

ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल

*🌞~ वैदिक पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक – 18 अक्टूबर 2025*
*⛅दिन – शनिवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2082*
*⛅अयन – दक्षिणायण*
*⛅ऋतु – शरद*
*⛅ अमांत – 2 गते कार्तिक मास प्रविष्टि*
*⛅ राष्ट्रीय तिथि – 26 आश्विन मास*
*⛅मास – कार्तिक*
*⛅पक्ष – कृष्ण*
*⛅ तिथि – द्वादशी दोपहर 12:18 तत्पश्चात् त्रयोदशी*
*⛅नक्षत्र – पूर्वाफाल्गुनी दोपहर 03:41 तक तत्पश्चात् उत्तराफाल्गुनी*
*⛅योग – ब्रह्म रात्रि 01:48 अक्टूबर 19 तक तत्पश्चात् इन्द्र*
*⛅राहुकाल – सुबह 09:13 से सुबह 10:37 तक हरिद्वार मानक समयानुसार)*
*⛅सूर्योदय – 06:20*
*⛅सूर्यास्त – 05:54 (सूर्योदय एवं सूर्यास्त उज्जैन मानक समयानुसार)*
*⛅दिशा शूल – पूर्व दिशा में*
*⛅ब्रह्ममुहूर्त – प्रातः 04:46 से प्रातः 05:35 तक (उज्जैन मानक समयानुसार)*
*⛅अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11:49 से दोपहर 12:35 (उज्जैन मानक समयानुसार)*
*⛅निशिता मुहूर्त – रात्रि 11:47 से रात्रि 12:37 अक्टूबर 19 तक (उज्जैन मानक समयानुसार)*
*⛅️व्रत पर्व विवरण – धनतेरस, यम दीपक, धन्वंतरि जयंती, आयुर्वेद दिवस, शनि प्रदोष व्रत*
*🌥️विशेष – द्वादशी को पूतिका (पोई) व त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🔹स्वास्थ्य का आधार : पथ्य-अपथ्य विवेक🔹*
*पथ्ये सति गदार्तस्य किमौषधनिषेवणैः ।*
*पथ्येऽसति गदार्तस्य किमौषधनिषेवणैः ॥*
*🔹पथ्य हो तो औषधियों के सेवन की क्या आवश्यकता है ? पथ्य न हो तो चाहिए । औषधियों का कोई फल ही नहीं है । स्वास्थ्य अतः सदैव पथ्य का ही सेवन करना चाहिए ।*
*🔹पथ्य अर्थात् हितकर । हितकर का सेवन व अहितकर का त्याग करने हेतु पदार्थों के गुण-धर्मों का ज्ञान होना आवश्यक है ।*
*🔹चरक संहिता के यज्जः पुरुषीय अध्याय में ऐसे हितकर-अहितकर पदार्थों का वर्णन करते हुए श्री चरकाचार्यजी कहते हैं : धान्यों में लाल चावल, दालों में मूँग, शाकों में जीवंती (डोड़ी), तेलों में तिल का तेल, फलों में अंगूर, कंदों में अदरक, नमकों में सैंधव (सेंधा) व जलों में वर्षा का जल स्वभाव से ही हितकर हैं ।*
*🔹जीवनीय द्रव्यों में देशी गाय का दूध, रसायन द्रव्यों में देशी गोदुग्ध-गोघृत का नित्य सेवन, आयु को स्थिर रखनेवाले द्रव्यों में आँवला, सदा पथ्यकर द्रव्यों में हर्रे (हरड़), बलवर्धन में षडरसयुक्त भोजन, आरोग्यवर्धन में समय पर भोजन, आयुवर्धन में ब्रह्मचर्य, थकान दूर करने में स्नान, आरोग्यवर्धक भूमि में मरुभूमि व शारीरिक पुष्टि में मन की शांति सर्वश्रेष्ठ है ।*
*🔹सर्वदा अहितकर पदार्थों में दालों में उड़द, शाकों में सरसों, कंदों में आलू, जलों में वर्षा ऋतु में नदी का जल प्रमुख हैं ।*
*🔹सर्व रोगों के मूल आम (अपक्व आहाररस) को उत्पन्न करने में अधिक भोजन, रोगों को बढ़ाने में दुःख, बल घटाने में एक रसयुक्त भोजन, पुंसत्वशक्ति घटाने में नमक का अधिक सेवन मुख्य कारण है ।*
*🔹अनारोग्यकर भूमि में समुद्र तट का प्रदेश व पूर्णतः अहितकर कर्मों में अत्यधिक परिश्रम प्रमुख है ।*
*🔹अपना कल्याण चाहनेवाले बुद्धिमान मनुष्य को हित-अहित का विचार करके हितकर का ही सेवन करना चाहिए ।*
*🔹आत्महत्या कभी नहीं करना🔹*
*🔹आत्महत्यारे घोर नरकों में जाते हैं और हजारों नरक-यातनाएँ भोगकर फिर देहाती सूअरों की योनि में जन्म लेते हैं । इसलिए समझदार मनुष्य को कभी भूलकर भी आत्महत्या नही करनी चाहिए । आत्महत्यारों का न तो इस लोक में और न परलोक में ही कल्याण होता है ।*
*(स्कंद पुराण, काशी खंड, पूर्वार्द्धः 12.12,13)*
*🔹आत्महत्या करने वाला मनुष्य 60 हजार वर्षों तक अंधतामिस्र नरक में निवास करता है । (पाराशर स्मृतिः 4.1-2)*
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