
माहरा ने अपनी फेस बुक वॉल में लिखा, आपदा पीड़ितों के लिए वैकल्पिक मार्ग नहीं बनाए गए

चालीस किमी पैदल चलकर धराली पहुंचे करन, पीड़ितों का हाल जाना
पहाड़ का सच धराली।
40 किमी की पैदल यात्रा कर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने शुक्रवार शाम आपदाग्रस्त धराली पहुंचकर पीड़ितों का हाल चाल पूछा।
उन्होंने अपनी फेसबुक वॉल में लिखा कि जब ” मैं पैदल चलकर इन मुश्किल रास्तों से धराली तक पहुंच सकता हूं तो क्या सरकार अपने संसाधनों से वैकल्पिक मार्ग बनाकर पीड़ितों के परिजनों को उनसे मिलने नहीं भेज सकती थी ?” माहरा का बयान ऐसे समय में आया है जबकि गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग कई जगह से बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ है। डबरानी/गंगनानी के निकट महत्वपूर्ण पुल भी बाढ़ में बह गया। गंगा और उसकी सहायक नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। किसी भी प्रकार का रिस्क लेना जीवन के लिए जोखिम बढ़ा सकता है। मार्ग अवरुद्ध होने के कारण धराली तक पहुंचना भी टेढ़ी खीर बना हुआ है। बेली ब्रिज के शनिवार तक बनने की उम्मीद जताई जा रही है।
(पढ़ें, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने फेसबुक वॉल पर ये लिखा )
भटवाड़ी से पैदल ही धराली के लिए निकला हूं, अभी हर्षिल पहुंचने वाला हूं। रास्ते मलबे में दबे हैं, पुल बह गए हैं, कई जगह रास्ता ही नहीं बचा लेकिन कोशिश कर रहा हूं कि जल्दी धराली पहुंच जाऊं। क्योंकि धराली में मेरे लोग दुख में डूबे और अकेले हैं।
धराली आपदा के पीड़ितों के परिजन बड़ी संख्या में भटवाड़ी और आसपास के क्षेत्रों में फंसे हुए हैं। किसी को नहीं पता उनका परिवार सुरक्षित है या नहीं। किसी ने फोन पर आख़िरी आवाज़ सुनी थी, किसी की परिजनों से बात ही नहीं हो पा रही है।
जब मैं पैदल चलकर इन मुश्किल रास्तों से धराली तक पहुंच सकता हूं , तो क्या सरकार अपने संसाधनों से वैकल्पिक मार्ग बनाकर पीड़ितों के परिजनों को उनसे मिलने नहीं भेज सकती थी ? क्या अपनों से मिलने की, ढांढस बंधाने की, और मृतकों के अंतिम संस्कार में शामिल होने की इतनी भी कीमत नहीं?
सरकार के पास हेलीकॉप्टर हैं, मशीनें हैं, प्रशासनिक तंत्र है लेकिन नीयत आज भी हवाई फ़ोटो खिंचवाने की है। ज़मीनी हकीकत क्या है वो वो हेलीकॉप्टर से आसमान में चक्कर लगाकर फ़ोटो खिंचवाने वालों को पता नहीं चल सकती।
मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि धराली के हर पीड़ित परिवार को शक्ति मिले। जो प्रभावित हुए हैं, उन्हें संबल मिले। और हम सबको इतनी इंसानियत मिले कि हम एक-दूसरे का हाथ थाम सकें।
