– उत्तराखंड में इस लोकसभा चुनाव में 2019 व 2014 की तुलना में कम हुआ मतदान
– मत प्रतिशत रिवर्स हुआ इसकी गारंटी नहीं, लेकिन 75 फीसद वोटिंग के दावे को झटका
– वोटर की उदासीनता किसे नफा देगी, किसको नुकसान ईवीएम बताएगी, पर सियासी दलों के लिए छोड़ गई कई सवाल
– ” साइकलोजिकल वार ” में विरोधी को घेरने की भाजपा की कोशिश नहीं दिखा पाई असर
– कम मतदान राजनीतिक दलों के लिए भी खतरे की घंटी
हरीश जोशी,पहाड़ का सच
देहरादून। तमाम दावों, वादों और कोशिशों के वाबजूद इन लोकसभा के आम चुनाव में मत प्रतिशत का ग्राफ आगे बढ़ने के बजाय पहले दो चुनावों से और भी नीचे गिर गया। कम मतदान का किस राजनीतिक दल को फायदा और किसे नुकसान होगा ये तो 4 जून को ईवीएम खुलने के बाद सबके सामने होगा , परंतु एक बात शिद्दत के साथ कही जा रही है कि इस मर्तबा कोई ” लहर ” नहीं थी। इसी कारण से चुनाव में राजनीतिक दलों की टोलियां न तो घर घर जाती दिखीं और न पोलिंग बूथ पर लम्बी कतारें दिखीं।
उत्तराखंड राज्य का मतदाता जो 2014 व 2019 के लोकसभा के आम चुनाव में राज्य की पांचों सीट भाजपा की झोली में डालता आया है, 2024 में खामोश क्यों हो गया है? कम मतदान पर राजनीति के जानकारों का मानना है कि राजनीतिक दलों की तरफ से की जा रही अपील मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक खींचने में कारगर साबित नहीं हो पाई । ये हालात कुछ और ही संकेत दे रहे हैं।
दूसरा, दलों के दावे, वादे और विरोधियों को घेरने की कोशिश कार्यकर्ताओं की उदासीनता के कारण असर नहीं दिखा पाई। भाजपा की राजनीति के जानकारों का कहना है कि लोकसभा चुनाव को लेकर जो कैंपेन(इस बार 400 पार, 75 फीसद मतदान) चलाया गया, उससे कार्यकर्ता निश्चिंत हो गया। भाजपा के कैंपेन में ” एक अकेला सब पर भारी ” के नारे ने भी भाजपा की फौज को आत्ममुग्ध कर दिया।
भाजपा की सियासत में दिलचस्पी रखने वालों का कहना है कि पूर्व के चुनावों में पार्टी कार्यकर्ता मतदाता पर्ची लेकर चुनाव से एक हफ्ते पहले घर घर आ जाते थे, इस बार नहीं आए। इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं। एक या तो ये मान लिया गया कि पार्टी जीत रही है , दूसरा लोकसभा प्रत्याशी के चयन को लेकर नाराजगी। कुछ सीटों पर अंदरूनी खींचतान के कारण भी पार्टी कार्यकर्ता उदासीन बना रहा।
उत्तराखंड की 5 सीटों टिहरी, पौड़ी, हरिद्वार, नैनीताल व अल्मोड़ा के लिए हुए चुनाव में वोटरों की बहुत बड़ी तादाद मतदान के बजाए घर बैठ गई। अधिकांश जगह मतदान पूरा होने के बाद चुनाव आयोग से जो आंकड़ा मतदान का निकल के आया वह शाम 7 बजे तक 53.64 फ़ीसद रहा। साल-2019 के लोकसभा चुनाव 61.88 फ़ीसद के मुकाबले ये करीब 8 फ़ीसद कम है। पोस्टल बैलेट को जोड़ के और कुछ स्थानों पर देर तक हुए मतदान के बाद आने वाली रिपोर्ट को जोड़ दिया जाए तो ये आंकड़ा हद से हद 1 फ़ीसद और बढ़ सकता है।
कम मतदान के पीछे लोगों में प्रत्याशियों को लेकर जोश कम होना और शादियों के मौसम को जिम्मेदार के तौर पर देखा जा रहा है।अल्मोड़ा 44.53 फ़ीसद और पौड़ी गढ़वाल 48.79 फीसद की सीट पर हैरतअंगेज ढंग से बेहद मामूली वोट पड़े। शाम 5 बजे तक इन सीटों पर मतदान 50 फ़ीसद तक भी नहीं हुआ था। कम मतदान ने भाजपा के साथ कांग्रेस की पेशानी पर बल डाल दिया है।
