
ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल

वैदिक पंचांग
*⛅दिनांक – 27 दिसम्बर 2025*
*⛅दिन – शनिवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2082*
*⛅अयन – दक्षिणायण*
*⛅ऋतु – शिशिर*
*⛅ अमांत – 12 गते पौष मास प्रविष्टि*
*⛅ राष्ट्रीय तिथि – 6 पौष मास*
*⛅मास – पौष*
*⛅पक्ष – शुक्ल*
*⛅तिथि – सप्तमी दोपहर 01:09 तक तत्पश्चात् अष्टमी*
*⛅नक्षत्र – पूर्व भाद्रपद सुबह 09:09 तक तत्पश्चात् उत्तर भाद्रपद*
*⛅योग – व्यतीपात दोपहर 12:22 तक तत्पश्चात् वरीयान्*
*⛅राहुकाल – सुबह 09:47 से सुबह 11:02 तक (हरिद्वार मानक समयानुसार)*
*⛅सूर्योदय – 07:11*
*⛅सूर्यास्त – 05:24 (सूर्योदय एवं सूर्यास्त हरिद्वार मानक समयानुसार)*
*⛅दिशा शूल – पूर्व दिशा में*
*⛅ब्रह्ममुहूर्त – प्रातः 05:20 से प्रातः 06:13 तक (उज्जैन मानक समयानुसार)*
*⛅अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:07 से दोपहर 12:50 तक (उज्जैन मानक समयानुसार)*
*⛅निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:02 दिसम्बर 28 से रात्रि 12:55 दिसम्बर 28 तक (उज्जैन मानक समयानुसार)*
*🌥️व्रत पर्व विवरण – गुरु गोविन्दसिंहजी जयंती, मण्डला पूजा, त्रिपुष्कर योग (प्रातः 07:06 से प्रातः 09:09 तक)*
*🌥️विशेष – षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातून मुंह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है एवं सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है तथा शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🔹अमृत – औषधि दालचीनी🔹*
*🔸दालचीनी उष्ण, पाचक, स्फूर्तिदायक, रक्तशोधक, वीर्यवर्धक व मूत्रल है । यह वायु व कफ का शमन कर उनसे उत्पन्न होनेवाले अनेक रोगों को दूर करती है ।*
*🔸यह श्वेत रक्तकणों की वृद्धि कर रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाती है । बवासीर, कृमि, खुजली, राजयक्ष्मा ( टी,बी,), इन्फ्लूएंजा ( एक प्रकार का शीतप्रधान संक्रामक ज्वर), मूत्राशय के रोग, टायफायड, ह्रदयरोग, कैन्सर, पेट के रोग आदि में यह लाभकारी है । संक्रामक बीमारियों की यह विशेष औषधि है ।*
*🔹दालचीनी के कुछ प्रयोग🔹*
*🔸१] पेट के रोग व सर्दी – खाँसी : १ ग्राम ( एक चने जितनी मात्रा ) दालचीनी चूर्ण में १ चम्मच शहद मिलाकर दिन में १ – २ बार चाटने से मंदाग्नि, अजीर्ण, पेट की वायु, संग्रहणी रोग, अफरा और सर्दी – खाँसी में लाभ होता है ।*
*🔸२] ह्रदयरोग : एक ग्राम दालचीनी चूर्ण २०० मि.ली. पानी में धीमी आँच पर उबालें । १०० मि.ली. पानी शेष रहने पर उसे छानकर पी लें । इसे रोज सुबह लेने से कोलेस्ट्राँल की अतिरिक्त मात्रा घटती हैं । गर्म प्रकृतिवाले लोग एवं ग्रीष्म ऋतू में इसके पानी में दूध मिलाकर उपयोग कर सकते हैं । इस प्रयोग से रक्त की शुद्धि होती है एवं ह्रदय को बल मिलता है ।*
*🔸३] स्वरभंग, खाँसी व मुँह की बदबू : दालचीनी का छोटा-सा टुकड़ा चूसने से स्वरभंग ( गला बैठना ) की विकृति नष्ट होती है व आवास खुलती है । इससे खाँसी का प्रकोप शांत होता है, मुँह की बदबू दूर होती है, मसूड़े मजबूत बनते हैं और तोतलेपन में भी लाभ होता है ।*
*🔹सावधानियाँ : गर्भवती महिलाओं के लिए दालचीनी लेना निषिद्ध है । इसकी अधिक मात्रा लेने से पित्त ( उष्ण ) प्रकृतिवालों को सिरदर्द होता है । अत्यधिक मात्रा में, रात को या दीर्घकाल तक इसका सेवन करना हानिकारक है ।*
