– 13 मार्च से गैरसैंण में बजट सत्र , स्पीकर ने इसी सत्र में स्थाई सचिव की नियुक्ति की बात कही थी
मौजूदा प्रभारी सचिव हेम पंत भी तदर्थ नियुक्ति से नौकरीयाफ्ता हैं
पहाड़ का सच देहरादून।
निजी स्वार्थों के लिए विधानसभा जैसी संवैधानिक संस्थाओं के साथ खिलवाड़ का नतीजा ये है कि लम्बा वक्त बीत जाने के बाद भी विधानसभा को स्थाई सचिव नहीं मिल पाया है। जबकि सितंबर 2022 में विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने सार्वजनिक बयान जारी कर कहा था कि अगले बजट सत्र यानी इस सत्र तक सचिव की नियुक्ति कर दी जाएगी,जो अभी तक हुई नहीं। कालांतर में प्रेम चंद अग्रवाल के अध्यक्ष रहते हुए प्रभारी सचिव(उप सचिव) से सीधे सचिव बने मुकेश सिंघल की ” प्रेम ” गाथा के क्लाइमैक्स के खुलासे के बाद संयुक्त सचिव हेम पंत को प्रभारी सचिव बनाया गया है। पंत भी स्वर्गीय प्रकाश पंत के अध्यक्ष रहते हुए तदर्थ नियुक्ति से नौकरी पाने वालों में हैं जो अब नियमित हो चुके हैं। अब तक सचिव की नियुक्ति न होने के बारे में विधानसभा अध्यक्ष से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई,लेकिन संपर्क नहीं हो सका और न प्रभारी सचिव हेम पंत का फोन उठा।
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उप सचिव शोध से सचिव बने मुकेश सिंघल की ” प्रेम ” गाथा*
पहाड़ का सच
*जनवरी 2019 में पदनाम परिवर्तन के साथ ही सचिव की कुर्सी हासिल करने का बना लिया था टारगेट ।
*शासन ने दिसंबर 2018 को पाबंदी के साथ पदनाम बदला कि शोध कैडर वाले दूसरे कैडर में नहीं आ सकते ।
*हाईकोर्ट से सचिव पद पर नियुक्त जस्टिस सी पी बिजलवान्न को ज्वाइन नही करने दिया।
विधानसभा में उप सचिव शोध से सचिव बने मुकेश सिंघल के लिए वरदहस्त बनी” प्रेम” गाथा का कथानक 2018 में ही तैयार कर किया गया था, जिसका क्लाइमैक्स दिसंबर 2021 में विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद अग्रवाल के हाथों हुआ।
इस कहानी का निचोड़ ये है कि मुख्य शोध अधिकारी के रूप में काम कर रहे मुकेश सिंघल सहित शोध शाखा के अन्य कार्मिकों का पदनाम शासन ने इस पाबंदी के साथ बदला था कि भविष्य में शोध शाखा के कार्मिक सचिवालय के किसी दूसरे कैडर में नहीं जा सकेंगे। जबकि मुकेश सिंघल प्रेम चंद के कार्यकाल में पाबंदी के बाद भी सचिव बन गए। वित्त विभाग ने 18 दिसंबर 2018 को वित्त विभाग ने पदनाम बदलने की सहमति इस प्रतिबंध के साथ दी कि उक्त प्रकोष्ठ या कैडर में तैनात कार्मिको को दूसरे कैडर में स्थानांतरित नहीं किया जाएगा। 30 जनवरी 2019 को तत्कालीन सचिव विधानसभा जगदीश चंद्र की तरफ से शोध शाखा के कार्मिकों के पदनाम बदले जाने का आदेश हुआ किंतु उसमें वित्त विभाग द्वारा लगाई गई पाबंदी का जिक्र नहीं किया गया। इससे आभास होता है कि सुनियोजित गठजोड़ था जिसमें जगदीश चंद्र भी शामिल हो सकते हैं। बताया जाता है कि शोध शाखा के पदनाम बदले जाने के बाद जगदीश चंद्र एक साथ दो साल का सेवा विस्तार की मांग कर रहे थे जो नहीं माना गया और बाद में जगदीश चंद्र का सेवा विस्तार समाप्त कर दिया गया। इसके बाद हाईकोर्ट की तरफ से जस्टिट सी पी बिजलवान की सचिव पद पर नियुक्ति की गई थी और वे ज्वाइनिंग करने विधानसभा आए भी, परंतु उन्हें ज्वाइन नहीं करने दिया गया। जगदीश चंद्र का सेवा विस्तार समाप्त होने के बाद विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने उप सचिव शोध मुकेश सिंघल को विधानसभा के प्रभारी सचिव की जिम्मेदारी दी जबकि उस तिथि पर संयुक्त सचिव के रूप में मदन कुंजवाल और उप सचिव विधानसभा चंद्र मोहन गोस्वामी मौजूद थे।