– ज्वालपा देवी मंदिर समिति ने जताया दुख
पहाड़ का सच देहरादून। प्रसिद्ध वानिकी वैज्ञानिक व ज्वालपा देवी मंदिर समिति के संरक्षक वयोवृद्ध डॉ. जे. पी. चंद्रा (डंडरियाल) के निधन पर मंदिर समिति ने दुख जताया।
कुछ दिन पहले रुद्रपुर में अपने आवास पर, वे बाथरूम में फिसल गए थे। चोट लगने के कारण सिर में रक्त जमाव होने के कारण गहन उपचार होने पर भी उन्हें बचाया नही जा सका। गुरुवार की सुबह उन्हें दून लाया गया था,जहां उन्हें बचाया नहीं जा सका। शुक्रवार को हरिद्वार में अंतिम संस्कार किया गया। वे 82 वर्ष के थे।
6 सितंबर 1942 को पौड़ी गढ़वाल में पट्टी जैतोलस्यूं के अंतर्गत पिपखोला गांव में स्व. एम पी डंडरियाल जी के घर हुआ था। डॉ. जे पी चंद्रा बहुत मेधावी छात्र थे। यही कारण था कि वे कृषि स्नातक और बागवानी विज्ञान में स्नातकोत्तर व विद्यावारिधि की उपाधियां प्राप्त कर सके।
डॉ. चंद्रा ने अनेक शोध किए। पर्वतीय क्षेत्र में ग्रामीण विकास के लिए उनके द्वारा स्थापित संस्था की सफलताओं के कारण डॉ. जे पी चंद्रा को बहुत मान मिला। बाद में वे स्वर्गीय हीरावल्लभ थपलियाल के सानिध्य में श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति से जुड़ गए। वे दो दशकों से अधिक समय तक ज्वालपा धाम से जुड़े रहे। छात्रों के भोजनालय में सुधार के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। समिति की सेवा करने में वे सदैव आगे रहे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने पाॅपुलर, यूकेलिप्टिस के क्षेत्र में नये अनुसंधान और क्लोनिंग करके उनकी कई नई प्रजातियां विकसित की हैं। ऐसी करीब 121 प्रजातियों के पेटेण्ट उनके नाम दर्ज हैं। उन्हें कुछ वर्ष पहले ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी ने वानिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें डाक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था।
श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति के अध्यक्ष कर्नल शांति प्रसाद थपलियाल,एवं कार्यकारिणी के सभी सदस्यों ने उनके निधन पर दुख जताया है।