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देहरादून। उत्तराखंड में शिक्षा विभाग में फर्जी प्रमाण पत्रों के जरिए नौकरी पाने के मामले यूं तो पहले भी आते रहे हैं, लेकिन इस बार मामला दिव्यांग जनों के हक से खिलवाड़ करने का है। इस मामले में शिक्षा विभाग पहले ही काफी हद तक यह स्पष्ट कर चुका है कि कई शिक्षकों द्वारा फर्जी तरह से दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाए गए और इसी के आधार पर उन्होंने शिक्षा विभाग में नौकरी पाई।

शिक्षा विभाग के अंतर्गत 52 शिक्षकों पर अब जांच की तलवार लटक रही है। मामले के कोर्ट तक पहुंचने के बाद शिक्षा विभाग भी प्रकरण पर गहरी नींद से जाग गया है। मामले में अब फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाकर नौकरी पाने वालों के खिलाफ जांच का दावा किया गया है।
मामला तब सामने आया जब खुद दिव्यांग जन फर्जी प्रमाण पत्र की शिकायतों को लेकर कोर्ट की शरण में पहुंच गए। इस मामले में न्यायालय आयुक्त दिव्यांगजन ने जनहित याचिका के आधार पर शिक्षा विभाग से उन शिक्षकों की सूची मांगी है, जिनके प्रमाण पत्र पूर्व में फर्जी पाए गए थे। खास बात यह है कि इसके बाद जाकर शिक्षा विभाग ने आनन फ़ानन में ऐसे शिक्षकों को 15 दिन के भीतर जवाब देने के लिए नोटिस जारी कर दिया। इस मामले में दिव्यांग जन लगातार ऐसे फर्जी शिक्षकों पर कार्रवाई की मांग करते रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद करीब 2 साल बीतने के बाद भी इन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
सबसे बड़ी बात यह है कि मेडिकल बोर्ड द्वारा ऐसे शिक्षकों को किस तरह प्रमाण पत्र दे दिए गए। इस पर भी अभी कोई जवाब देही तय नहीं हुई है। हालांकि जांच के दौरान यह स्पष्ट हुआ है कि प्रमाण पत्र फर्जी तरीके से बनाए गए। पर किसने बनाए ये कोई बताने को तैयार नहीं है।
हालांकि अब शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत विद्यालयी शिक्षा विभाग के अंतर्गत दिव्यांगता प्रमाण पत्र का गलत लाभ उठाने वाले शिक्षकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात कह रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिये विभागीय स्तर पर निदेशक माध्यमिक शिक्षा की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति गठित कर दी गई, जो केस-टू-केस के आधार पर शिक्षकों के दिव्यांगता प्रमाण पत्रों की गहन जांच कर अपनी रिपोर्ट शासन को उपलब्ध करायेगी।
