पहाड़ का सच के लिए ए के डंडरियाल।
दादु म्यरि उल्यरि जिकुड़ी.
दादु मि परबतू को वासी..
दादु म्यरु सौंजड्या च कप्फू।
दादु म्यरि गैल्या चा हिलांसी.. झम ।।
प्रथम गढ़वाली कवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी का जन्म पौड़ी जनपद के मवालस्यूं पट्टी के नैली गांव में 11 नवंबर, 1933 में हुआ था। वे बीस वर्ष की अवस्था में रोजगार की तलाश में दिल्ली आ गये थे। उन्होंने 16 वर्ष की अवस्था से ही चूते-चप्पल पहनना छोड़ दिया था। दिल्ली आकर वे बिड़ला मिल में नौकरी करने लगे। बाद में मिल बंद होने से बेरोजगार हो गये। उन्होंने अपने परिवार के भरण-पोषण के लिये चाय बेचने का काम किया। वो कंधें में चाय की पैकेटों का थैला लटकाये घर-घर नंगे पैर जाते थे। गर्मी, बरसात या सर्दी हर मौसम में वे अपने काम को बड़ी शिद्दत के साथ करते मिलते।
उनके अंदर समाज को जानने-समझने और गहरी संवेदनाओं के साथ आमजन की पीड़ा को रखने की चेतना भी इन्हीं संघर्षो से आई। गढ़वाली भाषा और साहित्य को एक उच्च मुकाम तक पहुंचाने में कन्हैयालाल डंडरियाल जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गढ़वाल के प्रति उनकी अगाथ श्रद्धा और प्रतिबद्धता को उनके पूरे साहित्य में देखा जा सकता है। यह समर्पण उनके लिखने में ही नहीं, बल्कि व्यवहार में भी था। उन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ, राग-द्वेष और बिना किसी पूर्वाग्रह के जीवन मूल्यों, जीवन दृष्टि, व्यथा-वेदना, जनसरोकार, हर्ष, पीड़ा, संघर्षों को केन्द्र में रखकर उत्कृष्ट, उदात्त और जीवंत साहित्य की रचना की। कई बार वह व्यंग के रूप में भी उभरकर सामने आती है। उनके लेखन में सामयिक चेतना साफ दिखाई देती है। दूरदृष्टि भी. उनके लेखन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह पाठकों को बहुत गहरे तक प्रभावित करता है।
उनकी दो कविताएं।
हमरू गढ़वाल
खरड़ी डांडी, पुन्गड़ी लाल, धरती को मुकुट
भारत को भाल, हमरु गढ़वाल
यखै संस्कृति – गिंदडु, भुजयलु, ग्यगुडू, गड्याल।
सांस्कृतिक सम्मेलन – अठवाड़।
महान बलि – नारायण बलि।
तकनीशियन – जन्द्रों सल्ली।
दानुम दान – मुकदान।
बच्यूं – निरभगी, मुरियुं – भग्यान।
परोपकारी – बेटयूं को परवाण।
विद्वान – जु गणत के जाण।
नेता – जैन सैणों गोर भ्यालम हकाण।
समाज सुधारक – जैन छन्यू बैठी दारू बणाण।
बडू आदिम – जु बादीण नचाव।
श्रद्धापात्र – बुराली, बाघ अर चुड़ाव।
मार्गदर्शक – बक्या।
मान सम्मान – सिरी, फट्टी, रान।
दर्शन – सैद, मशाण, परी, हन्त्या।
उपचार – कण्डली टैर, जागरदार मैर, लाल पिंगली सैर।
खोज – बुजिना।
शोध – सुपिना।
उपज – भट्ट अर भंगुलो।
योजना – कैकी मौ फुकलो।
उद्योग – जागर, साबर, पतड़ी।
जीवन – यख बटे वख तैं टिपड़ी।
व्यंजन – खूंतड़ों अर बाड़ी।
कारिज – ब्या, बर्शी, सप्ताह।
प्रीतिभोज – बखरी अर बोतल।
पंचैत – कल्यो की कंडी, भाते तौली।
राष्ट्रीय पदक – अग्यल पट्टा, पिन्सन पट्टा, कुकर फट्टा।
बचपन – कोठयूं मा।
जवनी – पलटन, दफ्तर, होटल।
बुढ़ापा – गौल्यूं फर, चुलखंदयूं फर।
आशीर्वाद – भभूते चुंगटी।
वरदान – फटगताल, नि ह्वे, नि खै, नि रै, घार बौड़ी नि ऐ।
आयात – खनु, खरबट, मनीऑर्डर।
निर्यात – छवाड़ बटे छवाड़ तैं बाई और्डर।
शुभ कामना- भगवान सबु तैं, यशवान, धनवान,बलवान बणों, पर मी से बकै ना।
ब्वारी ।
भाई जी ने मैखुणि कि ब्वारी क्या खुज्याई है
कपाळी हुंच्याई है मेरी थुंथरी थिचाई है
अफ्फु को त भात , मैकू झंगोरा पकाती है
मेरा बांठा बाडिम वा दबळी बि नही चलाती है
मैंने माँगा मांड उसने आंखी भ्वंराई हैं
गालुन्द मेरा बंसतुळी से परछोणी खल्याई हैं
की मैंने कम्पलेंट भाई जी के पास में
ही मेरी पेशी झट बौऊ के इजलास में
भौत गन्ग्जाये हम अपणी सफाई में
हार गए केस कोई मिली नहीं गवाही है
चचराने लगी वह मैंने खा शट अप
बिलकी चट शांक्युं फर ह्वेगे मैकू टपटप
खैंची मैंने भिटुलि , उसने चुप्पा झम्मडाई है
पड़ी गे ऐड़ाट मेरो , वह भि डगड्याइ है
चढी तब नडाक मुझे , बौंळी चट बिटाई है
करता हूं मै सळपट तैने क्या चिताई है
बर्बराई चट , वा , उसने मुछ्याळी उठाई है
भागे लुकणो वैबरी तिखन्डी खुज्याई है।