
पहाड़ का सच
देहरादून – 14 जनवरी 2022
उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस की गढ़वाल मण्डल मीडिया प्रभारी गरिमा महरा दसौरनी ने एक विज्ञप्ति के माध्यम से कहा कि प्रदेश में आचार संहिता लागू होने के साथ ही सरकार के पांच वर्ष के उन कार्यो की समीक्षा की जानी आवश्यक है जिनकी वजह से बहुत से लोग वर्तमान भाजपा सरकार से नाराज है, मुख्य रूप से कर्मचारियों की बात करें तो कौन से कर्मचारी संगठन हैं जिनकी मांगे सरकार ने मानी और किनकी लंबित रही। बेरोजगारों और पदों पर एक समीक्षा जो कि बिन्दुवार है।
1.लम्बे समय से उठ रही सख्त भू कानून की मांग भारतीय जनता पार्टी की प्रचण्ड बहुमत की सरकार ने जाते-जाते भी पूरी नही की जिससे प्रदेश की जनता खासकर युवाओं में घनघोर मायूसी व्याप्त है।
2. पुरानीं पेंशन बहाली को लेकर कर्मचारी आंदोलित रहे , सरकार ने कर्मचारियों से वादा किया कि पुरानी पेंशन बहाल करेंगे परन्तु सरकार ने पुरानी पेंशन पर कमेटी गठित कर भारत सरकार को प्रस्ताव भिजवा दिया और मामला लटका कर पल्ला झाड़ने का कार्य किया।’
3. पूर्व मुख्यमंत्री ने नर्सो की भर्ती हेतु नियमावली में गलत और अन्यायपूर्ण संसोधन कर लिखित परीक्षा का प्रावधान कर 2600 पदों पर भर्ती प्रक्रिया आरम्भ की, संसोधन इतने अन्याय पूर्ण थे कि बार बार भर्ती अटकी और सरकार की किरकिरी हुई,बाद में स्टाफ नर्स की नियमावली पूर्व की भांति की गयी और भर्ती प्रक्रिया आज तक लंबित है, एक साल बाद भी किसी को नौकरी नही मिली।’
4.उपनल से कार्यरत संविदा कर्मचारियों के साथ सरकार ने पुनः विस्वासघात किया और 2-३ हजार मानदेय बढ़ा कर कर्मचारियों के नियमितिकरण को रोक दिया, कर्मचारी खुद को आज भी ठगा महसूस कर रहे हैं।’
5.फार्मासिस्ट संवर्ग के 500से अधिक पदों को सरकार ने खत्म किया और प्रदेश के बेरोजगार फार्मासिस्टों को नाराज किया, बेरोजगारों पर लाठी चार्ज भी किया गया।’
6.लोकनिर्माण विभाग के संविदा अभियंता और मनरेगा कर्मचारियों की मांगो पर कोई सकारात्मक पहल नही की, साथ ही लाठीचार्ज और नो वर्क नो पे लागू किया।’
7.कोरोना महामारी में सबसे अधिक और फ्रंट में कार्य करने वाले राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कार्मिकों को सरकार ने एक भी रू० की वृद्धि नही दी। 17 दिन ये कार्मिक आंदोलन में रहे और आंदोलन के बाद भी अपनी सेवायें कोविड में दिन रात दे रहे हैं फिर भी सरकार ने मानवीय आधार पर इन कर्मियों की मांगो पर सहानुभूति पूर्वक विचार नही किया। पूरे कोरोना काल में सबसे अधिक अन्याय इन्ही कार्मिकों के साथ हुआ।’
8.कृषि सहायकों के मानदेय से लेकर आंगनवाड़ी और आशाओं के मानदेय में भी सरकार ने हजार दो हजार की वृद्धि की परन्तु इनको भी सरकार एक बेहतर भविष्य नही दे सकी।’
9.सरकार ने मेडिकल कालेज में कार्यरत संविदा कार्मिकों को विनियमित करने का वादा किया परन्तु सरकार इन कर्मचारियों के प्रस्ताव पर कैबिनेट की मुहर न लगा सकी।’
10.उच्च शिक्षा, पालिटेक्निक में संविदा शिक्षकों को नियमितिकरण की सौगात तो मिली पर कर्मचारियों के शासनादेश निर्गत नही हो पाये।’
11-पुलिस जवानों का ग्रेड पे 4600 करने का आदेश भी मुख्यमंत्री के आश्वासन के बावजूद पुलिस कर्मियों को नही मिला। पुलिस कर्मियों के परिजन स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और धामी सरकार को बादा खिलाफी करने के लिए सबक सिखाने का मन बना चुके हैं।
12.एएनएम के पदों पर नियमित भर्ती भी इसी सरकार के कार्यकाल में लंबित रही। संविदा पर 200एएनएम की भर्ती सरकार ने स्वास्थ्य मिशन से की परन्तु यह भर्ती भी आऊटसोर्स की गयी जिससे 200 एएनएम का भविष्य भी अधर में लटका है।’
13.सरकार ने अपने 5 वर्ष के कार्यकाल में एक भी ठोस निर्णय किसी भी कर्मचारी संगठन के हित में नही लिया परन्तु इसी के बीच शिक्षा मंत्री गैस्ट शिक्षकों का मानदेय दस हजार और शिक्षा मित्रों का मानदेय 5000 बढ़ाने में सफल रहे ,परन्तु ये कार्मिक भी सुरक्षित भविष्य और स्थाई रोजगार से कोषों दूर हैं।’
14.ऐन आचार संहिता लगते ही शिक्षा विभाग में सैकडों शिक्षकों के ताबड़तोड तबादलों ने प्रदेश की जनता के सामने तथाकथित सुचिता, पादर्शिता और जीरो टाॅलरेन्स की बात करने वाली प्रचण्ड बहुत की सरकार की कलई खोलकर रख दी।
15.वन दरोगा भर्ती में हुई बडी धाधली की बात 80 हजार अभियर्थी कर रहे हैं और विधानसभा चुनावों का बहिष्कार करने की बात कह रहे हैं और तो और अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के सचिव के द्वारा पाॅच दिन में उत्तर तालिका पोर्टल में अपलोड करने की बात कहकर अभियर्थियों को भ्रमित किया जा रहा है।
दसौनी ने कहा कि उपरोक्त सभी विन्दु राज्य सरकार को आयना दिखाने के लिए काफी हैं।1
