– अब तक बैंक के जरिए खरीदे जाते रहे हैं चुनावी बांड , 20 हजार तक के चंदे को बताना नहीं था जरूरी
– कोर्ट ने पार्टियों से चंदे के रूप में मिले धन का ब्योरा देने को कहा
पहाड़ का सच/एजेंसी
नई दिल्ली।सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को अंसवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि चुनावी बांड योजना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि बैंक तत्काल चुनावी बांड जारी करना बंद कर दें। एसबीआई को ताकीद किया गया है कि राजनीतिक दलों द्वारा लिए गए चुनावी बांड का ब्योरा पेश करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि एसबीआई भारत के चुनाव आयोग को विवरण प्रस्तुत करे और चुनाव आयोग इन विवरणों को वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा।
Eci की वेबसाइट पर देना होगा चंदे का ब्योरा
चुनावी बांड पर चल रही सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से कॉर्पोरेट योगदानकर्ताओं के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए क्योंकि कंपनियों द्वारा दिया गया दान पूरी तरह से बदले के उद्देश्य से है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि गुमनाम चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयां हैं और चुनावी विकल्पों के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है।
*.चंदे की जानकारी न देना असंवैधानिक*
कोर्ट ने कहा कि चंदे की जानकारी न देना असंवैधानिक है। साथ ही यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन भी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वोटर्स को यह जानने का हक है कि पार्टियों को किसने चंदा दिया है। केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि दो अलग-अलग फैसले हैं। एक उनके द्वारा लिखा गया और दूसरा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा और दोनों फैसले सर्वसम्मत हैं।
.पार्टियों से मांगा चंदे का ब्यौरा
सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) को आदेश दिया है कि बैंक , अदालत को इलेक्ट्रोरल बांड के बारे में जानकारी दे व चुनावी बांड जारी करना तुरंत रोके। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दल बताएं कि चुनावी बांड से उन्हें कितना पैसा मिला।
क्या है चुनावी बॉन्ड, जानिए !*
केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की राशि में पारदर्शिता लाने के लिए 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, एक लाख रुपए, 10 लाख रुपए और एक करोड़ रुपए के मूल्य में चुनावी बांड जारी किये हैं. इन बांड को स्टेट बैंक की चुनिन्दा शाखाओं से खरीदा जा सकता है।
केंद्र सरकार ने देश के राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए वित्त वर्ष 2017-18 के बजट के दौरान चुनावी बॉन्ड शुरू करने की घोषणा की थी। जनवरी 2018 में लोकसभा में वित्त मंत्री अरुण जेतली ने कहा कि चुनावी बॉन्ड के नियमों को अंतिम रूप दे दिया गया है।
चुनावी बॉन्ड की परिभाषा: चुनावी बॉन्ड से मतलब एक ऐसे बॉण्ड से होता है जिसके ऊपर एक करेंसी नोट की तरह उसकी वैल्यू या मूल्य लिखा होता है. यह बॉण्ड व्यक्तियों, संस्थाओं और संगठनों द्वारा राजनीतिक दलों को पैसा दान करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
ये चुनावी बॉन्ड 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, एक लाख रुपए, 10 लाख रुपए और एक करोड़ रुपए के मूल्य में उपलब्ध होंगे. इसे राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया जा रहा है.
. क्या होता है चुनावी बॉन्ड,जानिए
भारत का कोई भी नागरिक या संस्था या कोई कंपनी चुनावी चंदे के लिए बॉन्ड खरीद सकेंगे.
ये चुनावी बॉन्ड 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, एक लाख रुपए, 10 लाख रुपए और एक करोड़ रुपए के मूल्य में उपलब्ध होंगे।
दानकर्ता चुनाव आयोग में रजिस्टर किसी उस पार्टी को ये दान दे सकते हैं, जिस पार्टी ने पिछले चुनावों में कुल वोटों का कम से कम 1% वोट हासिल किया है।
बॉन्ड के लिए दानकर्ता को अपनी सारी जानकारी (केवाईसी) बैंक को देनी होगी।
चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों के नाम गोपनीय रखा जायेगा।
. इन बांड्स पर बैंक द्वारा कोई ब्याज नही दिया जायेगा।
. इन बॉन्ड को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिन्दा शाखाओं से ही खरीदा जा सकेगा।
. बैंक के पास इस बात की जानकारी होगी कि कोई चुनावी बॉन्ड किसने खरीदा है।
. बॉन्ड खरीदने वाले को उसका जिक्र अपनी बैलेंस शीट में भी करना होगा।
. बांड्स को जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर महीने में खरीदा जा सकता है।
. बॉन्ड खरीदे जाने के 15 दिन तक मान्य होंगे।
. राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग को भी बताना होगा कि उन्हें कितना धन चुनावी बॉन्ड से मिला है।
वर्ष 2017 के बजट से पहले यह नियम था कि यदि किसी राजनीतिक पार्टी को 20 हजार रुपये से कम का चंदा मिलता है तो उसे चंदे का स्रोत बताने की जरुरत नही थी. इसी का फायदा उठाकर अधिकतर राजनीतिक दल कहते थे कि उन्हें जो भी चंदा मिला है वह 20 हजार रुपये प्रति व्यक्ति से कम है इसलिए उन्हें इसका स्रोत बताने की जरुरत नही है। इस व्यवस्था के चलते देश में काला धन पैदा होता था और चुनाव में इस धन का इस्तेमाल कर चुनाव जीत लिया जाता था।
कुछ राजनीतिक दलों ने तो यह दिखाया कि उन्हें 80-90 प्रतिशत चंदा 20 हजार रुपये से कम राशि के फुटकर दान के जरिये ही मिला था। चुनाव आयोग की सिफारिश के आधार पर 2017 के बजट सत्र में सरकार ने गुमनाम नकद दान की सीमा को घटाकर 2000 रुपये कर दिया था। अर्थात 2000 रुपये से अधिक का चंदा लेने पर राजनीतिक पार्टी को यह बताना होगा कि उसे किस स्रोत से चंदा मिला है।