
ये कुर्सी की अदला बदली नहीं, पार्टी के प्रति गोदियाल के समर्पण का प्रतिफल है

पार्टी में जितनी बड़ी स्वीकार्यता, संतुलन साधने की उतनी ही बड़ी चुनौती भी

हरीश जोशी, पहाड़ का सच।
एक स्पष्टवादी और छल कपट की राजनीति से दूर पूर्व विधायक गणेश गोदियाल का उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में दोबारा चुना जाना सिर्फ कुर्सी की अदला बदली नहीं है बल्कि उस भरोसे का प्रतिफल है जिसने कालांतर में तमाम प्रलोभन के बाद भी गणेश को कांग्रेस की नींव से हिलने नहीं दिया। माना जा रहा है कि लंबी जद्दोजहद के बाद कांग्रेस आलाकमान ने उत्तराखंड में भाजपा के तिलस्म को तोड़ने के लिए 2027 की जंग में मुख्य ” योद्धा” के रूप में गणेश का चयन किया है।
राज्य विधानसभा के पहले चुनाव 2002 में राजनीति में भाग्य आजमाने के बाद गोदियाल दो बार विधायक रहे। पहले कार्यकाल में गढ़वाल मंडल विकास निगम के अध्यक्ष और दूसरे कार्यकाल में श्री बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष के रूप में गोदियाल का कार्यकाल सराहनीय रहा। अपनी विधानसभा क्षेत्र में राठ महाविद्यालय खुलवाना और सम्पूर्ण राठ क्षेत्र को ओबीसी का दर्जा दिलाना गणेश गोदियाल के प्रशंसनीय कार्य हैं। .
विभिन्न आयोगों, निगमों व परिषदों में काबिज नेताओं में गणेश की अपनी अलग ही पहचान है। श्री बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष के रूप में सेवा भाव का संकल्प लेकर गोदियाल ने मंदिर समिति से वेतन भी नहीं लिया। साल 2016 में हरीश रावत सरकार का तख्ता पलटने वालों में शामिल कई कद्दावर नेताओं ने गोदियाल को भी भारी प्रलोभन दिए लेकिन वे नींव की पत्थर की तरह कांग्रेस से हिले नहीं।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनका पहला कार्यकाल कम समय रहा लेकिन पार्टी के आम कार्यकर्ता पर गोदियाल अपनी छवि व साफगोई का असर छोड़ गए। साल 2022 जब राज्य विधानसभा के चुनाव हुए तो गोदियाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। उस चुनाव में कांग्रेस की स्थिति साल 2017 की तुलना में बेहतर हुई। साल 2017 में कांग्रेस के 11 विधायक थे जबकि 2022 में 19 विधायक चुने गए। सांगठनिक कार्यों में व्यस्त होने के कारण गणेश अपना चुनाव हार गए। पार्टी की अंदरूनी राजनीति के कारण कांग्रेस ने एक अधकचरा फैसला लेकर नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह के साथ गोदियाल को भी अध्यक्ष पद के हटा दिया गया। उस समय गोदियाल को हटाए जाने जो लेकर कार्यकर्ताओं में रोष भी देखा गया।
साल 2024 में हुए लोकसभा के आम चुनाव में पौड़ी सीट से लड़ने के लिए जब कोई तैयार नहीं था तो गोदियाल ने पार्टी हाईकमान के फैसले को मानते हुए चुनाव को कांटे की टक्कर का बना दिया था। पार्टी की अंदरूनी राजनीति में दखल रखने वालों का मानना है कि 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस हाईकमान ने एक बार फिर गोदियाल को पार्टी की कमान सौंपी है।
यहां दीगर बात यह है कि स्वीकार्यता के बाद भी गोदियाल को संगठन में तालमेल बिठाने के लिए सेतु का काम करना होगा। कई धड़ों में बंटी कांग्रेस को 2027 की जंग किए तैयार करना होगा। इस जंग को जीतने के लिए संगठन को नए सिरे से तैयार करना होगा। ध्यान रखने वाली बात ये है कि इस कोशिश में आलोचना , समालोचना भी होगी और प्रतिकार भी होगा।
