ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल
*🌞~ वैदिक पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक – 07 नवम्बर 2024*
*⛅दिन – गुरुवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2081*
*⛅अयन – दक्षिणायन*
*⛅ऋतु – हेमन्त*
*⛅ अमांत – 22 गते कार्तिक मास प्रविष्टि*
*🌥️ राष्ट्रीय तिथि – 15 कार्तिक मास*
*⛅मास – कार्तिक*
*⛅पक्ष – शुक्ल*
*⛅तिथि – षष्ठी रात्रि 12:34 नवम्बर 08 तक तत्पश्चात सप्तमी*
*⛅नक्षत्र – पूर्वाषाढा प्रातः 11:47 तक तत्पश्चात उत्तराषाढा*
*⛅योग – धृति प्रातः 09:52 तक तत्पश्चात शूल*
*⛅राहु काल – दोपहर 01:21 से दोपहर 02:41 तक*
*⛅सूर्योदय – 06:36*
*⛅सूर्यास्त – 05:25*
*⛅दिशा शूल – दक्षिण दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:06 से 05:57 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:01 से दोपहर 12:46 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 11:58 नवम्बर 07 से रात्रि 12:49 नवम्बर 08 तक*
*⛅ व्रत पर्व विवरण – सूर सम्हारम, छठ पूजा, स्कन्द षष्ठी*
*⛅विशेष – षष्ठी को नीम-भक्षण (पत्ती फल खाने या दातुन मुंह में डालने) से नीच योनियों की प्राप्ति होती है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹प्रकृति अनुसार विहार🔹*
*🔹वात प्रकृति🔹*
*🔹त्याज्य : अति परिश्रम, अति व्यायाम, सतत अध्ययन, अधिक बोलना, अधिक पैदल चलना अथवा वाहनों में घूमना, तैरना, अति उपवास, रात्रि जागरण, भय, शोक, चिंता, मल-मूत्र आदि वेगों को रोकना, पश्चिम दिशा से आनेवाली हवा का सेवन ।*
*🔹हितकर : सर्वांग मालिश (विशेषतः सिर व पैर की), कान-नाक में तेल डालना, आराम, सुखशीलता, निश्चिंतता व शांत निद्रा ।*
*🔹पित्त प्रकृति 🔹*
*🔹त्याज्यः तेज धूप में घूमना, अग्नि के निकट रहना, रात्रि जागरण, अति परिश्रम, अति उपवास, क्रोध, शोक, भय ।*
*🔹हितकर : शीत, सुगंधित द्रव्यों (जैसे चंदन, अगरु) का लेप, शीत तेलों से मालिश ।*
*🔹कफ प्रकृति🔹*
*🔹त्याज्य : दिन में शयन, आरामप्रियता, आलस्य ।*
*🔹हितकर : घूमना-फिरना, दौड़ना, तैरना, व्यायाम, आसन, प्राणायाम ।*
*( त्रिदोष सिद्धांत पृ.क्र. ४)*
*🔹सुख-शांतिप्रदायक ईशान-स्थल🔹*
*🔹सुख-शांति और कल्याण चाहनेवाले बुद्धिमानों को अपने घर, दुकान या कार्यालय में ईशान-स्थल पर अपने इष्टदेव, सदगुरु का श्रीचित्र लगा के वहाँ धूप-दीप, मंत्रोच्चार तथा साधना-ध्यान पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख करके करना चाहिए । यह विशेष सुख-शांतिदायक है ।*
*🔹ज्ञानार्जन में सहायता व सत्प्रेरणा हेतु🔹*
*🔹विद्यार्थियों के लिए भी ईशान कोण बड़े महत्त्व का है । पूर्व एवं उत्तर दिशाएँ ज्ञानवर्धक दिशाएँ तथा ईशान-स्थल ज्ञानवर्धक स्थल है । जो विद्यार्थी ईशान-स्थल पर बैठ के पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पढ़ता है, उसे ज्ञानार्जन में विशेष सहायता मिलती है । पूर्व की ओर मुख करने से विशेष लाभ होता है । अध्ययन-कक्ष में सदगुरु या ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों के श्रीचित्र लगाने चाहिए, इससे सत्प्रेरणा मिलती है ।