
पहाड़ का सच/एजेंसी।

अंडमान। RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने एक अहम संबोधन में कहा कि यह भारत के लिए जीने का समय है, मरने का नहीं। उनके इस बयान को देश के वर्तमान सामाजिक, सांस्कृतिक और वैचारिक संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
भागवत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि राष्ट्र के प्रति समर्पण का अर्थ आत्मविनाश नहीं, बल्कि रचनात्मक योगदान, सेवा और जिम्मेदारी निभाना है। उन्होंने कहा कि देश को हर चीज से ऊपर रखना चाहिए। यह भारत के लिए जीने का समय है, मरने का नहीं। हमारे देश में हमारे अपने देश की ही भक्ति होनी चाहिए। यहां ‘तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े होंगे’ जैसी भाषा नहीं चलेगी।
भागवत, अंडमान में दामोदर सावरकर के गीत ‘सागर प्राण तलमाला’ की 115वीं सालगिरह के मौके पर आयोजित समारोह में पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि आज समाज में छोटी-छोटी बातों पर टकराव दिखता है कि हम कैसा सोचते हैं। एक महान देश बनाने के लिए, हमें सावरकर के संदेश को याद करना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि सावरकर जी ने कभी नहीं कहा कि वह महाराष्ट्र से हैं या किसी खास जाति के हैं। उन्होंने हमेशा एक राष्ट्र की सोच सिखाई। हमें अपने देश को ऐसे सभी टकरावों से ऊपर रखना होगा। हमें यह मानना होगा कि हम सब भारत हैं।
उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारत आज एक ऐसे दौर में है, जहां उसे अपनी पूरी ऊर्जा विकास, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक आत्मविश्वास पर केंद्रित करनी चाहिए। भागवत के अनुसार, देश के लिए मरने की बातें भावनात्मक रूप से आकर्षक हो सकती हैं, लेकिन असली राष्ट्रभक्ति देश के लिए ईमानदारी से जीने, समाज को जोड़ने और सकारात्मक परिवर्तन लाने में है। उन्होंने जीवन को राष्ट्रसेवा का सबसे बड़ा माध्यम बताया।
इस दौरान द्वीप समूह के बेओदनाबाद में विनायक दामोदर सावरकर की मूर्ति का अनावरण किया गया।
इस कार्यक्रम में भागवत के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री आशीष शेलार, पद्मश्री हृदयनाथ मंगेशकर, एक्टर रणदीप हुड्डा और शरद पोंक्षे, डॉ. विक्रम संपत भी मौजूद थे।
