
– पीड़ितों को नहीं मिला उचित मुआवजा, मलबे में दफन लोगों के बारे में सही आंकड़ा नहीं

– विस्थापन व पुनर्वास के प्रस्ताव को लेकर राज्यपाल से मिलेगा कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल
पहाड़ का सच देहरादून। उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने कहा कि धराली को लेकर राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे दावे जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा बताई जा रही मृत लोगों की संख्या विरोधाभासी है।

आपदा प्रबंधन विभाग ने धराली आपदा को लेकर 67 लोगों को मृत या गुमशुदा बताया जबकि सरकार में दायित्वधारी कर्नल कोठियाल ने 147 के मलवे में दबे होने का बयान दिया और अब राज्य सरकार की ओर से जो सफाई आई है उसमें 52 लोग गायब या मृत बताए जा रहे हैं। गोदियाल ने कहा कि सरकार इस विरोधाभास को दूर करे और प्रदेश की जनता, विपक्ष और मीडिया के समक्ष सच लाए, चूंकि आपदा राहत और बचाव ये कोई मजाक या राजनीति करने के मुद्दे नही बल्कि मानवीय आधार हैं।
गोदियाल ने कहा कि उत्तराखण्ड कांग्रेस की फैक्ट फाईडिंग टीम (प्रतिनिधि मण्डल ) ने पाया कि आपदा के चार माह बाद भी राज्य सरकार द्वारा न तो धराली में पुनर्वास, पुनर्निर्माण, राहत व विस्थापन का कार्य नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि सरकार के दावे पूरी तरह खोखले साबित हो रहे हैं। धराली की वास्तविक स्थिति बेहद भयावह है। स्थानीय आपदा प्रभावितों के अनुसार 250 नाली नाप की जमीन सम्पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हो चुकी है।
धराली में 112 आवासीय मकान व लगभग 70 होटल, रिसॉर्ट, होमस्टे प्रभावित हुए हैं जबकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार धराली में केवल कुछ ही लोगों को मुआवजा दिया गया है। प्रत्यक्ष दर्शीयों के अनुसार स्थानीय लोग अब भी मलबे के नीचे दबे हैं। शवों को निकालने तक के उचित प्रयास नहीं किए गए। राहत कार्य शून्य है। किसी तरह कि कोई गतिविधि नही देखी गई। कोई फोर्स नही, कोई प्रशासनिक इकाई नही, कोई सुध लेने वाला नही ।
गोदियाल ने कहा कि धराली में आपदा पीडित एक महिला ने मानसिक दबाव में आत्महत्या कर ली है। बाजार पूरी तरह से नष्ट हो चुका है। वहां होने वाले उत्पाद सेब राजमा आलू की देश और दुनिया में डिमांड है लेकिन बाजार के अभाव में उनके उत्पादों का वीपणन नही हो पा रहा है। उनके अनुसार 112 लोगों को 5 -5 लाख की सहायता की गई है लेकिन उसमें भी 38 लोगों को यह कहकर छोड दिया गया है कि आपके मकान पूरी तरह से नष्ट नहीं हुए हैं जबकि सच्चाई यह है कि जो मकान वहा खडे भी हैं वो पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं और उनकी निचली मंजिल मलवे में दब गई है।
उन्होंने कहा कि सरकारी सहायता के अभाव में मजदूर लगा कर वो लोग स्वयं अपने खर्चे पर मलवे को हटाने का काम करवाने को मजबूर है। सीमांत क्षेत्र होने के बावजूद सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण इलाका आज पूरी तरह से उपेक्षित है। सरकारी मदद के अभाव में आपदा पीडित खुद अपने खर्च पर अपना सामान मलबे से निकालने को मजबूर हो रहे है। आज भी लोगों को सरकार की सहायता नहीं मिल रही। विपक्ष वहां की बदहाली लाइव न दिखा दे इस डर से धराली में जैमर लगा कर नेटवर्क बाधित कर दिया गया। प्रशासन गायब और जनता अपनी जरूरतों के लिए खुद संघर्ष करने को मजबूर हो रही है। मुखबा के ग्रामीणों की पीड़ा इतनी गहरी है कि उन्होंने पूरे पंचायत चुनाव का पूर्ण बहिष्कार किया ।
