
चकराता। जौनसार के कालसी और चकराता ब्लॉक के करीब 200 गांवों, खेड़ों, मजरों में गुरुवार से बूढ़ी दीवाली का जश्न शुरू हो गया है। गुरुवार को खत देवघार और खत शैली में दीपावली मनाई गई। सुबह मंदिरों में देव दर्शन के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण उमड़े।

जौनसार के सभी गांवों में बूढ़ी दीवाली पर देव दर्शन को मंदिरों में तांता लगा रहा। कहीं पर ग्रामीणों ने महासू देवता तो कहीं पर शिलगुर विजट और चुड़ेश्वर महाराज तो कहीं पर भगवान परशुराम के दर्शन कर घर परिवार की खुशहाली की मन्नतें मांगी। पुरातत्व महत्व के प्राचीन शिव मंदिर लाखामंडल में भी देवदर्शन को लोग उमड़े। प्राचीन शिव मंदिर लाखामंडल, प्राचीन परशुराम मंदिर डिमऊ, शिलगुर विजट मंदिर सिमोग, महासू मंदिर लखवाड़, थैना, बुल्हाड़ में आस्था का सैलाब उमड़ा।
बूढ़ी दीवाली का जिक्र रामायण से जुड़ा है। कहा जाता है कि भगवान राम के लौटने में देरी हुई, इसलिए हिमालय में अलग तिथि मनाई गई। हिमाचल प्रदेश की कुछ कथाओं में भगवान परशुराम का भी उल्लेख है। राजा बलि की भक्ति के कारण उनका प्रतीक दहन किया जाता है।
जौनसार में गुरुवार को बूढ़ी दीपाली की होलियात पर ग्रामीण हाथों में मशालें लेकर होलियात के रूप में नाचते गाते हुए गांव से बाहर गए। जहां जलती मशालें एक-दूसरे पर फेंकने लगे। वापस पंचायती आंगन में लौटने के बाद गांव स्याणा ने मकान की छत से भिरुड़ी के रूप में अखरोट को प्रसाद के तौर फेंका। इसे पाने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। इसी बीच बाजगी समुदाय के लोगों ने पुरुषों और महिलाओं के कानों पर हरियाड़ी लगाई।
