
पहाड़ का सच देहरादून। उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता डॉ प्रतिमा सिंह ने उत्तराखंड राज्य निर्माण की 25वीं वर्षगांठ (रजत जयंती) वर्ष पर राज्यवासियों को शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए कहा कि राज्य बनने के 25 साल बाद भी बेरोजगार युवा व महिलाएं उपेक्षित हैं।

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि अलग राज्य बनने के बाद इन 25 वर्षों में उत्तराखंड राज्य ने बहुत कुछ खोया है और बहुत कुछ पाया है। राज्य आन्दोलन में कई आन्दोलनकारियों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया वहीं मातृशक्ति ने अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारियों के साथ-साथ राज्य निर्माण आन्दोलन में कंधे से कंधा मिलाकर पूरा सहयोग किया।
अलग प्रदेश होने के बावजूद आज सबसे उपेक्षित यहां का बेरोजगार नौजवान, महिलाएं हैं जो सरकारों की नाकामी के कारण अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं। अलग उत्तराखण्ड राज्य की अवधारणा की नींव में इस प्रांत के जनपदों का विकास की किरणों से कोसों दूर रहना, क्षेत्र में बढ़ती बेरोजगारी और पहाडों की पहाड जैसी परेशानियां थी। राज्य निर्माण आन्दोलन में पर्वतीय जनपदों के बेरोजगार नवयुवक-युवतियों, महिलाओं ने बढ़चढ़ कर भागीदारी का निर्वहन भी किया परन्तु राज्य बनने के बाद सबसे बड़ा छलावा राज्य के युवा बेरोजगार नौजवान के साथ हुआ तथा अपने प्रदेश में रोजगार की आस पूरी न होने के कारण हताश-निराश होकर उसे आज भी अन्य प्रदेशों में पलायन को मजबूर होना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के स्तर पर पर्वतीय जनपदों से पलायन रोकने के लिए कई बार प्रयास भी हुए हैं यहां तक कि राज्य में पलायन आयोग का भी गठन किया गया परन्तु सरकारों को पलायन रोकने में सफलता नहीं मिल पाई। 25 वर्ष का लम्बा समय बीत जाने के बावजूद उत्तराखंड राज्य के ग्रामीण इलाके स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार एवं बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। पर्वतीय जनपदों में कई इलाकों की स्थिति तो यह है कि मरीजों को अस्पताल तक ले जाने के लिए आज भी डंडी-दंडी का सहारा लेना पड़ रहा है फलस्वरूप कई लोग अस्पताल तक पहुंचने से पहले रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। .
पहाड की मातृशक्ति के सिर का बोझ कम नहीं हो पाया है। राज्य सरकार बडी-बडी बातें तो कर रही हैं परन्तु ब्लाक मुख्यालय स्तर के अस्पतालों मे प्रसव तक की सुविधा महिलाओं के लिए नहीं है तथा उन्हें आज भी बडे शहरों पर निर्भर होना पड़ रहा है। राज्य के साथ ही छत्तीसगढ़ और झारखंड दो अन्य राज्यों का भी गठन हुआ था परन्तु 25 वर्ष के लम्बे अन्तराल के बाद भी उत्तराखंड राज्य को अपनी स्थायी राजधानी नहीं मिल पाई है तथा यहां का निवासी राजधानी के नाम पर स्थायी-अस्थायी के बीच झूल रहा है।
उन्होंने कहा कि जनता की गाडी कमाई के हजारों करोड़ रूपये की बदबादी के बाद भी शहीदों के सपनों की राजधानी गैरसैण उपेक्षा का शिकार बनी हुई है। इस पर राज्य के सभी राजनैतिक दलों को गम्भीरता से सोचना होगा।
