ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल
*🌞~ वैदिक पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक – 29 सितम्बर 2024*
*⛅दिन – रविवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2081*
*⛅अयन – दक्षिणायन*
*⛅ऋतु – शरद*
*⛅ अमांत – 14 गते आश्विन मास प्रविष्टि*
*⛅ राष्ट्रीय तिथि – 8 भाद्रपद मास*
*⛅मास – आश्विन*
*⛅पक्ष – कृष्ण*
*⛅तिथि – द्वादशी शाम 04:47 तक तत्पश्चात त्रयोदशी*
*⛅नक्षत्र – मघा प्रातः 06:19 सितम्बर 30 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी*
*⛅योग – साध्य रात्रि 12:28 सितम्बर 30 तक तत्पश्चात शुभ*
*⛅राहु काल – शाम 04:32 से शाम 06:01 तक*
*⛅सूर्योदय – 06:10*
*⛅सूर्यास्त – 06:05*
*⛅दिशा शूल – पश्चिम दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:54 से 05:43 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:06 से दोपहर 12:54 तक*
*निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:06 सितम्बर 30 से रात्रि 12:54 सितम्बर 30 तक*
*⛅ व्रत पर्व विवरण – द्वादशी श्राद्ध, प्रदोष व्रत*
*⛅विशेष – द्वादशी को पूतिका (पोई) खाने से पुत्र का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹पढाई में आशातीत लाभ हेतु🔹*
*🔸विद्यार्थी अध्ययन-कक्ष में अपने इष्टदेव या गुरुदेव का श्रीविग्रह अथवा स्वस्तिक या ॐकार का चित्र रखें तथा नियमित अध्ययन से पूर्व उसे १०-१५ मिनट अपनी आँखों की सीध में रखकर पलकें गिराये बिना एकटक देखें अर्थात त्राटक करें । इससे पढ़ाई में आशातीत लाभ होता हैं ।*
*🔹रोग का रहस्य और निरोगता का मूल🔹*
*🔸 जो भोगी होता है वह रोगी अवश्य होता है, यह नियम है ।*
*🔸 जो साधन-सामग्री है उसके द्वारा साधक किसी प्रकार के सुख की आसक्ति में बँधे नहीं, इसी कारण प्यारे परमात्मा रोग के स्वरूप में प्रकट होते हैं । पर साधक यह रहस्य जान नहीं पाता कि मेरे ही प्यारे रोग के वेश में आये हैं ।*
*🔸 शारीरिक बल का आश्रय तोड़ने के लिए रोग आया है । उससे डरो मत अपितु उसका सदुपयोग करो । रोग का सदुपयोग देह की वास्तविकता का अनुभव कर उससे असंग हो जाना है ।*
*🔸 चित्त में प्रसन्नता, मन में निर्विकल्पता ज्यों-ज्यों सबल तथा स्थायी होती जायेगी त्यों-त्यों स्वतः आरोग्यता आती जायेगी, इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है ।*
*🔸 निश्चितता तथा निर्भयता आने से प्राणशक्ति सबल होती है, जो रोग मिटाने में समर्थ है । उसके लिए हरि-आश्रय तथा विश्राम (विश्रांति) ही अचूक उपाय है ।*
*🔸 शरीर का पूर्ण स्वस्थ होना शरीर के स्वभाव से विपरीत है । जिस प्रकार दिन और रात दोनों ही काल की सुंदरता होती है उसी प्रकार रोग और आरोग्यता दोनों से ही शरीर की वास्तविकता प्रकाशित होती है ।*
*🔸 जो रोग औषधि से ठीक नहीं होता उसका कारण अदृष्ट (भाग्य, पूर्व के कर्मों का फल) की मलिनता होती है । अदृष्ट की मलिनता शुभ कर्म आदि से दूर होती है, औषधि से नहीं ।*
*🔸 रोग-निवृत्ति का एक सर्वोत्तम उपाय यह भी है कि यदि रोगी रोगी-भाव का सद्भाव अपने में से निकाल दे तो फिर रोग बेचारा निर्जीव हो जाता है क्योंकि ‘मैं’ की सत्ता से सभी सत्ताएँ प्रकाशित होती हैं । सद्भाव से प्रतीति में सत्यता आ जाती है जो दुःख का मूल है ।*
*🔸 रोग यही है कि ‘मैं रोगी हूँ ।’ औषधि यही है कि ‘मैं सर्वदा निरोग हूँ, मैं साक्षात् आरोग्य हूँ ।’ आरोग्यता से अपनी जातीय एकता है । यदि एक बार भी अपनी पूरी शक्ति से यह आवाज लगा दो कि ‘मैं निरोग हूँ, मैं ही आरोग्य हूँ’ तो रोग भाग जायेगा ।*
*🔸 मन में स्थिरता, चित्त में प्रसन्नता और हृदय में निर्भयता ज्यों-ज्यों बढ़ती जायेगी त्यों-त्यों आरोग्यता स्वतः आती जायेगी कारण कि मन तथा प्राण का घनिष्ठ संबंध है । अतः मन के स्वस्थ होने से शरीर भी स्वस्थ हो जाता है ।*
*🔸 रोग से अशुभ कर्म के फल का अंत होता है और तप से अशुभ कर्म का अंत होता है । जिस प्रकार तपस्वी को तप के अंत में शांति मिलती है । उसी प्रकार रोगी को भी रोग के अंत में शांति मिलती है ।*
*🔸बाधाएँ आती है तो…🔸*
*यदि आपको किसी कार्य में बाधा आ रही हो तो किसी शुभ समय में पीपल के पत्ते पर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ मंत्र तीन बार लिख के उसे अपने पूजा-स्थल में रखकर पूजन करें । इससे बाधाएँ समाप्त होंगी ।*
🙏💐🌹🌺🕉️🌺🌹💐🕉️🙏