सुबह से ही मतदान केन्द्रों पर लोगों की लाइन बहुत छोटी रही। दोनों प्रमुख दलों के बस्तों पर कार्यकर्ताओं की भीड़ तो थी लेकिन पर्चियां बनवाने वाले इने-गिने ही पहुँच रहे थे। गाँव-मोहल्लों-कॉलोनियों में दलों के झंडों को बामुश्किल देखा जा रहा था।
मोदी, अमित शाह , योगी आदित्यनाथ, सीएम पुष्कर सिंह धामी के साथ कई बड़े स्तर प्रचारकों ने भाजपा प्रत्याशियों के लिए जनसभाएं कीं। बड़े रोड शो किए। बावजूद इसके भाजपा के बस्तों और कार्यकर्ताओं में कम करेंट दिख रहा था। कांग्रेस के तो कई जगह बस्ते भी नहीं लग पाए। चुनाव आयोग ने भी खूब कोशिशें की कि ज्यादा से ज्यादा लोग वोट डालें, फिर भी सिर्फ नैनीताल-हरिद्वार सीट पर ही लोग निकले।
पौड़ी गढ़वाल सीट पर भाजपा के बड़े चेहरे और आला कमान के खासमखासों में शुमार अनिल बलूनी प्रत्याशी हैं। उनका चुनाव प्रचार सीएम धामी के साथ ही सभी पार्टी दिग्गजों ने खून-पसीना एक कर किया। इसके बावजूद पिछली बार के मुकाबले कम मतदान हैरान करने वाला कहा जा सकता है। कम वोटिंग का बलूनी को फायदा हुआ या नुक्सान, इसका अंदाज लगाना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा। यहाँ कांग्रेस के प्रत्याशी गणेश गोदियाल के बारे में कहा जा रहा है कि वह भाजपा को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
टिहरी सीट पर भी पिछली बार के मुकाबले शाम 7 बजे तक 8 फ़ीसद कम यानी 51.01 मतदान हुआ था लेकिन इसकी सम्भावना पहले से जताई जा रही थी। सांसद होने के बाद भी 10 साल तक कम सक्रिय रहीं भाजपा प्रत्याशी महारानी माला राज्यलक्ष्मी को लेकर पार्टी में ही लोग संतुष्ट नहीं हैं। कांग्रेस के जोत सिंह गुनसोला को लोगों और पार्टी कार्यकर्ताओं की सहानुभूति जरूर है । हैरानी नहीं होगी अगर निर्दलीय बॉबी पंवार मजबूत स्तम्भ के तौर पर उभर जाएं।
हरिद्वार सीट 59 फ़ीसद पर भी कुछ-कुछ ऐसा ही आलम रहा। भाजपा के त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने कांग्रेस ने वीरेन्द्र रावत को कमजोर मान कर चला जा रहा था परंतु मतदान आते आते पिता हरीश रावत की मजबूत पकड़ से वीरेंद्र रावत मुकाबले में बताए जा रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 69 फ़ीसद वोटर मतदान केन्द्रों तक पहुंचे थे।
अल्मोड़ा सीट पर भाजपा के अजय टम्टा और कांग्रेस के प्रदीप टम्टा ऐसे प्रत्याशी के तौर पर लिए जा रहे थे जिन्हें मजबूत विकल्पों के अभाव में दोनों दलों ने इन दोनो को मैदान में उतारा है। दोनों में से कोई भी इस हैसियत में नहीं थे कि लोगों को मतदान के लिए खुद के बूते बाहर निकाल सके। इस सीट पर 44.53 फ़ीसद मतदान इसकी गवाही देने के लिए काफी है। जो 52.31 फ़ीसद साल-2019 के मुकाबले बहुत मामूली है। ये आरक्षित सीट है।
नैनीताल सीट पर केन्द्रीय रक्षा-पर्यटन राज्यमंत्री अजय भट्ट के होने के बावजूद मतदान बहुत कम 59.36 फ़ीसद होने पर भाजपा चिंता में है।पिछली बार नैनीताल में 68.97 फ़ीसद वोट पड़े थे।