ज्योतिष इंद्रमोहन डंडरियाल
*🌞~वैदिक पंचांग ~🌞*
*⛅दिनांक – 7 सितम्बर 2024*
*⛅दिन – शनिवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2081*
*⛅अयन – दक्षिणायन*
*⛅ऋतु – शरद*
*🌦️ अमांत – 23 गते भाद्रपद मास प्रविष्टि*
*🌦️ राष्ट्रीय तिथि – 16 श्रावण मास*
*⛅मास – भाद्रपद*
*⛅पक्ष – शुक्ल*
*⛅तिथि – चतुर्थी शाम 05:37 तक तत्पश्चात पंचमी*
*⛅नक्षत्र – चित्रा दोपहर 12:34 तक तत्पश्चात स्वाति*
*⛅योग – ब्रह्म रात्रि 11:17 तक तत्पश्चात इंद्र*
*⛅राहु काल – प्रातः 09:08 से प्रातः 10:41 तक*
*⛅सूर्योदय – 05:56*
*⛅सूर्यास्त – 06:32*
*⛅दिशा शूल – पूर्व दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:52 से 05:38 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:12 से 01:02 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:14 सितम्बर 08 से रात्रि 01:01 सितम्बर 08 तक*
*⛅ व्रत पर्व विवरण – गणेश चतुर्थी (चंद्र दर्शन निषिद्ध, चन्द्रास्त – रात्रि 09.27), गणेश महोत्सव प्रारम्भ, सर्वार्थ सिद्धि योग (दोपहर 12:24 से प्रातः 06:24 सितम्बर 08 तक)*
*⛅विशेष – चतुर्थी को मूली खाने से धन-नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹अपने हाथ में ही अपना आरोग्य🔹*
*🔸१) सभी अंगों में पुष्टिदायक तेल की मालिश अवश्य करानी चाहिए सिर में कान में और पैरों में तो विशेष रूप से करानी चाहिए । कराने से वायु तथा कफ मिटता है, थकान मिटती है, शक्ति तथा सुख की प्राप्ति होती है, नींद अच्छी आती है, शरीर का वर्ण सुधरता है, शरीर में कोमलता आती है, आयुष्य की वृद्धि होती है तथा देह की पुष्टि होती है ।*
*🔸(२) सिर में मालिश किया हुआ तेल सभी इन्द्रियों को तृप्त करता है, दृष्टि को बल देता है, सिर के दर्दों को मिटाता है। बाल में तेल पहुँचने से बाल घने, लम्बे तथा मुलायम होते हैं । लंबे समय तक टिकते हैं और बाल काले बने रहते हैं तथा सिर को भी भरा हुआ रखता है ।*
*🔸(३) नित्य कान में तेल डालने से कान में रोग या मैल नहीं होता । गले के बाजू की नाड़ी तथा दाढ़ी अकड नहीं जाती । बहुत ऊँचे से सुनना या बहरापन नहीं होता । कान में रस आदि पदार्थ डालने हों तो भोजन से पहले डालना हितकर है ।*
*🔸(४) पैरों पर तेल मसलने से पाँव मजबूत होते हैं। नींद अच्छी आती है, आँख स्वच्छ रहती है तथा पैर झूठे नहीं पड़ जाते, श्रम से अकड़ नहीं जाते, संकोच प्राप्त नहीं करते तथा फटते भी नहीं । जिस तरह गरुड़ के पास साँप नहीं जाते उसी तरह कसरत के अभ्यासी और तेल की मालिश करानेवाले के पास रोग नहीं जाते । नहाते समय तेल का उपयोग किया हो तो वह तेल रोंगटों के छिद्रों, शिराओं के समूह तथा धमनियों के द्वारा सम्पूर्ण शरीर को तृप्त करता है तथा बल प्रदान करता है ।*
*🔸(५) जिस तरह मूल में सिंचित वृक्षों के पत्ते आदि वृद्धि प्राप्त करते हैं उसी तरह अंगों पर तेल मलवानेवाले मानवों की तेल से सिंचित धातुएँ पुष्टि प्राप्त करती हैं ।*
*🔸(६) बुखार से पीड़ित, कब्जियतवाले, जिसने जुलाब लिया हो, जिसे उल्टी हुई हो, उसे कभी भी तेल की मालिश नहीं करनी चाहिये ।*
*🔸(७) मुँह पर तेल मलने से आँखें मजबूत होती हैं, गाल पुष्ट होते हैं, फोड़े तथा फुन्सियाँ नहीं होती और मुँह कमल के समान सुशोभित होता है ।*
*🔸(८) जो मनुष्य प्रतिदिन आँवले से स्नान करता है उसके बाल जल्दी सफेद नहीं होते और वह सौ वर्ष तक जीवित रहता है ।*
*🔸(९) दर्पण में देहदर्शन करना यह मंगलरूप है, कांतिकारक है, पुष्टिदाता है, बल तथा आयुष्य को बढ़ाने वाला है और पाप तथा अलक्ष्मी का नाश करनेवाला ।*
*🔸(१०) जो मनुष्य सोते समय बिजोरे के पत्तों का चूर्ण शहद के साथ चाटता है वह सुखपूर्वक सो सकता है ।*
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