– आरोप: लाखों परिवारों की आजीविका खतरे में डाल रही भाजपा
– गठबन्धन के नेताओं ने कहा, भाजपा कारपोरेट घरानों को सस्ते दर पर दे रही जमीन
पहाड़ का सच देहरादून।
इंडिया गठबंधन ने कहा कि भारतीय स्टेट बैंक द्वारा सुप्रीम कोर्ट के सामने इलेक्टोरल बॉन्ड के खुलासे ने साबित कर दिया की भाजपा का कुरूप चेहरा है। यहां आयोजित प्रेस वार्ता में इंडिया गठबंधन के घटक दलों की ओर से उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉक्टर एस सचान, सी पी आई के नेशनल काउंसिल मेंबर समर भंडारी, भाकपा माले के प्रदेश सचिव इंद्रेश मैखुरी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सुरेंद्र सिंह सजवान,उत्तराखंड कांग्रेस कमेटी के प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल सिंह बिष्ट, समाजवादी पार्टी के महामंत्री अतुल शर्मा ने चुनावी योजना के बांड के खुलासे के बाद भाजपा को कटघरे में खड़ा किया।
उन्होंने कहा कि सिलक्यारा टनल हादसा जिसने समूचे उत्तराखंड को 17 दिनों तक हिला कर रख दिया था और 41 मजदूर जीवन और मौत के बीच में झूलते रहे ,जिस नवयुग कंपनी की कोताही और लापरवाही ने इस घटना को अंजाम दिया उस कंपनी पर आज तक भी धामी सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की उसका राज आज इलेक्टोरल बॉन्ड की सच्चाई बाहर आने पर चली है।
18 अप्रैल 2019 और 10 अक्टूबर 2022 में नवयुग कंपनी ने 90 करोड़ के बॉन्ड खरीदे और किस दल को दिए ये इस बात से साफ हो जाता है कि आज तक इस घटना की जांच तक नहीं कराई गई। कांग्रेस प्रवक्ता दसौनी ने कहा की ऐसा ही कुछ चमोली करेंट हादसे में भी हुआ। उस हादसे में 15 से अधिक लोगों की जानें गई और जिस कंपनी के पास कॉन्ट्रैक्ट था उसे क्लीन चिट दे दी गई।
भाजपा इस खुलासे के बाद पारदर्शिता और राजनीतिक शुचिता की बात न ही करे तो बेहतर होगा। .इंडिया गठबन्धन और उत्तराखंड की जनता की गंभीर चिंता है कि आम जनता के हक़ों के लिए बनाये हुए जनहित कानूनों पर अमल ही नहीं हो रहा है। जनहित कानूनों की धज्जिया उड़ा कर सरकार पहाड़ों में लोगों के दुकानों एवं घरों को हटाना चाहती है, शहरों में गरीबों को बेदखल करने की धमकी दे रही है, वन जमीन पर रह रहे लोगों का उत्पीड़न हो रहा है और राजनीतिक फायदे के लिए नफरत फैलाई जा रही है। इससे लाखों लोगों के घर, दुकान, और आजीविका खतरे में हैं। इसके उलट कॉरपोरेट घरानों को सरकारी ज़मीन सस्ते रेट पर देने के लिए “सर्विस सेक्टर पालिसी” लायी गयी है जो जन विरोधी है। वन अधिकार कानून UPA सरकार के समय बना था। 2015 में किए गए अध्ययन के अनुसार उत्तराखंड में इसके अंतर्गत कम से कम 6,91,488 हेक्टेयर वन ज़मीन पर स्थानीय पहाड़ी गांववासियों का प्रबंधन एवं रक्षा करने का हक़ है। लाखों लोगों को भी अधिकार पत्र मिलना चाहिए था। लेकिन उल्टा वन ज़मीन से लगातार मकानों, दुकानों, एवं धर्म स्थलों को बेदखल किया जा रहा है।
शहर की मलिन बस्तियों के पुनर्वास एवं नियमितीकरण के लिए 2016 में कांग्रेस सरकार ने अधिनियम बनाया था । व्यापक जन आंदोलन के बाद 2018 में सरकार ने पुनर्वास कराने के नाम पर कानून द्वारा बेदखली पर रोक लगायी थी। वह कानून इस साल ख़तम हो रहा है लेकिन हैरान करने वाली बात है कि जहाँ तक देहरादून शहर की बात है, 2017 और 2022 के बीच में इन कानूनों के अमल पर एक बैठक तक नहीं रखी गई। किसी भी बस्ती का नियमितीकरण या पुनर्वास पर चर्चा तक नहीं की गयी है।
नजूल भूमि पर बसे लोगों के लीज के नियमितीकरण के लिए 2021 में पारित हुए विधेयक पर आज तक “डबल इंजन” सरकार केंद्र से मंज़ूरी लेने में असमर्थ रही है। 3,20,000 से ज्यादा हेक्टेयर नजूल भूमि है पर लाखों लोग रह रहे हैं। इन अन्यायपूर्ण कदमों के साथ भाजपा सरकार अरबों की सब्सिडी के साथ उसी सरकारी ज़मीन को बड़े कॉर्पोरेट घरानों को सस्ते रेट पर 99 साल की लीज पर देना चाह रही है।
वन अधिकार कानून, नजूल भूमि अधिनियम, मलिन बस्ती अधिनियम और अन्य जनहित नीति पर अमल हो; सरकार अपना फ़र्ज़ निभाए, इसपर इंडिया गठबंधन आने वाला समय में अभियान चलाएगा।