ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल
🕉️ *~ वैदिक पंचांग ~* 🕉️
🌤️ *दिनांक – 27 अक्टूबर 2024*
🌤️ *दिन – रविवार*
🌤️ *विक्रम संवत – 2081 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2080)*
🌤️ *शक संवत – 1946*
🌤️ *अयन – दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु – हेमंत ऋतु*
⛅ *अमांत – 11गते कार्तिक मास*
⛅ *राष्ट्रीय तिथि – 4 आश्विन मास*
🌤️ *मास – कार्तिक (गुजरात-महाराष्ट्र अश्विन)*
🌤️ *पक्ष – कृष्ण*
🌤️ *तिथि – एकादशी पूर्ण रात्रि तक*
🌤️ *नक्षत्र – मघा दोपहर 12:24 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी*
🌤️ *योग – ब्रह्म पूर्ण रात्रि तक*
🌤️ *राहुकाल – शाम 04:08 से शाम 05:30 तक*
🌤️ *सूर्योदय – 06:27*
🌤️ *सूर्यास्त – 17:34*
👉 *दिशाशूल – पश्चिम दिशा में*
🚩 *व्रत पर्व विवरण – एकादशी वृद्धि तिथि*
💥 *विशेष – हर एकादशी को श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से घर में सुख शांति बनी रहती है l राम रामेति रामेति । रमे रामे मनोरमे ।। सहस्त्र नाम त तुल्यं । राम नाम वरानने ।।*
💥 *आज एकादशी के दिन इस मंत्र के पाठ से विष्णु सहस्रनाम के जप के समान पुण्य प्राप्त होता है l*
💥 *एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए।*
💥 *एकादशी को चावल व साबूदाना खाना वर्जित है | एकादशी को शिम्बी (सेम) ना खाएं अन्यथा पुत्र का नाश होता है।*
💥 *जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं।*
🕉️ *~ वैदिक पंचांग ~* 🕉️
🌷 *धनतेरस* 🌷
➡ *29 अक्टूबर 2024 मंगलवार को धनतेरस है ।*
🙏🏻 *कार्तिक कृष्ण (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार अश्विन) त्रयोदशी के दिन को धनतेरस कहते हैं । भगवान धनवंतरी ने दुखी जनों के रोग निवारणार्थ इसी दिन आयुर्वेद का प्राकट्य किया था । इस दिन सन्ध्या के समय घर के बाहर हाथ में जलता हुआ दीप लेकर भगवान यमराज की प्रसन्नता हेतु उन्हे इस मंत्र के साथ दीप दान करना चाहिये-*
🌷 *मृत्युना पाशदण्डाभ्याम् कालेन श्यामया सह ।*
*त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम ॥*
🔥 *(त्रयोदशी के इस दीपदान के पाश और दण्डधारी मृत्यु तथा काल के अधिष्ठाता देव भगवान देव यम, देवी श्यामला सहित मुझ पर प्रसन्न हो।)*
🕉️ *~ वैदिक पंचांग ~* 🕉️
🌷 *गोवत्स द्वादशी* 🌷
🙏🏻 *कार्तिक मास (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार अश्विन मास) की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी कहते हैं । इस दिन यानी 28 अक्टूबर 2024 सोमवार को दूध देने वाली गाय को उसके बछड़े सहित स्नान कराकर वस्त्र ओढाना चाहिये, गले में पुष्पमाला पहनाना , सींग मढ़ना, चन्दन का तिलक करना तथा ताम्बे के पात्र में सुगन्ध, अक्षत, पुष्प, तिल, और जल का मिश्रण बनाकर निम्न मंत्र से गौ के चरणों का प्रक्षालन करना चाहिये ।*
🌷 *क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते ।*
*सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नमः ॥*
🙏🏻 *(समुद्र मंथन के समय क्षीरसागर से उत्पन्न देवताओं तथा दानवों द्वारा नमस्कृत, सर्वदेवस्वरूपिणी माता तुम्हे बार बार नमस्कार है।)*
🐄 *पूजा के बाद गौ को उड़द के बड़े खिलाकर यह प्रार्थना करनी चाहिए-*
🌷 *“सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता ।*
*सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस ॥*
*ततः सर्वमये देवि*
*मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरू नन्दिनी ॥“*
🙏🏻 *(हे जगदम्बे ! हे स्वर्गवासिनी देवी ! हे सर्वदेवमयी ! मेरे द्वारा अर्पित इस ग्रास का भक्षण करो । हे समस्त देवताओं द्वारा अलंकृत माता ! नन्दिनी ! मेरा मनोरथ पूर्ण करो।) इसके बाद रात्रि में इष्ट , ब्राम्हण, गौ तथा अपने घर के वृद्धजनों की आरती उतारनी चाहिए।