
हरीश जोशी, पहाड़ का सच।
समय की दरकार कहें या कांग्रेस के कुछ नेताओं की अपनी मजबूरी, पूर्व काबीना मंत्री डॉक्टर हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी भी हो गई, बीच के कुछ लोगों ने हरीश रावत और हरक सिंह रावत के दरकते रिश्तों में पैबंद भी लगा दिए, किंतु लाख टके का सवाल यह है कि ये दोस्ती कितनी टिकाऊ होगी?
भाजपा से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले हरक सिंह रावत ने लंबे अंतराल के बाद जब राज्य बनने से पहले भाजपा छोड़ी तो किसी भी दल में लंबे समय तक टिक नहीं सके। बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस, भाजपा और फिर कांग्रेस में वापसी। राज्य बनने के बाद 21 साल की अवधि बीत चुकी है, दो बार भाजपा और दो बार कांग्रेस की निर्वाचित सरकारें सत्ता में रह चुकी हैं और डॉक्टर हरक सिंह रावत 2002 से 2007, 2012 से 2017 से 2022 तक अलग अलग सरकारों में मंत्री रह चुके हैं।
उनके बारे में कहा जाता है कि वे भांप लेते हैं कि अगली सरकार किसकी बनेगी और उसी के हिसाब से खुद के लिए रजनीतिक माहौल तैयार कर लेते हैं। अव चाहे 2016 में कांग्रेस सरकार में रहते हुए बगावत हो या फिर भाजपा सरकार में 2017 से 2021 तक तत्कालीन मुख़्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ छत्तीस का आंकड़ा, हरक सिंह चर्चाओं में रहे और मुख़्यमंत्री से नाराज रहे।
हालांकि पुष्कर सिंह धामी के मुख़्यमंत्री बनने के बाद कुछ अहम विभाग देकर हरक सिंह रावत के भड़कीले तेवरों को शांत करने की कोशिश की गई, किंतु उससे भी शायद हरक सिंह रावत की तथाकथित नाराजगी दूर नहीं हुई और टिकट बंटवारे से ठीक पहले हरक सिंह रावत को धामी मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया। भाजपा हरक सिंह को अनुशासनहीन बताती है जबकि हरक सिंह भाजपा पर धोखे का आरोप लगा रहे हैं। कौन सच्चा , कौन झूठा ये अंतहीन चर्चा का विषय है।
इससे हटकर 2016 की बगावत पर आते हैं जिसकी मुख्य भूमिका में हरक सिंह रावत थे और पीड़ित पक्ष तत्कालीन मुख़्यमंत्री हरीश रावत थे जो पूरे पांच साल उस बगावत की पीड़ा को सालते रहे। जब भी हरक सिंह का जिक्र आया तो हरीश रावत उन्हें उज्याडू बल्द कहते रहे और राज्य की जनता से माफी मांगने के बाद ही उनकी यानि हरक सिंह रावत की कांग्रेस में वापसी की बात पर जोर देते रहे। शायद बंद कमरे में 100 बार माफीनामा दोहराने के बाद पूर्व काबीना मंत्री की पूर्व मुख़्यमंत्री व उत्तराखण्ड चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष हरीश रावत की मौजूदगी में वापसी भी हो गई ,लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि दोनों रावतों के दरके हुए रिश्तों पर लगाए गए पैबंद कितने दिनों तक टिक पाएंगे।