
ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल

*🌞~ वैदिक पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक – 17 जुलाई 2025*
*⛅दिन – गुरुवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2082*
*⛅अयन – दक्षिणायण*
*⛅ऋतु – वर्षा*
*⛈️ अमांत – 2 गते श्रावण मास प्रविष्टि*
*⛈️ राष्ट्रीय तिथि – 26 आषाढ़ मास*
*⛅मास – श्रावण*
*⛅पक्ष – कृष्ण*
*⛅तिथि – सप्तमी शाम 07:08 तक तत्पश्चात् अष्टमी*
*⛅नक्षत्र – रेवती प्रातः 03:39 जुलाई 18 तक तत्पश्चात् अश्विनी*
*⛅योग – अतिगण्ड सुबह 09:29 तक तत्पश्चात् सुकर्मा*
*⛅राहुकाल – दोपहर 02:06 से शाम 03:49 तक*
*⛅सूर्योदय – 05:27*
*⛅सूर्यास्त – 07:19*
*⛅दिशा शूल – दक्षिण दिशा में*
*⛅ब्रह्ममुहूर्त – प्रातः 04:39 से प्रातः 05:22 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:19 से दोपहर 01:13 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:25 जुलाई 18 से रात्रि 01:07 जुलाई 18 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण – कालाष्टमी, सर्वार्थसिद्धि योग (अहोरात्रि)*
*⛅विशेष – सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है व शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)*
*🔹दंडवत प्रणाम का महत्व🔹*
*🔸ईश्वर की भक्ति के लिए अपने भीतर के सभी नकारात्मक तत्वों को हमें त्यागना पड़ता है और खुद को ईश्वर के चरणों में समर्पित करना होता है । ऐसा हम तभी कर सकते हैं जब हमारे भीतर मौजूद अभिमान हमारे अंतर्मन से निकल जाए । इसलिए शष्टांग प्रणाम के बढ़ावा दिया गया है ।*
*🔹दंडवत प्रणाम कैसे करते हैं ?🔹*
*🔸अपने शरीर को दंडवत मुद्रा में लाते हुए सिर, हाथ, पैर, जाँघे, मन, ह्रदय, नेत्र और वचन को मिलकर लेट कर प्रणाम करें। अष्ट अंगों में दोनों पाँव, दोनों घुटने, छाती, ठुण्डी और दोनों हथेलियाँ शामिल हैं । इस प्रकार के प्रणाम को हम ‘दण्डवत प्रणाम’ इसलिए भी कहते हैं ।*
*🔹अष्टांग दंडवत नमस्कार करने से लाभ🔹*
*👉 1. दंडवत प्रणाम करने से व्यक्ति जीवन के असली अर्थ को समझ पाता है और आगे की दिशा में बढ़ पाता है ।*
*👉 2. व्यक्ति के भीतर समान भाव की प्रवृत्ति जागृत होती है और अभिमान खत्म हो जाता है ।*
*👉 3. दंडवत प्रणाम करने से अहम नष्ट होता है, ईश्वर के निकट पहुंचने का रास्ता है दंडवत प्रणाम ।*
*👉 4. मन में दया और विनम्रता जैसे भाव पनपने लगते हैं ।*
*👉 5. आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक है अष्टाङ्ग नमस्कार ।*
*👉 6. मसल्स के स्टिम्युलेशन और एक्टिव प्रयोग से पीठ मजबूत होने लगती है ।*
*👉 7. व्यक्ति अपने शरीर में ऊर्जा महसूस करने लगता है ।*
*👉 8. पाचन क्रिया में संतुलन बनाये रखने में लाभकारी है ।*
*🔹स्त्रियों को दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करना चाहिए ?*
*’धर्मसिन्धु’ नामक ग्रंथ में इसका उत्तर हमें मिलता है, जिसमें स्पष्ट तौर पर निर्देश दिया गया है-*
*‘ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्रामं च पुस्तकम् ।*
*वसुन्धरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं।।’*
*अर्थात् – ब्राह्मणों का पृष्ठभाग, शंख, शालिग्राम, धर्मग्रंथ एवं स्त्रियों का वक्षस्थल यदि प्रत्यक्ष रूप से भूमि का स्पर्श करते हैं तो हमारी पृथ्वी इस भार को सहन नहीं कर सकती है । यदि पृथ्वी इस असहनीय भार को सहन कर भी लेती है तो वह इस भार को डालने वाले से उसकी अष्ट-लक्ष्मियों का हरण कर लेती है ।*
*🔹स्त्रियां ऐसे करें प्रणाम :🔹*
*🔸स्त्रियां दंडवत प्रणाम के बजाय घुटनों के बल बैठकर अपने मस्तक को भूमि से लगाकर प्रणाम कर सकती हैं ।*
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