पहाड़ का सच देहरादून।
सरकार की मेट्रो मदिरा नीति धरातल पर उतरी तो माल्टा, सेब, किन्नू, काफल जैसे फलों का काश्तकारों को उचित लाभ मिलेगा और इनकी मांग बढ़ेगी। ये शराब वनस्पतियों, फलों व पत्तियों से बनेगी । आबकारी विभाग का दावा है कि मेट्रो शराब पहाड़ी फलों का दाम न मिलने पर उन्हें बर्बाद नहीं होने देगी।
आबकारी आयुक्त हरिचंद सेमवाल ने कहा कि पहले सिर्फ पांच जनपदों में मेट्रो शराब बिक्री की बात थी, लेकिन अब इसे अलग-अलग नामों से सभी जिलों में बेचा जाएगा। इससे जहरीली शराब पर भी पूरी तरह से प्रतिबंध लग सकेगा। देश-विदेशों की तर्ज पर फलों, वनस्पतियों और पत्तियों से बनने वाली अच्छी गुणवत्ता की सस्ती मेट्रो मदिरा उत्तराखंड में भी बिकेगी।
आयुक्त सेमवाल ने कहा कि सरकार ने नई शराब नीति में अंग्रेजी शराब की दुकानों में सस्ती मेट्रो मदिरा का प्रावधान किया है। यह मदिरा उत्तराखंड में राजस्व बढ़ाने में भी मददगार साबित होगी। राज्य में बड़ी मात्रा में पड़ोसी राज्यों हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश से तस्करी और स्थानीय स्तर पर बनाई जाने वाली जहरीली, नशीली शराब राजस्व के साथ नुकसानदेह साबित हो रही है।
राज्य में मेट्रो मदिरा बनाने के लिए फलों, वनस्पतियों, पत्तियों आदि उत्पादों की मांग से पहाड़ में पारंपरिक खेती, औद्यानिकी से रिवर्स माइग्रेशन भी बढ़ेगा। आयुक्त ने बताया, यह शराब उत्तराखंड में ही बनाई जाएगी। इससे मेट्रो मदिरा का नाम भी माल्टे, पुलम, सेब, आडू, काफल, किंगोड़, ईशर, बमोर जैसे नामों से ब्रांड तैयार होंगे।