

देहरादून। यूपीईएस ने आज ‘हिमालय कॉलिंग 2025’ का शुभारंभ किया। यह तीन दिवसीय वैश्विक सम्मेलन हिमालयन इंस्टीट्यूट फॉर लर्निंग एंड लीडरशिप (HILL) द्वारा देहरादून कैंपस में आयोजित किया जा रहा है। इसका विषय है – “हिमालय के साथ उठो और एसडीजी की गति बढ़ाओ”।

यह आयोजन हिमालय की सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और बौद्धिक धरोहर का वार्षिक उत्सव है, जिसमें स्थिरता (Sustainability), नेतृत्व और नवाचार पर संवाद, प्रदर्शनी और सहयोग के लिए मंच तैयार किया गया है।
इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक समृद्धि को सामने लाना, सतत विकास पर शोध और नीति चर्चाओं को बढ़ावा देना, युवाओं को नेतृत्व के लिए प्रेरित करना और HILL को ज्ञान और विचार नेतृत्व का प्रमुख केंद्र बनाना है। इस आयोजन में 700+ छात्र और 1,600+ प्रतिनिधि (ऑफ़लाइन और ऑनलाइन) शामिल हो रहे हैं।
इसमें 17 ऑफ़लाइन और 9 ऑनलाइन सत्र होंगे। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ, सामाजिक नेता और उद्योग जगत के प्रतिनिधि इसमें मुख्य भाषण देंगे, जबकि यूपीईएस नेतृत्व द्वारा आयोजित गोलमेज चर्चाओं में शोध, तकनीकी हस्तांतरण और सामुदायिक कार्यों पर ठोस सहयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
इस बार सम्मेलन की विशेषता है कि इसमें 10 पद्म पुरस्कार विजेता भाग ले रहे हैं – डॉ. अनिल प्रकाश जोशी (पर्यावरण संरक्षण), प्रो. जी.पी. तलवार (इम्यूनोकॉन्ट्रासेप्शन और कुष्ठ रोग वैक्सीन), डॉ. एन.के. गांगुली (सामुदायिक स्वास्थ्य), डॉ. प्रेम चंद शर्मा (कृषि नवाचार), प्रो. वी.सी. ठाकुर (हिमालयी भूविज्ञान), डॉ. कल्याण सिंह रावत (माईती आंदोलन, सामाजिक वनीकरण), डॉ. विजय शर्मा (पहाड़ी लघु चित्रकला), डॉ. माधुरी बर्थवाल (लोक संगीत और सांस्कृतिक धरोहर), डॉ. बलेंदु प्रकाश (आयुर्वेद, कैंसर उपचार) और डॉ. अनुप साहा (हिमालयी फोटोग्राफी)।
उद्घाटन समारोह एमएसी हॉल में हुआ। इसी के साथ हिमालयी उत्पादों की प्रदर्शनी भी खोली गई, जिसमें 400 से अधिक वस्तुएं (हस्तशिल्प, खाद्य उत्पाद और स्मृति-चिह्न) प्रदर्शित की गईं। यह प्रदर्शनी 9 से 11 सितम्बर तक प्रतिदिन सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक रहेगी। साथ ही हिमालयी फोटोग्राफी प्रदर्शनी भी लगाई गई है। सम्मेलन में 25+ सत्र और 128 प्रमुख वक्ता शामिल होंगे।
उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए और लॉन्च पर बोलते हुए उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह ने कहा: “हिमालय कॉलिंग हमारे महान हिमालय की रक्षा के लिए एक सामूहिक प्रतिबद्धता है, जो हमारी धरती और हमारी आत्मा दोनों के संरक्षक हैं। हिमालयन इंस्टीट्यूट फॉर लर्निंग एंड लीडरशिप (HILL) ऐसा मंच बन गया है, जहाँ ज्ञान और कर्म का संगम होता है, जो समुदायों, वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं और छात्रों को एकजुट कर स्थायी समाधान तैयार करता है। मैं यूपीईएस और HILL को इस दूरदर्शी सम्मेलन के आयोजन के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ, और कामना करता हूँ कि यहाँ साझा किए गए विचार ऐसे ठोस कार्यों में बदलें जो पर्यावरण की रक्षा करें, युवाओं को सशक्त बनाएं और हिमालय की आत्मा को संजोए रखें।”