वह मुखबा जहां आपदा से कुछ ही दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घाम तापो योजना की घोषणा की थी। यह बहिष्कार भाजपा सरकार से उनकी नाराज़गी का सबसे बड़ा प्रमाण है। पर्यटन की रीढ़ टूट चुकी है .ग्रामीणों ने बताया कि व्यवसायिक भवनों का कोई रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है। स्वच्छ पीने का पानी नही है। लोग 2013 की केदारनाथ आपदा का उदाहरण देते हुए वर्तमान राज्य सरकार से उसी तरह के पूर्नवास पूर्ननिर्माण और विस्थापन की अपेक्षा कर रहे हैं। उनका कहना था कि केदारनाथ देवीय आपदा के दौरान जब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और भीषण आपदा आई थी हजारों लोग काल कल्वित हुए तब कांग्रेस की सरकार ने नुकसान के स्वआंकलन स्व-निर्धारण की व्यवस्था बनाई थी जिसमें व्यवसाईयों ने राज्य सरकार को एफिडेविट बना कर दिया कि उनका कितना नुकसान हुआ है । इस आधार पर सरकार ने मुआवजा तय किया था।
केदार दैवीय आपदा का मॉडल यहां क्यों नहीं अपनाया जा सकता जबकि धराली में तो मृतको की संख्या और प्रभावितों की संख्या केदारनाथ आपदा की तुलना में कम है।
गोदियाल ने राज्य सरकार को कटघरे में खडा करते हुए पूछा कि अगर केदारनाथ में मालिकों के स्वआंकलन को स्वीकार कर मुआवजा दिया गया था तो धराली में यह व्यवस्था क्यों लागू नहीं की जा सकती ? सरकार के पास आपदा प्रबंधन के तहत ऐसा कोई नियम नहीं है तो फिर नियम बनाया जा सकता है। स्पष्ट है सरकार अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ रही है।
गोदियाल ने कहा कि कांग्रेस राज्य सरकार से मांग करती है कि धराली के सम्पूर्ण पुनर्वास का विशेष पैकेज घोषित किया जाए। यदि धराली सुरक्षित नही है तो विस्थापन किया जाए और यदि सुरक्षित है तो फिर धराली का मूल स्वरुप लौटाया जाए। न्यूनतम मुआवजा 50 लाख किया जाए।
उन्होंने कहा कि आवासीय पुनर्वास के साथ साथ व्यावसायिक पुनर्वास अनिवार्य पुनर्निर्माण की ठोस योजना बनाई जाए। केदानाथ आपदा की तर्ज पर स्थानीय आपदा पीडितो द्वारा स्वआंकलन मॉडल लागू कर तत्काल भुगतान किया जाए। लापता लोगों की खोज के लिए विशेष अभियान चलाया जाए। रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया आसान की जाए। व्यवस्थित विस्थापन किया जाए। शिक्षा , स्वास्थ्य, सड़क और संचार सब कुछ ठप है उसे ठीक किया जाए।
घाम तापो योजना की घोषणा की याद दिलाते हुए कांग्रेस ने सवाल किया कि प्रधानमंत्री द्वारा मुखबा से की गई बड़ी घोषणाए आज सिर्फ कागज़ों में है धरातल पर शून्य। गोदियाल ने कहा कि कांग्रेस के प्रतिनिधि मण्डल ने वहॉ की स्थति का आकलन किया है उसकी विस्तृत रिर्पाेट लेकर उत्तराखण्ड कांग्रेस शीघ्र राज्यपाल से मुलाकात कर राहत कार्याे में प्रगति का निवेदन करेगी।
पूर्व अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि वे 8 अगस्त 2025 को धराली में आई हुइ आपदा को स्वयं देखने पहुचा था परन्तु चार महीने बाद भी स्थतियां जस की तस है। सेब के कास्तकारों को मुआवजा नही मिला है। स्थानीय लोगों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं है। उन्हे अपना और अपने परिवार का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। पत्रकार वार्ता के दौरान गरिमा मेहरा दसौनी मौजूद रही।
