

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया, मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए आधार पहचान का प्रमाण होगा,नागरिकता का नहीं

कई याचिकाकर्ताओं की दलीलों के बाद सोमवार को कोर्ट ने दिया आदेश
पहाड़ का सच नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए कि वह बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान नाम दर्ज कराने के लिए आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में स्वीकार करे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है पर मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए पहचान का वैध प्रमाणपत्र है।
बिहार में नवंबर में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव से पहले जारी एसआईआर के लिए आयोग ने अभी तक 11 दस्तावेज स्वीकार किए थे। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने चुनाव आयोग से कहा कि वह बूथ स्तर के अधिकारियों को आधार स्वीकार करने के निर्देश दे। आदेश में यह भी स्पष्ट हो कि अधिकारियों को आधार की प्रामाणिकता व वास्तविकता की पुष्टि करने का अधिकार होगा। पीठ ने साफ किया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 23(4) के तहत आधार व्यक्ति की पहचान स्थापित करने वाला दस्तावेज है।
कोर्ट ने कहा कि आधार अधिनियम की वैधानिक स्थिति के मद्देनजर, यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है। बाद में, आयोग की ओर पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने वचन पत्र प्रस्तुत किया कि आधार कार्ड पहचान के प्रमाण के रूप में मंजूर किया जाएगा।
सुनवाई के दौरान अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल व अन्य राज्यों में एसआईआर कराने के लिए आवदेन दायर कर पक्ष रखा, जबकि गोपाल शंकरनारायणन व वृंदा ग्रोवर अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए। याचिकाओं में चुनाव आयोग के 24 जून के उस निर्देश को रद्द करने की मांग की गई जिसके तहत बिहार में मतदाताओं के बड़े वर्ग को मतदाता सूची में बने रहने के लिए नागरिकता का प्रमाण प्रस्तुत करना आवश्यक है। मामले से संबंधित अन्य पहलुओं पर अगले सोमवार सुनवाई होगी।
इनकी दलीलों के बाद कोर्ट ने दिया आदेश
कपिल सिब्बल (राजद के वकील): शीर्ष अदालत ने तीन आदेश जारी किए हैं लेकिन चुनाव आयोग ने अभी तक अपने अधिकारियों को आधार कार्ड स्वीकार करने के लिए कोई निर्देश जारी नहीं किए। बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) सूची से बाहर रखे मतदाताओं के दावों को स्वीकार न कर कोर्ट की घोर अवमानना कर रहे हैं, जिन्होंने निवास प्रमाण के रूप में आधार कार्ड पेश किया था। अगर वे इसे स्वीकार नहीं कर सकते, तो वे किस तरह का समावेशन अभियान चला रहे हैं? वे गरीबों को बाहर करना चाहते हैं।
राकेश द्विवेदी : नागरिकता के प्रमाण के रूप में आधार को मंजूर नहीं किया जा सकता। आयोग को तय करने का अधिकार है कि आवेदक नागरिक है या नहीं। आयोग ने आधार स्वीकार करने के निर्देश पर मतदाताओं को जानकारी देने के लिए मीडिया में विज्ञापन दिए हैं।
पीठ ने कहा: आधार पर हमने पहले ही स्पष्ट कर दिया है। गोपाल : जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में आधार पहचान के दस्तावेज के रूप में संदर्भित है। फॉर्म 6 में भी आधार कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेज में एक बताया गया है। (साभार)