हरीश जोशी पहाड़ का सच।
राजनीति में कब क्या हो जाए इस बारे में यकीन से कोई भी कुछ नहीं कह सकता। ऐसा ही एक बदलाव लेकर आया है केदारनाथ का उपचुनाव। बदरीनाथ में पिछड़ने वाली भाजपा केदार के द्वार में अपने मिशन में कामयाब हो गई। केदारनाथ की जीत ने न सिर्फ राज्य में भाजपा को आगे की नई राह दिखा दी है, बल्कि पूरे देश में पार्टी की सोच, विचारधारा को अधिक मजबूती और व्यापक संदेश के साथ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की राजनीतिक परिपक्वता को भी दर्शाया है।
कांग्रेस जिस रणनीति से केदारनाथ उपचुनाव में जीत के लिए उतरी थी, नतीजा आने के बाद फिर पिछले पायदान पर आकर खड़ी हो गई है। राज्य के कांग्रेस नेता एक बार फिर ये साबित करने में विफल रहे कि आखिर केदारनाथ के मतदाता उनकी पार्टी
का विधायक क्यों चुनें। जबकि इसी केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र में नौ हजार से अधिक मतदाता ऐसे निकल कर आए हैं जिन्होंने निर्दलीय त्रिभुवन चौहान को वोट दिया, शायद उन्हें भी उनके विधायक बनने पर पूरा भरोसा नहीं होगा। पहाड़ के इस चुनाव ने पुख्ता का दिया है कि इस विधानसभा क्षेत्र में ऐसे मतदाता भी हैं जिन्हें भाजपा-कांग्रेस दोनों पसंद नहीं हैं। चुनावी नतीजों में कुलदीप के बाद अब त्रिभुवन का नाम दोनों दल लंबे समय तक याद रखेंगे।
वैसे राजनीति में बदलाव की चर्चा और गुंजाइश लगभग हमेशा बनी रही है। लिहाजा केदारनाथ उप चुनाव के नतीजों को लेकर भी राजनीतिक लोग अपने-अपने तरह से आस लगाए रहे। उपचुनाव में पूरी कांग्रेस बंटी भी नहीं और डटी भी रही लेकिन नतीजे उसके खिलाफ आए हैं। स्थानीय स्तर पर कोई आंतरिक गुटबाजी मतदाताओं को भी प्रभावित नहीं कर सकी। अब स्थानीय कांग्रेसी नेतृत्व के सामने ठीकरा एक दूसरे पर भी नहीं फोड़ सकेंगे।
भाजपा की बात करें तो केदारनाथ उपचुनाव को पूरी भाजपा ने लोकसभा चुनावों की तरह ही लड़ा। सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल दिखा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव की तारीखें घोषित होने से पहले और मतदान तक लगातार केदारनाथ की यात्रा की। विधानसभा क्षेत्र विकास के कामकाज को लेकर जो लोग सवाल उठा रहे थे मुख्यमंत्री प्रचार पर उतरे उनके मंत्री भी रहे और लोगों को संतुष्ट करने में कामयाब रहे। स्वाभाविक है इस जीत से मुख्यमंत्री धामी की राजनीतिक परिपक्वता की चर्चा होगी और उनकी पार्टी के नेतृत्व के समक्ष उनका कद और बढ़ेगा।
अगर नतीजे उलट आते तो शायद राजनीतिक कॅरियर के लिए भी केदारनाथ कुछ नया लेकर आता। कुछ राजनेता फिर आस लगाए रहते। केदारनाथ के मतदाताओं ने नतीजों के माध्यम से कयासबाजों को शांत किया है। साथ ही राजनीतिक स्थिरता के साथ अगले मिशन पर पहुंचने का समय और संदेश दिया है।