
पहाड़ का सच, देहरादून।
सुद्धोवाला स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय वित्तीय प्रशासन, प्रशिक्षण एवं अनुसंधान केंद्र परिसर की निर्माणाधीन चाहरदीवारी को तोड़े जाने को लेकर काफी विवाद हुआ था।

विवाद उस वक्त और बढ़ गया था, जब अपर सचिव वित्त निर्माण स्थल पर पहुंचे और जमीन पर मालिकाना हक जता रहे लोगों से बहस करने लगे।
नहीं रही अदब: सरकारी निर्माण के छेड़छाड़ पर अपर सचिव से भिड़ गया दरोगा
मामला इतना गरमाया कि एक व्यक्ति को थप्पड़ मारने तक की नौबत आ गई। मौके पर पहुंचे झाझरा चौकी प्रभारी हर्ष अरोड़ा से भी उनकी तीखी बहस हुई। परिणामस्वरूप दरोगा को निलंबित कर दिया गया।
अपर सचिव से अभद्रता करने वाला लाइन हाजिर दरोगा हर्ष अरोड़ा निलंबित
अब इस मामले से जुड़ी जो नई जानकारी सामने आई है कि जिस जमीन को लेकर विवाद हुआ, वह न तो सरकारी है और न ही किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति—बल्कि यह भूमि गोल्डन फॉरेस्ट कंपनी की निकली है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट स्टे ऑर्डर है।
गोल्डन फॉरेस्ट और उसकी सहयोगी कंपनियों ने 1990 के दशक में अवैध तरीके से लोगों से पैसे लेकर जमीनें खरीदीं। पूर्व में जब इस घोटाले का खुलासा हुआ, तो सेबी ने वर्ष 1997-98 में इस पर कार्रवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद कोर्ट ने इन कंपनियों की संपत्तियों की बिक्री पर रोक लगा दी और एक समिति गठित की, जो अब संपत्तियों की पहचान और मूल्यांकन कर उन्हें नीलाम कर रही है, ताकि निवेशकों का पैसा वापस लौटाया जा सके।
अब तक देहरादून में ही करीब 1484 करोड़ रुपये की गोल्डन फॉरेस्ट की संपत्तियों की पहचान हो चुकी है। बावजूद इसके, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को खतौनियों में दर्ज नहीं किया जा रहा, जिससे मूल खातेदार या कब्जाधारी संपत्ति की बिक्री या आवंटन करते जा रहे हैं। और इसमें अनजान लोग फंसते जा रहे हैं।