तीन दिनों तक चलने वाला हिमालय कॉलिंग 2025 विविध विषयों की यात्रा को प्रस्तुत करेगा। पहले दिन का केंद्र बिंदु होगा ईएसजी, पर्वतीय आजीविका, खाद्य सुरक्षा, आपदा से निपटने की क्षमता, एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस और ऊर्जा अनुकूलन। दूसरे दिन कार्यक्रम मिथक, इतिहास और कला को विज्ञान से जोड़ते हुए आगे बढ़ेगा, जिसमें नाज़ुक पारिस्थितिक तंत्रों में मानवाधिकार, जलवायु मॉडलिंग, अक्षय ऊर्जा और आधुनिक जीवन के लिए हिमालय की प्राचीन ज्ञान परंपरा पर चर्चा होगी।
इस दिन का विशेष आकर्षण होगा उच्च स्तरीय राउंड टेबल “हिमालय के सतत विकास के लिए प्रयासों का समन्वय”, जिसमें 30 से अधिक विशेषज्ञ, एनजीओ और संगठन मिलकर साझा कार्ययोजना तैयार करेंगे। तीसरे दिन का समापन वैलेडिक्टरी सत्र और सांस्कृतिक संवाद के साथ होगा, जिसमें यह विचार किया जाएगा कि किस तरह स्थानीय परंपराओं को सतत विकास में शामिल किया जाए। समापन सत्र में प्रमुख वक्ता होंगे – डॉ. नितिन सेठ (IFCPAR), पद्म भूषण सम्मानित डॉ. अनिल प्रकाश जोशी, डॉ. दुर्गेश पंत (डीजी, यूकॉस्ट) और श्री मीनाक्षी सुंदारम (सचिव, उत्तराखंड सरकार)।
यूपीईएस के कुलपति डॉ. राम शर्मा ने कहा – “हिमालय कॉलिंग एक जीवंत कक्षा है। वैज्ञानिकों, नवप्रवर्तकों, कलाकारों, नीतिनिर्माताओं और समुदायों को एक साथ लाकर हम शोध को व्यवहार में बदल रहे हैं और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को वहीं गति दे रहे हैं, जहाँ उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है — हिमालय की धरती पर। यूपीईएस को गर्व है कि HILL के माध्यम से इस पहल को दिशा दे रहा है और अपने छात्रों को उद्देश्यपूर्ण नेतृत्व के लिए सशक्त बना रहा है।”
HILL के निदेशक डॉ. जे.के. पांडेय ने कहा – “इस वर्ष हमारा दृष्टिकोण समाधान-प्रधान है—जहाँ हम गहन शैक्षणिक शोध को सामुदायिक ज्ञान के साथ जोड़ रहे हैं, हिमालयी उत्पादों और फोटोग्राफी को प्रदर्शित कर रहे हैं और ऐसे गोलमेज संवाद आयोजित कर रहे हैं जो लंबे समय तक सहयोग का आधार बन सकें। सबसे महत्वपूर्ण, हम चाहते हैं कि युवा हिमालय को किसी समस्या की तरह नहीं बल्कि एक साथी की तरह देखें—जिसका सम्मान किया जाए और जिसे पुनर्जीवित किया जाए।”
हिमालयी क्षेत्र आज चरम मौसम, ग्लेशियरों के पिघलने, जैव-विविधता हानि और भूकंपीय खतरों जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। ऐसे में ‘हिमालय कॉलिंग’ जैसे सम्मेलन बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाने, लचीलापन बढ़ाने और पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक समाधानों में जोड़ने का कार्य करता है।
कार्यक्रम की अधिक जानकारी और अपडेट के लिए देखें: www.hillupes.com / www.upes.ac.in.