जोन में हजारों पेड़ों के कटान को अपीलकर्ताओं ने प्राकृतिक सुरक्षा कवच की हत्या करार दिया है। .उनका कहना है कि 2013 की केदारनाथ आपदा, 2023 और 2025 की बाढ़ ने हजारों जिंदगिया लील लीं। केवल 2025 की आपदाओं के लिए ही उत्तराखंड सरकार ने केंद्र से 15,700 करोड़ रुपए की राहत राशि की मांग की है जो ये दर्शाता है कि आपदा से कितनी भयंकर पैमाने पर नुकसान हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट से तत्काल हस्तक्षेप की गुहार लगाई
अपील में पहली मांग की गई है कि 14 दिसंबर 2021 के निर्णय को वापस लिया जाए। दूसरी, 2020 के परिपत्र को निरस्त कर 2018 की नीति बहाल की जाए, जिसमें 5.5 मीटर चौड़ी इंटरमीडिएट सड़क की सिफारिश की गई थी। अपीलकर्ताओं ने कहा कि गंगा-हिमालय बेसिन 60 करोड़ लोगों का जीवन-आधार है। यदि हिमालय नष्ट होता है तो पूरा देश प्रभावित होगा। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 51-ए (जी) का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट से तत्काल हस्तक्षेप की गुहार लगाई है।
रोक लगी तो डिजाइन बदलना होगा
यदि सुप्रीम कोर्ट अपील स्वीकार करता है तो चार धाम परियोजना की मौजूदा चौड़ीकरण नीति पर तत्काल रोक लग सकती है। इससे सड़क निर्माण कंपनियों और मंत्रालय को डिजाइन बदलना पड़ेगा। 5.5 मीटर इंटरमीडिएट सड़क का विकल्प वापस आने पर पेड़ों की कटाई और ब्लास्टिंग में कमी आ सकती है। पर्यावरणविद मानते हैं कि इससे भूस्खलन और आपदाओं की तीव्रता घटेगी। हालांकि, सेना और सरकार को सीमा तक तेज रसद पहुंचाने में कठिनाई हो सकती है और सामरिक दृष्टि से नई रणनीतियां तैयार करनी पड़ेगी। यदि सुप्रीम कोर्ट अपील खारिज करता है तो मौजूदा 10 मीटर चौड़ी सड़क नीति लागू रहेगी और निर्माण कार्य तेजी से आगे बढ़ेगा। लेकिन इस संबंध में पर्यावरणविदों का कहना है कि आने वाले वर्षों में भूस्खलन, अचानक बाढ़ और हिमस्खलन जैसी आपदाओं की संख्या और बढ़ेगी। इससे न केवल स्थानीय लोगों बल्कि तीर्थयात्रियों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है।
हिमालय विकास नहीं, संतुलन चाहता है
आईआईटी रुड़की के भूगर्भीय विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एस.पी. सिंह का कहना है कि यह इलाका पहले से सक्रिय भूस्खलन जोन है। यहां 10 मीटर चौड़ी सड़कें बनाना भूगर्भीय अस्थिरता को और बढ़ा देगा। अगले दशक में आपदाएं और तेज हो सकती हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डॉ. संजय कुमार का कहना है, सड़क चौड़ीकरण से नदियों का प्राकृतिक बहाव बाधित हो रहा है। इससे फ्लैश फ्लड और ग्लेशियर फटने का खतरा बढ़ रहा है। सुरंग और पुल जैसे विकल्प ज्यादा सुरक्षित हो सकते हैं। .पर्यावरणविद बिनायक सेन ने चेताया, हिमालय को मैदानी परियोजनाओं के पैमाने से नहीं मापा जा सकता। अगर यह ढहा तो इसकी भरपाई असंभव होगी। इस संबंध में एफआईसीसीआई की पर्यावरण समिति के विशेषज्ञों ने भी कहा कि चार धाम मार्ग को ऑल वेदर रोड नहीं माना जा सकता। इसे स्थानीय पारिस्थितिकी के अनुकूल डिजाइन करना होगा। अब यह मुद्दा सिर्फ सड़क चौड़ीकरण का नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम पर्यावरण संरक्षण की बड़ी बहस का केंद्र बन गया है। सुप्रीम कोर्ट का अगला कदम आने वाले दशकों में हिमालय की सुरक्षा की दिशा तय करेगा।
चार धाम परियोजना के प्रमुख तथ्य
चार धाम राजमार्ग परियोजना की शुरुआत 2016 में हुई थी जिसका उद्देश्य बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को पूरे साल बेहतर सड़क संपर्क से जोड़ना है। इसके तहत लगभग 900 किलोमीटर लंबाई की सड़कों का निर्माण और चौड़ीकरण प्रस्तावित है। शुरुआती लागत करीब 12,000 करोड़ रुपए थी, लेकिन समय के साथ खर्च में भारी बढ़ोतरी हुई। समर्थकों का मानना है कि इससे आस्था और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। सेना और सरकार इसे सामरिक दृष्टि से आवश्यक बताती हैं। हालांकि आलोचकों के अनुसार इस परियोजना ने हिमालय की संवेदनशील पारिस्थितिकी को गहरी चोट पहुंचाई है। पेड़ों की कटाई, भूस्खलन और नदियों के बहाव में बाधा इसके गंभीर परिणाम बताए जा रहे हैं।
